ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे

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ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
दुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे.
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जादू टोना यूँ लब ओ रुख़्सार भी करते रहे
जो मुदावा थे वही बीमार भी करते रहे.
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उस की सुहबत के असर में हो गए उस की तरह  
फिर उसी के लहजे में गुफ़्तार भी करते रहे.
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जिस्म को जीते रहे हम एक क़िस्सा मान कर  
और अपनी रूह को तैय्यार भी करते रहे.
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हर क़िले के द्वार अन्दर ही से खोले जाते हैं
दुश्मनों का काम चौकीदार भी करते रहे.
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‘नूर’ ऐसा था कि चुँधियाने लगीं आँखें तो फिर  
बंद आँखों ही से हम दीदार भी करते रहे.
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मौलिक अप्रकाशित 

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  • Nilesh Shevgaonkar

    धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी 

  • बृजेश कुमार 'ब्रज'

    ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
    दुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश जी क्या ही शानदार कहन है

    शेर दर शेर रवानगी अद्भुत है....

  • Nilesh Shevgaonkar

    धन्यवाद आ. बृजेश जी