लोग हुए उन्मत्ते हैं
बिना आग ही तत्ते हैं
गड्डी में सब सत्ते हैं
बड़े अनोखे पत्ते हैं
उतना तो सामान नहीं है
जितने महँगे गत्ते हैं
जितनी तनख़्वाह मिलती है
उस से ज्यादा भत्ते हैं
कानूनों के रचनाकार
उन्हें बताते धत्ते हैं
बेशर्मी पर हैं वो ही
तन पर जिनके लत्ते हैं
शहद बनेगा कितना ही
अलग-अलग अब छत्ते हैं
#मौलिक व अप्रकाशित
अजय गुप्ता 'अजेय
साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।
बड़े अनोखे पत्ते हैं
गड्डी में सब सत्ते हैं
भड़के रहते हर पल लोग
बिना आग क्यों तत्ते हैं (तत्ता आँचलिक शब्द है जिसका अर्थ गर्म होना है)
उतना तो सामान नहीं
जितने महँगे गत्ते हैं (गत्ते यानि साथ का बारदाना)
जितना वेतन मिलता है
उस से ज्यादा भत्ते हैं
क़ानूनों के रक्षक ही
करते उनमें खत्ते हैं (खत्ते-गड्ढे)
बेशर्मी पर हैं वो ही
तन पर जिनके लत्ते हैं
हर मक्खी है अपने में
शहद से ख़ाली छत्ते हैं
May 28
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
आदरणीय अजयन भाई , परिवर्तन के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गयी है , हार्दिक बधाईयाँ
May 30
अजय गुप्ता 'अजेय
उत्साहदायी शब्दों के लिए आभार आदरणीय गिरिराज जी
May 30