ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह अगस्त 2015 – एक संक्षिप्त रिपोर्ट
प्रस्तुति : डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
तुलसी जयंती, 23 अगस्त, रविवार के अपराह्नोत्तर काल में भरा-भरा सा 37 रोहतास एन्क्लेव-- ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की ‘साहित्य संध्या’ को नई धज देता हुआ सहसा प्रकट हुआ. इसके प्रथम चरण में संयोजक डा0 शरदिंदु मुकर्जी के उद्बोधन के साथ डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव की अध्यक्षता और केवल प्रसाद ’सत्यम’ के संचालन में सर्वप्रथम सरस्वती वन्दना डा0 सुभाष चन्द्र गुरुदेव से प्रारंभ हुयी जिसे सुरीले स्वर के राजकुमार आलोक रावत ‘आहत लखनवी’ ने अपनी जादुई आवाज से कीलित करते हुए हम सबको सम्मोहित सा कर दिया-
प्रेम और करुणा में तुम साकार होके
चली आओ मैया रानी हंस पे सवार होके
तदनंतर कार्यक्रम का प्रथम चरण प्रारंभ हुआ. अगस्त का महीना भारत की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसी महीने देश का स्वाधीनता पर्व मनाया जाता है और इसी महीने गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की पुण्यतिथि (07 अगस्त) के अलावा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयन्ती (03 अगस्त) भी मनायी जाती है I अतः इस गोष्ठी में दोनों वरेण्य साहित्यकारों को स्मरण किया गया I डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने अपने आलेख “साकेत महाकाव्य का उद्घोष – “सन्देश नहीं मैं यहाँ स्वर्ग का लाया” में राष्ट्रकवि के महाकाव्य ‘साकेत’ में राम की अवधारणा जिस रूप में हुयी है, उस पर प्रकाश डालते हुए उनके अवतार और अवतार के अभिप्राय को अधिकाधिक स्पष्ट करते हुए कहा-
‘साकेतकार की दृष्टि में इस संसार के अभ्युदय और विकास में ही मानव की सच्ची मुक्ति और नि:श्रेयस निहित है
I समाज के सर्वांगीण उत्कर्ष में ही मोक्ष का वास है I समुन्नत राष्ट्र में ही परम पद की प्राप्ति संभव है I विश्व-मंगल में ही ब्रह्म की प्राप्ति अन्तर्हित है I कवि की दृष्टि में सायुज्य मुक्ति वह नहीं है जैसा आर्ष ग्रंथो में वर्णित है, उसकी दृष्टि में सायुज्य वैश्विक मानवता के साथ अपने अस्तित्व को विलीन कर देना है I इसीलिए साकेत के राम अपने अवतार के अभिप्राय को अधिकाधिक स्पष्ट करते हुए घोषणा करते हैं –
सन्देश नहीं मैं यहाँ स्वर्ग का लाया
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया’
ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के मंच पर प्रथम बार प्रभात कुमार बोस के रूप में एक प्रख्यात नाट्य शिल्पी का प्रवेश हुआ जो आकांक्षा थिएटर आर्ट्स के नाम से लखनऊ में एक सांस्कृतिक संस्था चलाते हैं I हमने उनसे नाट्यकला पर कुछ कहने के लिए आग्रह किया था. प्रभात कुमार ने नाटक के सम्बन्ध में अपने व्याख्यान में भरत मुनि को नाट्य शास्त्र का प्रणेता बताते हुये इसकी पंचम वेद के रूप में विद्वानों द्वारा स्वीकार्यता का स्मरण कराया I उन्होंने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि नाट्य शास्त्र की इस अगाह महत्ता के बाद भी नाट्य लेखन में रचनाकार की रुचि नहीं है I प्रकाशक भी नाटक के प्रकाशन से घबराता है I इसका मूल कारण यह है कि अच्छे और प्रतिष्ठित लेखक भी नाटक लिखने से परहेज करते हैं I इस स्थिति को बदलना होगा तभी पंचम वेद का सम्मान रक्षित होगा और मंच को भी अच्छे नाटक मिल सकेंगे I प्रभात बोस ने नए पुराने सभी लेखकों का आह्वान करते हुए कहा कि सभी कृतिकार प्रतिबद्धता के साथ नाटक का लेखन अवश्य करें तभी भारतीय नाट्य मंच विदेशी नाटकों की पराधीनता से स्वतंत्र हो सकेगा I वे अपने साथ अपने एक नाटक “एंटीगनी” (ANTIGONE) की सी0 डी0 भी लाये थे जिसे सभी उपस्थित सुधीजनों ने प्रोजेक्टर द्वारा बड़े परदे पर चाक्षुष किया I
ऐतिहासिक कहानी पर आधारित “एंटीगनी” एक यूनानी नाटक है, जिसके कई रूप मिलते हैं सम्भवतः ऐसा नाटकों के भारतीयकरण के कारण हुआ होगा I इस नाटक के जिस स्वरूप को प्रोजेक्टर पर दिखाया गया इसका भारतीय भाषा में अंतरण वासी खान ने किया था I एक घंटे तक चले इस नाटक के कुछ दृश्य लम्बे थे और विषय गंभीर था लेकिन सभी कलाकारों के अद्भुत अभिनय तथा चुस्त निर्देशन के कारण बौद्धिक मनोरंजन में कोई कमी नहीं महसूस हुई I इस नाटक के प्रदर्शन के साथ ही साहित्य संध्या का प्रथम चरण समाप्त हुआ I
इस बार काव्य गोष्ठी के स्थान पर साहित्य संध्या का आयोजन कुछ नवीन प्रयोगों को लेकर हुआ I मुख्य संयोजक डा0 शरदिंदु मुकर्जी ने साहित्य संध्या की रूप रेखा स्पष्ट करते हुए कहा कि हमारा उद्देश्य साहित्य के केवल एक पक्ष कविता पर ही केन्द्रित बने रहना नहीं है I साहित्य की सभी विधाओं को सामने लाना हमारा लक्ष्य होना चाहिये I इसलिये कथा, लघुकथा, प्रहसन , नाटक, कविता, संस्मरण, रेखाचित्र जो आकार में छोटे किन्तु चुस्त हों उनका भी पाठ होना चाहिए. सभी प्रकार (विधाओं) की रचना पर सामूहिक चर्चा कराने का प्रस्ताव भी विचाराधीन है I संयोजक ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यह आवश्यक नहीं हम केवल अपनी रचना ही पढ़ें, यदि हमें किसी ऐसे कवि की रचना इतना प्रभावित करती है कि हम उसे दूसरों तक पहुँचाना जरूरी समझते हैं तो उन रचनाओं का भी इस मंच पर स्वागत होगा I
साहित्य संध्या के इस मिशन के अंतर्गत कार्यक्रम के दूसरे चरण में केवल प्रसाद ‘ सत्यम ‘ के संचालन में उभरते पत्रकार रोहित पाण्डेय को काव्य पाठ के लिये आमंत्रित किया गया I रोहित ने पहले अपना संक्षिप्त परिचय दिया फिर देशभक्तिपरक अपनी इस रचना का पाठ किया –
जहाँ दूध की नदियाँ बहती थीं
जहाँ गौरी-शंकर रहते थे
जहाँ फूलों की मादकता थी
आज वहां पर बंटवारे की जाने क्यों तैयारी है
आज हमारे काश्मीर की घाटी क्यों बेचारी है
नवोदित कवयित्री निवेदिता श्रीवास्तव ने नारी की चिरंतन चिंता का खुलासा करते हुए उस सत्य का पिष्टपेषण किया जिससे हम आये दिन रू-ब-रू होते हैं –
पैदा तो हो जाती हैं
पर ज़िंदा नही बचती लड़कियाँ
अपने आप नहीं मरती
मार दी जाती हैं लड़कियां
कानपुर से पधारे साहित्य और संगीत में समान पैठ रखने वाले नवीन मणि त्रिपाठी ने एक ग़ज़ल पेश की जिसका मतला इस प्रकार है-
इस तिरंगे में सुनामी कुछ तो है
देश में पलता हरामी कुछ तो है
इस ग़ज़ल के साथ ही नवीन मणि ने एक लम्बी और हास्य रस से ओत-प्रोत रचना भी प्रस्तुत की –
बाबा की बात सुनो सरऊ
फिर आपन बात कहु सरऊ
डा0 सुभाष चन्द्र गुरुदेव पेशे से चिकित्सक रहे हैं और उन्होंने सामान्य रोगों से सावधान रहने तथा उनका निदान करने हेतु कविता-संग्रह ‘सुन्दरम स्वास्थ्य’ की रचना की है. मनुष्य के मानसिक कलुष पर व्यंग्य कसते हुए डॉ. गुरुदेव ने कहा –
अपने अपने घर आँगन में फूल नहीं अब कांटे रखना
सड़क मोहल्ले कस्बों को तुम जाति – पांति में बांटे रखना
फूल मसलना आम हो आया नित्य शाम का जाम हो गया
कहीं एकता न आ फटके पहले से तुम छांटे रहना
छंद रचना में विशेष रुचि रखने वाले मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज‘ ने तुलसी जयंती पर तुलसी के सम्मान में एक भावपूर्ण कवित्त सुनाया –
राम जी का नाम गूंजता है सदा आठों याम
कानों मे गयी है भक्ति रस बूँद घुल सी
राम के प्रताप का प्रकाश दिव्य फैला जब
घोर युग कालिमा रही है आज धुल सी
धन्य हो गए हैं भक्त, भक्ति हो गयी है धन्य
आपको जनम दे के धन्य हुयी हुलसी
धन्य हो गया है हिन्द, हिन्दी धन्य हो गयी है
धन्य हुआ रामकाव्य धन्य – धन्य तुलसी
आलोक रावत ‘आहत लखनवी’ जब अपनी ग़ज़लें पढ़ते हैं तो लगता है मंदिर की घंटियाँ बज रही हैं i मधुर कंठ के धनी आहत ने अपनी ग़ज़लों से समा बाँध दिया और लोग मुक़र्रर....इरशाद कहने को बाध्य हो उठे I उनकी एक ग़ज़ल की रवानी कुछ इस प्रकार है –
रंग भाषा जाति मजहब सब हदें मिटने लगीं
हम जो अपनी हद से निकले सरहदें मिटने लगीं
इससे बढ़कर और क्या होगी सजा औरत की अब
औरतों के जिस्म में ही औरतें मिटने लगीं
सुश्री संध्या सिंह की रचनाएँ बिम्ब के अनोखे प्रयोग से सँवर जाती हैं. आपने अपनी विशिष्ट शैली में गीत और ग़ज़ल सुनाए. एक बानगी देखिए –
एक ओर से बढ़ा शिकारी
दूजी तरफ शेर का गर्जन
घिरे हिरन की कातर आँखें
क्या क्या कहती
कौन पढ़ेगा
संयोजक डा0 शरदिंदु मुकर्जी ने साहित्य संध्या की नवीन परिपाटी का समारंभ करते हुए युवा कवयित्री आरती श्रीवास्तव की एक कविता को जिससे वे प्रभावित हुए, विस्तृत क्षितिज देना चाहा. उन्होंने उसका मधुर पाठ कर सभी उपस्थित विद्वानों को कविता की भाव-भूमि पर लाकर आत्म विस्मृत सा कर दिया –
क्या ये न कर दूं
कि पाँव के अंगूठे से उछाल दूं धरती को वृहद् शून्य में
नाचती हई पहुँच जाए किसी और ही आकाश गंगा में
कि झटक दूं उत्तरीय अपना और तीव्रतम हो जाए
समय की समस्त धाराओं का प्रवाह
काल खंड के अन्तिम छोर की तरफ
या कि धुल दूं समुद्र में बारी बारी सभी द्वीपों को
ज्वालामुखियों के शीर्ष से हटा दूं पत्थरों के बंध
बहने लग जाय पिघलती आग की लहरों में घुला हुआ गंधक
और जमीन से रिसता हुआ सारा मवाद जल उठे
शरदिंदु मुकर्जी ने इसके बाद अपनी एक रचना पढ़ी “अनुभूति”
वाणी जब नयनों से छलके दो दिल में हो एक स्पंदन
हो केश गुच्छ के अवगुंठन में अधरों का अधरों से मिलन
जब अलि के नीरव गुंजन से पुष्पित हो सिहरित कोमल तन
जब भाव बहे सरिता बनकर भाषा हो मृदुल मंद समीरण
प्रिये, तभी होता है प्राणों का जीवन से आलिंगन
साहित्य संध्या की नयी परम्परा में केवल प्रसाद ‘सत्यम’ ने अपने नाटक ‘तेरा तुझको अर्पण’ का पाठ किया I इस नाटक में ‘As you sow, so shall you reap’ की मूल भावना को नाट्य शैली में रूपायित किया गया है I यह नाटक कम प्रहसन अधिक है I
गोष्ठी की भावधारा को आत्मसात करते हुए श्रोता के रूप में पहली बार आए महेश चंद्र उपाध्याय ने मुल्ला नसीरुद्दीन की कथा में से एक रोचक वाकया सुनाया. चाय के लिए प्रतीक्षारत सभा को भावनाओं के इस अनौपचारिक विनिमय से उद्बुद्ध होकर शरदिंदु मुकर्जी ने वंदे मातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के बारे में जानकारी देते हुए उनके बतौर मजिस्ट्रेट न्याय करने के अजूबे तरीके से परिचय कराया. साहित्य संध्या के अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने अपनी एक कथा “चंद्रिका अवतरण“ सुनायी I यह कहानी निम्नांकित ऐतिहासिक सत्य का पर्दाफाश करती है I
Chandrika devi Temple in Lucknow is an age old temple, situated around 28 Kms away from the city at the Sitapur road near Buxi Ka Talab (near bank of Gomti river). This temple is of Ramayan Era . It is said that elder son of Shri Lakshmana-the founder of Lucknow, Rajkumaar Chandraketu was going once with Ashvmedh Horse through Gomti. In the way, it became dark and hence he had to take rest in the then dense forest . He prayed to Goddess for safety. Within moments there was cool moon light and the Goddess appeared before him and assured him .(स्रोत-अंतर्जाल)
तदनंतर संयोजक डा0 शरदिंदु मुकर्जी एवं कुंती मुकर्जी ने सभी उपस्थित साहित्यकारों तथा श्रोताओं को धन्यवाद दिया और विश्वास व्यक्त किया कि आने वाले दिनों में इसी उत्साह व उद्दीपना के साथ हम सब एकत्र होकर मंच की मासिक गोष्ठी को परम्परा का निर्वाह करते हुए समयानुकूल नए कलेवर में ढालते रहेंगे I
(मौलिक व अप्रकाशित )
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