महाशिवरात्रि पर विशेष : शिव पार्वती विवाह


शिव पार्वती विवाह (खण्ड-काव्य) सॆ कुछ छन्द
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मत्तगयंद सवैया :-
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शारद, शॆष, सुरॆश  दिनॆशहुँ,  ईश  कपीश गनॆश मनाऊँ ॥
पूजउँ राम सिया पद-पंकज, शीश गिरीश खगॆशहिं नाऊँ ॥
बंदउँ  चारहु  बॆद  भगीरथ, गंग  तरंगहिं  जाइ नहाऊँ ॥
मातु-पिता-गुरु आशिष माँगउँ, शंभु बरात विवाहु सुनाऊँ ॥
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सवैया (मत्तगयंद)
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जैसहिं है छवि दूलह की सखि,तैसि बरात सजावत भॊला !!
दै डुम कारि बजै डमरू अरु,   नाद- सु- नाद सुनावत भॊला !!
नाग गरॆ झुलना जसि झूलत,  दै पुचकारि खिलावत भॊला !!
आइ रहॆ गण  दूत सखी सबु,  ताहि बुलाइ बिठावत भॊला !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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नंग  धड़ंग  मतंग भुजंगन,  ढंग बि-ढंगन साजि सँगाती !!
भूत भभूति लटॆ लिपटॆ अरु, नाक कटी चिपटी चिचुआती !!
कान कटॆ अरु हॊंठ फटॆ कछु,  दाँत बतीस चुड़ैल दिखाती !!
लागत आजु मसान सखी सब,आइ गयॆ बनि शंभु बराती !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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मूँक मलूक सलूक नहीं कछु, बॊल रहॆ  बड़-बॊल अधूरा !!
हाँथ कटॆ कछु पाँव कटॆ कछु,आइ गयॆ सजि लंग लँगूरा !!
आँख कढ़ी अरु नाक चढ़ी कछु,धावत चारिहुँ ऒर जँमूरा !!
मारि रहॆ सुटकारि कछू जनि, छानि रहॆ कछु भंग धतूरा !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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बामहिं हाँथ गहॆ डमरू अरु,  दाँहिन माल फिरावत भॊला !!
ताल भरै जब नाम हरी धुन, जॊरहिं जॊर बजावत भॊला !!
दॆखि रहॆ सुर-वृंद सबै छवि, कॊटिन काम लजावत भॊला !!
आज भयॆ जग-नैन सुखी सखि,रूप-अनूप दिखावत भॊला !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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डूँड़ह बैल चढ़ॊ सखि दूलह,  रूप छटा नहिं जाइ बखानी !!
बाघिन खाल बनी पियरी-पट,जूँ-लट जूट-जटा लिपटानी !!
साँपन कै सिर-मौर बँधी अरु,कंगन-कुंडल हैं बिछु रानी !!
धूसरि धू्रि रमाय रहॆ तन,  मॊह रहॆ मन औघड़ - दानी !!
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सवैया (किरीट)
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नाँचत गावत कूँदत फाँदत, खींस निपॊरत भूत भयंकर !!
बैल चढ़ॆ बृषकॆतु हँसैं सखि, पीटत दॊनहुं  हाँथ दिगंबर !!
दॆख हँसैं नरनारि बरातहिं,बालक मारि भगैं कछु कंकर !!
नाग-गलॆ सिर-चंद-छ्टा सखि,दूलह आजु बनॆ शिवशंकर !!
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मत्तगयंद सवैया :-
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बॆद व्रती सबु जॊग-जती सबु,पाहुन आजु बनॆ शिव संगा !!
गाय रहॆ धुनि राम हरी गुन, मंगल गान चुनॆ चित चंगा !!
बाँच रहॆ कछु पॊथि लियॆ अरु,कॊबिद गावत गीत-अभंगा !!
छाइ रही नभ चंद छटा छवि, नाचि रहॆ उड़ि कीट पतंगा !!
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मत्तगयंद सवैया :-
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तीनहुँ लॊक हुलास भरॆ अरु, दॆखि रही धरनी शिव शादी !!
शीश झुकाय करॆ शिव वंदन, भाँषि रही जय दॆव अनादी !!
सौरभ डारि रहॆ मग माँझहिं, हाँथ लियॆ गणिका सनकादी !!
नारद पीट  रहॆ  ढ़प  झाँझर, धूम  मचावत  प्रॆत गणादी !!
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सवैया (दुर्मिल)
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बहु भाँति बरात सजी सँवरी,किलकाति चली तितरी-बितरी !!
नहिं सूझ रही  कछु बूझ रही, बस गूँज रही तुरही  तुतरी !!
अति धूलि उड़ै जब चंग चढ़ै,तब लागत व्यॊम भयॊ छतरी !!
उतिराइ रहीं उलका नभ मां, जस आतिशबाजि हरै चित री !!
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सुन्दरी सवैया =
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सखि तीनहुँ  लॊक हुलास भरॆ, चित चॆत अचॆतन कॆ जग जाहीं !!
नहिं दीख परै कछु भॆद वहाँ,सखि दीन कुलीन न जाति मनाहीं !!
खिखियाइ रहॆ  कछु गाइ रहॆ, कछु दाँत दिखाय बड़ॆ  बतियाहीं !!
पछियाइ रहॆ  कछु धाइ  रहॆ, समुहाइ  रहॆ कछु  मारग  माहीं !!
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किरीट सवैया =
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नाँचि रहॆ कछु गाइ रहॆ कछु, पीट रहॆ कछु पॆट थपा-थप !!
भाग रहॆ कछु कूँद रहॆ कछु, ऊँघ रहॆ कछु नैन झपा-झप !!
फूट रहॆ कछु छाँड़ि बरातहिं, सूँट रहॆ कछु भाँग सपा-सप !!
लॊग खड़ॆ जिवनार लियॆ मग,खाइ रहॆ कछु भॊज गपा-गप !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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ताकत-झाँकत नाचत गावत, लाँघत-भागत भूत-सवारी !!
झूमत घूमत हूकत कूकत,  फूँकत शंख उठै धुत  कारी !!
दॆव कहैं बिहराइ चलॊ सब,  आपन  आपन सॆन सँवारी !!
नाक कटै सबहीं कइ जानहु, दॆखत लॊग हँसैं दइ तारी !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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आपन आपन सॆन लियॆ सुर, साजि चलॆ निज धारि तिरंगा !!
नारद  नाच रहॆ ठुमका  दइ, भाव भरॆ  जियरा अति चंगा !!
तीनहुँ लॊक बिलॊक रहॆ छवि, भावति भामिनि श्रीपति-संगा !!
बाँचत वॆद-बिरंचि सखी सुनु,  आरति आजु  उतारति  गंगा !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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बाजहिं झाँझ उठैं झनकारहिं,शंख-असंख्य बजावत हूका ॥
गूँजत राग अघॊरि अनाहद, गाइ रहॆ धुनि गान  अचूका ॥
भूत अकूत भभूति चढ़ावहिं, भंग चढ़ी बहु मारहिं कूका ॥
आनँद आजु उठाइ रहॆ सखि, कॊयल काक उलूक महूका ॥
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गाँवन गाँवन  खॊरन -खॊरन, झुण्ड बनाइ खड़ॆ नर नारी ॥
पॆड़न पै चढ़ि ताक रहॆ कछु,बालक और जवान अनारी ॥
चाब रहॆ कछु पान चबाचभ, बूढ़ चबावत छालि सुपारी ॥
आपस मॆं बतियाइ रहॆ सबु, आवत कौन गली त्रिपुरारी ॥
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शिव पार्वती विवाह "खण्ड-काव्य"का यह भी एक मजॆदार प्रसंग,,,,,,
"पार्वती की माँ मैना रानी का नारद जी कॊ उलाहना"
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सवैया (मत्तगयंद)
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जाहि घरी हिमजा जनमी मुनि,काह कही तुम नारद बानी ॥
नींक मिलै बहुतै घर या कहुं, तीनहुँ  लॊक  नहीं वर सानी ॥
भॊरहिं तॆ उठि मॊरि-सुता नित,जात रही हरि धाम सयानी ॥
काह बिगार तुहाँर किया हम,दाव भँजाय लिहौ मुनि ज्ञानी ॥
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सवैया (मत्तगयंद)
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दीनहुँ बानर रूप रमा पति, ब्याह तुहाँरि  नहीं हुइ पायॊ !!
कारन एहि सुनौ मुनि नारद, काज सुहावत नाहिं  परायॊ !!
मॊरि लिलॊर चकॊरि सुता तुम, जानत बूझत धार बहायॊ !!
तीनहुँ लॊक इहै चरिचा मुनि, गौरहिँ ब्याहन बाउर आयॊ !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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जानत भॆद तुहाँर मुनी जग, नारद नाम मिला चुगली मां ॥
आँख मिलावति नाहि बनै अब,हॆरत काह गुनी बगुली मां ॥
एहि बदॆ बिन ब्याह रहॆ तुम, मंगल कॆतु शनी कुँडली मां ॥
कारज एक नहीं बन पावहिँ,  राहु चढ़ा तुहँरी  उँगली मां ॥
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सवैया (दुर्मिल)
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कस दॆव ऋषी  कहलाइ रहॆ, तुम नंबर  एक बड़ॆ घटिया ॥
इतहूँ उतहूँ  सुलिगाय मुनी, पुनि सॆंकहु हाँथ परॆ खटिया ॥
नहिं भॆद तुहाँरि मिलै कबहूँ, चुगला-चुगली पटवा-पटिया ॥
नहिं जानबु पीर पराय ऋषी, तुहँरॆ घर नाहि हवै बिटिया ॥
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सवैया (मत्तगयंद)
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भाँग पियै अरु गाँज पियै अरु, खाइ धतूर महा अड़बंगा !!
हाँथ लियॆ तुमरी वन डॊलत,लागत जईसन हॊ भिखमंगा !!
दॆह उँघारि फिरै दिन-रातहिं, घामहुँ-शीत नहाइ  न नंगा !!
मॊरि दुलारि बदॆ वर लायहु, कौनहुँ भाँति न हॊइ पसंगा !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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छींट कसी पुरवासि करैं अरु, बॊलहिं काह विवाह रचायॊ !!
दान दहॆज बचावँइ खातिर, राजन छाँटि  इहै वर लायॊ !!
नाँव धरैं नर-नारि हमैं सब,खॊजत-खॊजत का वर पायॊ !!
मातु-पिता अँधराइ गयॆ कस, गौरहिँ पागल हाँथ गहायॊ !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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काह कमी हमरॆ घर दॆखहु, राज धिराज हवैं हिम राजा !!
गूँजत चारु दिशा जयकारहिं, नींक घरान पुनीत समाजा !!
नौकर-चाकर सॆवक संतरि,नीति-पुनीति सुलॊक लिहाजा !!
कंचन कॆ नहिं कूत खजानहिं, द्वार सुमॆरु बजावत बाजा !!
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सवैया (किरीट)
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भॊरहिं तॆ उठि  मॊरि सुता नित, जात रही  हरि मंदिर द्वारन !!
हाँफत  हाँफत  काँपत  काँपत, शीतहुँ  घामहुँ  द्वार  बुहारन !!
बारिहुँ  मास  प्रदॊष  पुजाइश, सॊम अमावश  भाग सुधारन !!
कौन भला तप-जाप करै असि,मॊरि दुलारि कियॆ जस कानन !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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मॊरि सुता जप जॊग कियॆ बहु, रात दिना करि एकहिं डारॆ !!
खॊह  गुफा गिरि  कंदर अंदर, यॊग ब्रती तप  मंत्र उचारॆ !!
दान करै नित हॊम करै नित, ऒम् जपै उठि रॊज सकारॆ !!
पाहन पूज थकी बिटिया हरि, काह लिखॊ तुम भाग हमारॆ !!
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सवैया (मत्तगयंद)
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शीश झुकाय खड़ॆ मुनि नारद, बॊल रही हिम-भामिनि बैना !!
मॊरि सुता मलया-गिरि चंदन, या बर ठूँठ कुठारि कटै ना !!
मारत हाँथ लिलारि कतौ चिढ़ि, खींचत साँस बहावत नैना !!
क्वाँरि रहै सुकुमारि अजीवन, ब्याह करौं सँग बाउर मैं ना !!
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 कवि - "राज बुन्दॆली"

  • कवि - राज बुन्दॆली

    मित्रो,,,,,,,

    शिव पार्वती विवाह (खण्ड-काव्य) की प्रेरणा मुझॆ इसी ऒ.बी.ऒ. मंच सॆ मिली है,,,और आज उसी खण्ड काव्य के कुछ छंद आप सब कॆ आशिष हेतु सादर समर्पित हैं,,,,,,,,,,,आप सब के आशीर्वाद ,,,,सुझावॊं,एवं आलोचना-समालोचना का मुक्त हृदय से स्वागत है,,,,,,,,,,

    प्रणाम,,,,,,,कवि - राज बुन्देली,,,,,,,,,,,,,,,,,,

  • आशीष यादव

    वाह श्रीमान जी, आपने गजब का चित्रण प्रस्तुत किया है। कहीं विभत्स तो कहीं हास्य प्रभावी है।
    जैसे भोला वैसी ही उनकी बारात और और सबसे सुन्दर आपकी कलम से उनकी बारात का चित्रण।
    वाह.................


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    गंगा का पावन स्नान और श्रापग्रस्त देवराज इन्द्र को उनके कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलवाने वाले सोमेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना कर पैदल ही यात्रा करता अभी-अभी आ रहा हूँ. इन सवैयों का आनन्द बहुगुणा हो गया है. 

    बामहिं हाँथ गहॆ डमरू अरु, दाँहिन माल फिरावत भॊला !!
    ताल भरै जब नाम हरी धुन, जॊरहिं जॊर बजावत भॊला !!
    दॆखि रहॆ सुर-वृंद सबै छवि, कॊटिन काम लजावत भॊला !!
    आज भयॆ जग-नैन सुखी सखि,रूप-अनूप दिखावत भॊला !!

    अहा अहा ! भोला के विशुद्ध रूप का जो मनोहारी वर्णन हुआ है कि मन त्रयम्बकेश की ओर सश्रद्धा नत हुआ जाता है.

    सवैया छंद का गण-प्रवाह और पद-संयोजन तो ऐसा मनोहारी कि मानों सारे गण बस सप्तपदी हेतु बने अग्नि-पीठ तक पहुँचने की होड़ में बेसुध धाये-पराये-मताये दीख ही रहे हैं.. .

    दॆव कहैं बिहराइ चलॊ सब, आपन आपन सॆन सँवारी !!
    नाक कटै सबहीं कइ जानहु, दॆखत लॊग हँसैं दइ तारी !!

    वाह-वाह भाई राज साहब.. वाह ! .. पवित्र भाव से आपने जिस बारात का दृश्य प्रस्तारित किया है, वह अपने आप में अद्भुत, अलौकिक, अनिर्वचनीय है. उस दृश्य को शब्दबद्ध करने के लिए माँ शारद अवश्य ही विशेष सहाय्य हुई हैं.

    आज सवैया छंदों की वाचन-छटा से मन मताया बार-बार पेंग ले रहा है. ..

    नाँचत गावत कूँदत फाँदत, खींस निपॊरत भूत भयंकर !!
    बैल चढ़ॆ बृषकॆतु हँसैं सखि, पीटत दॊनहुं हाँथ दिगंबर !!
    दॆख हँसैं नरनारि बरातहिं,बालक मारि भगैं कछु कंकर !!
    नाग-गलॆ सिर-चंद-छ्टा सखि,दूलह आजु बनॆ शिवशंकर !!

    हार्दिक बधाई, भाई, हार्दिक बधाई..  

    इस मंच के सभी सदस्य एक बार इस प्रस्तुति को अवश्य ही मनोयोग से सस्वर पढ़े.. . और उस अद्भुत लोक में पहुँच जायँ जहाँ बमभोला की बारात सजी-सँवरी हिमवान के गृह-प्रासाद को प्रस्थान कर चुकी है.. .

  • केवल प्रसाद 'सत्यम'

    राज बुंदेली जी!   आप को शत-शत नमन! आपकी आँखो देखी शिव बारात की महिमा ने मेरे शब्दों पर अंकुश लगा दिया!

  • Harjeet Singh Khalsa

    Waah .......... Waah....... Waah............. Jai Mahadev......... Jai Shiv Shankar................

  • ram shiromani pathak

    Waah .......... Waah....... Waah............. Jai Mahadev......... Jai Shiv Shankar................ आपने गजब का चित्रण प्रस्तुत किया है। कहीं विभत्स तो कहीं हास्य प्रभावी है।
    जैसे भोला वैसी ही उनकी बारात और और सबसे सुन्दर आपकी कलम से उनकी बारात का चित्रण।
    वाह.................

  • कवि - राज बुन्दॆली

    Saurabh Pandey ,,,,,,,,,,,,,जी ,गुरुवर,,,,,,मैनॆ कुछ नहीं लिखा है,,,,,साक्षात बाबा विश्वनाथ ने जो आदेश दिया और माँ वाग्देवी नॆ सुझाया आप सब के स्नेह नें सींचा और यह कुछ कार्य प्रगति पर है, उसमे के ही कुछ अंश आप सबके चरणॊं मॆं सादर समर्पित कर दिये है,,,,,, आप सब के स्नेह एवं आशिष हेतु झोली फ़ैलाये खड़ा हूँ,,,,,,,,,आप सभी को प्रणाम,,,,,,,,,,,,,,,जय बाबा विश्वनाथ,,,,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    S K CHOUDHARY,,,,,,,,,,,,जी ,आदरणीय,,,,,,मैनॆ कुछ नहीं लिखा है,,,,,साक्षात बाबा विश्वनाथ ने जो आदेश दिया और माँ वाग्देवी नॆ सुझाया आप सब के स्नेह नें सींचा और यह कुछ कार्य प्रगति पर है, उसमे के ही कुछ अंश आप सबके चरणॊं मॆं सादर समर्पित कर दिये है,,,,,, आप सब के स्नेह एवं आशिष हेतु झोली फ़ैलाये खड़ा हूँ,,,,,,,,,आप सभी को प्रणाम,,,,,,,,,,,,,,,जय बाबा विश्वनाथ,,,,,,,,

  • Aruna Kapoor

    कितने सुन्दर वचन...कितना उत्तम संकलन!...पढ़ कर साक्षात शिव-पार्वती जी के अवतरित होने की अनुभूति होती है!..बधाई हो कवि- राज बुन्देली जी कि आपने इतना आनद प्रदान किया!

  • vijay nikore

    वाह, वाह, वाह! बहुत ही आनन्द आया पढ़कर।

    बधाई।

     

    सादर और सस्नेह,

    विजय निकोर

  • वेदिका

    बहुत अनोखे छंद रचे है आपने आदरणीय कवि - "राज बुन्दॆली" जी। मन कर रहा है कि बार बार पढू और पढ़ते रहू। सुर, ताल, लय , गत्यात्मकता ... क्या नही आपके रचे हुए छन्दों में ...  मन करता है जितनी बार इन्हें पढू उतनी बार प्रतिक्रिया दूँ।
    ऐतिहासिक रचना
    अनंत कोटि आदर भरी शुभकामनाये आपकी रचना को और आपको :)))))
    सादर वेदिका

  • कवि - राज बुन्दॆली

    वेदिका .  जी बहुत बहुत आभार आपका मेरी मेहनत आप को पसन्द आई,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    vijay nikore जी दिल से आभारी हूं आपका,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    Aruna Kapoor जी इस स्नेह हेतु आभार ,,,,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    ram shiromani pathak,,,, जी धन्यवाद,,,,,,,,,,,आभार,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    आशीष यादव,, ,,,,,,,,जी ये सब भोलेनाथ की ही कृपा है,,,,,,,और कुछ नही ,,,,,इस स्नेह हेतु आप का दिल से आभार,,,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    kewal prasad,,,,,,,,,जी ,आदरणीय,,स्नेह बनाये रखियेगा,,,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    ,Harjeet Singh Khalsa,,,,,,,,,,जी ,आदरणीय,,,,रचना पर आपने बहुमूल्य समय दिया,,,,,,,इस स्नेह हेतु दिल से आभार,,,,,,,,

  • Gorkhe Sailo

     शिव पार्वती विवाह (खण्ड-काव्य) सॆ कुछ छन्द– कवि - "राज बुन्दॆली"का ये रचनाएँ नेपाल से अपडेट हमारे रचना भण्डार में जरूर देखलेँ ।

  • लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

    अदभुत मनोहारी मन्त्र मुग्ध मत्त्गंद सवैया पढ़कर आनंद आ गया, ऐसे लगा जैसे मई स्वयं ही भोलेनाथ की बरात में 

    साक्षी रहा हूँगा | सचित्र वर्णन सा, इसे अगर स्वर देकर सुनाया जा सके, तो क्रपा होगी, अन्यथा यह कार्य आदरनीय 

    सौरभ जी, बागी जी को कह कर उनके श्रीमुख से करवाया जा सकता है | दिल से हार्दिक बधाई स्वीकारे श्रीराज बुन्देली जी 

  • कवि - राज बुन्दॆली

    Laxman Prasad Ladiwala  जी भाई साहब आप ने और समस्त ओ.बी.ओ.परिवार ने इतना हौसला दिया है,,,और साथ ही बाबा भोलेनाथ की कृपा ,,,,,,,अब मुझे साहस मिला है कि यह खण्ड काव्य और तेजी से पूर्णता की ओर गतिमान होगा,,,,, आप सबका स्नेह इसी तरह मिलता रहे,,,,,,,,,आप का दिल से आभारी हूं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    Gorkhe Sailo   जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,

  • राजेश 'मृदु'

    जस गौरी तस शंभु प्राणा, उमड़ै दोनों एक समाना

    मूड़ माथ कर दियो सुनहरा, अद्भुत तेरा खेल बिषहरा

    अत्‍यंत मनोहारी वर्णन, पूरी बारात मानो सद्य: उपस्थित है और मैना जी का उलाहना....बहुत सुंदर वर्णन

  • कवि - राज बुन्दॆली

    Rajesh Kumar Jha  जी भाई साहब ,,,,,वाह वाह वाह इस काव्य-मय प्रतिक्रिया ने तो चार चाँद लगा दिये रचना में,,,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,दिल से आभार,,,,,,,,जय भोलेनाथ,,,,बाबा,,,,,,

  • SANDEEP KUMAR PATEL

    ये प्रसंग पढ़ कर मन भक्ति रस में डूब गया/ दुर्मिल ,मत्तगयन्द सवैया छंदों का प्रयोग रस ,अलंकार ,छंद विधान,गति,यति,लय ,भाव प्रवणता आदि सभी दृष्टियों से पूरे काव्य सौष्ठव के साथ हुआ है / छंदों की इस अति दुरूह साधना में शब्दों को यत्र-तत्र मनोनुकूल स्वरुप में प्रयोग करने का अधिकार कवि को होता है,वह आपने कुशलता और पुरे काव्य सौंदर्य के साथ किया है / इस मनोहारी सृजन के लिए आप को बहुत बहुत बधाई \ सर जी बहुत बहुत बधाइ

    साधू साधू


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    //शारद, शॆष, सुरॆश  दिनॆशहुँ,  ईश  कपीश गनॆश मनाऊँ//

    किसी भी कार्य का शुभारम्भ ईश वंदना के साथ करना शुभ माना जाता है, कवि ने वंदना के रूप में बहुत ही सुन्दर और सुगढ़ सवैया कि प्रस्तुति है ।

    //जैसहिं है छवि दूलह की सखि,तैसि बरात सजावत भॊला//

    सत्यम शिवम् सुन्दरम ....दूसरा छंद शिव रूप को जैसे सामने रख दिया हो , बहुत ही खूबसूरती से शिव स्वरुप और सौंदर्य का वर्णन हुआ है ।

    //लागत आजु मसान सखी सब,आइ गयॆ बनि शंभु बराती//

    शब्दों का ऐसा चित्र कि लगता है शिव बारात का दृश्य आखों के सामने है, बुत ही सुन्दर छंद ।

    माता की उलाहना, नारद को खरी खोटी, पूरा प्रसंग बहुत ही ढंग से निभाया है आदरणीय, कुल मिलाकर ह्रदय छंद के सागर में और भक्ति के भाव सागर में गोते लगा रहा है ।

    आदरणीय कवि राज बुन्देली जी, यह पोस्ट पढ़ लिया था पहले भी किन्तु व्यस्तता के चलते इस पोस्ट पर टिप्पणी देने में विलम्ब हेतु क्षमा चाहूँगा । आज पुनः रसास्वादन का लाभ लिया ।

    बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत पोस्ट हेतु, शिल्प, कथ्य और भाव का मिश्रण देखते ही बनता है, ह्रदय से बधाई स्वीकार करें आदरणीय । 

  • कवि - राज बुन्दॆली

     Er. Ganesh Jee "Bagi"    जी भाई साहब,,,,,,,,,आपका स्नेह मिला सच मान...

    यॆ स्नेह बनाये रखियेगा,,,,,और प्रार्थना कीजिये भोलेनाथ से कि यह खण्ड-काव्य शीघ्र पूर्ण हो जाये,,,,,,,,,,,,

    मागउँ आजु अशीष अलौकिक,मोंहि दिहौ सबहीं भल ज्ञानी !!

    सेवक नाथ तुहाँरि भयॊ अब, मॊरि मती बहु भाँति भुलानी !!

    ब्याधि असाधि अगाधि भरीं तन, छंद-प्रबंध सबै बिसरानी !!

    नाव लगावहु पार सबै मिलि, है कविता सरिता सम दानी !!

    ,,,,,आपका ,,,,बहुत बहुत आभार,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,

  • कवि - राज बुन्दॆली

    SANDEEP KUMAR PATEL 

    जी भाई साहब,, इस स्नेह हेतु,,,आपका ,,,,बहुत बहुत आभार,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,