राजस्थानी साहित्य

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  • राजस्थानी भाषा में दोहे

    एक प्रयास ( राजस्थानी भाषा  में दोहे )छोरी चाली सासरे ,पकड़ बींद रो हाथ।बाबुल रो घर छोड़ियो , बींद बणायो नाथ ।।बाबुल रो घर छोड़यो, बींद बणायो नाथ ।दारू पी कर बींद ने, खूब मरोड़ो हाथ ।।आँख दिखावे बापरो, घणो सतावे नाथ ।दारू पी पी मारतो, कियाँ निभाऊँ साथ ।।हाल देख के बींद रो , आयो बाबुल याद ।कुण ने बोलां…

    By Sushil Sarna

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  • किशोर छंद

    किशोर छंदकिशोर मुक्तक "कोरोना"भारी रोग निसड़लो आयो, कोरोना,सगलै जग मैं रुदन मचायो, कोरोना,मिनखाँ नै मिनखाँ सै न्यारा, यो कीन्योकुचमादी चीन्याँ रो जायो, कोरोना।*** ***किशोर मुक्तक "बालाजी"एक आसरो बचग्यो थारो, बालाजी।बेगा आओ काम सिकारो, बालाजी।जद जद भीड़ पड़ी भकताँ माँ, थे भाज्या।दोराँ दिन से आय उबारो,…

    By बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

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  • हेली गीत "परदेशाँ जाय बैठ्या"

    हेली गीत "परदेशाँ जाय बैठ्या"परदेशाँ जाय बैठ्या बालमजी म्हारी हेली!ओळ्यूँ आवै सारी रात।हिया मँ उमड़ै काली कलायण म्हारी हेली!बरसै नैणां स्यूँ बरसात।।मनड़ा रो मोर करै पिऊ पिऊ म्हारी हेली!पिया मेघा ने दे पुकार।सूखी पड्योरी बेल सींचो ये म्हारी हेली!कर नेहाँ रे मेह री फुहार।।आखा तीजड़ गई सावण भी सूखो…

    By बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

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  • जकड़ी गीत "आसरो थारो बालाजी"

    जकड़ी गीत "आसरो थारो बालाजी"आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।जद रावण सीता माता नै, हर लंका में ल्याओ,सौ जोजन का सागर लाँघ्या, माँ को पतो लगायो।आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।शक्ति बाण जब लग्यो लखन के, हाहाकार मच्या था,संजीवन बूंटी नै ल्या कर, थे…

    By बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

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  • गीत (रोज सुणै है कै)

    रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।सुणकै मुळकी, हुयो हियो है तब सै बागाँ बागाँ।आज खटिनै से बागाँ माँ ये कोयलड़ी कूकी,पाणी सिंच्यो आज बेल माँ पड़ी जकी थी सूकी,मुख सै म्हारो नाँव सुन्यो तो म्हे तो मरग्या लाजाँ,रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।मनरै मरुवै री खुशबू अंगाँ सै फूटण…

    By बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

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  • एक राजस्थानी मुसल्सल ग़ज़ल -यादड़ल्याँ रा घोड़ां ने थे पीव लगावो एड़ |

    एक राजस्थानी मुसल्सल ग़ज़ल ***यादड़ल्याँ रा घोड़ां ने थे पीव लगावो एड़ | सुपणे मांयां आय पिया जी छोड़ो म्हासूँ छेड़ | १| ***इंया तो म्हें गेली प्रीतड़ली में थांरी भोत चालूँ थांरे लारे लारे ज्यूँ सीधी सी भेड़ | २| ***नींदड़ली रो काम उचटणों हो ग्यो नित रो खेल जद जद दरवाजो रात्यां ने देवे पून भचेड़ |३ | ***एक…

    By गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत '

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  • सावण सूखो क्यूँ !

    सावण सूखो क्यूँ !इबकाळ रामजी न जाण के सूझी, क बरसण क दिनां मं च्यारूँ कान्या तावड़ की  बळबळती सिगड़ी सिलागायाँ बठ्यो है | जठे देखो बठे ई लोग-लुगावड़ियां में कि बाट देखता-देखता आकता होगा | खेतां मायलो बीज निपजणों भूलगो | तपत  तावड़ के…

    By Ganga Dhar Sharma 'Hindustan'

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  • बिठाऊँ केइया नाव म- - -- - - (राजस्थानी गीत)

    बिठाऊँ केइया नाव म- - -- - - छोटी सी या म्हारी  है नाँव,जादू भरया लागे थारा पाँव |मनै डर सता रह्यों है राम,थानै बिठाऊँ केइया नाँव में | म्हारी तो या लकड़ी री नाँव,थे बणाद्यों भाटा न भी नार |ई सूं मनै है भारयों ही प्यारथानै बिठाऊँ कइया नाँव में | म्हारों तो छ यों ही रुजगार,पालूँ ई सूं सगलों परिवार…

    By लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

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  • राजस्थानी कविता उत्सव 26 फरवरी से 28 फरवरी तक आयोजित

    राजस्थानी साहित्य प्रेमियों को यह जानकार प्रसन्नता होगी कि साहित्य अकादमी, दिल्ली और राजस्थान अध्ययन केंद्र, राजथान यूनिवर्सिटी, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में 26 से 28 फरवरी,2015 तक राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के सीनेट हाल में किया जा रहा है |  राजशानी  कविता राजस्थानी कवि, लेखक व साहित्य अकादमी…

    By लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

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  • धरती रंग सुरंगी ...

    धरती रंग सुरंगी सी मन मां रस जगावे रे ऊँचा ऊँचा टीबा इण रांजीवण री आस जगावे रेलहर लहर लहरियों उड़ उड़आसमान पर छावे रेपंछी भी तो गीत धरा का मधुर स्वरां म गावे रे धरती रंग सुरंगी सी मन मां रस जगावे रे डिम्पल गौड़ 'अनन्या '(मौलिक और अप्रकाशित )

    By डिम्पल गौड़

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