राजस्थानी साहित्य

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जकड़ी गीत "आसरो थारो बालाजी"

जकड़ी गीत "आसरो थारो बालाजी"

आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।
भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।

जद रावण सीता माता नै, हर लंका में ल्याओ,
सौ जोजन का सागर लाँघ्या, माँ को पतो लगायो।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।

शक्ति बाण जब लग्यो लखन के, हाहाकार मच्या था,
संजीवन बूंटी नै ल्या कर, थे प्राण बचाया था।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।

जद जद भीर पड़ै भक्तन में, थे ही आय उबारो,
थारै चरणां में जो आवै, वाराँ सब दुख टारो।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।
भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।

तर्ज- तावड़ा मन्दो पड़ ज्या रै।

मौलिक और अप्रकाशित