चित्र से काव्य तक

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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 154

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ चौवनवाँ आयोजन है.   

 

इस बार के आयोजन के लिए सहभागियों के अनुरोध पर अभी तक आम हो चले चलन से इतर रचना-कर्म हेतु एक विशेष छंद साझा किया जा रहा है। 

इस बार के दो छंद हैं -  कुकुभ छंद   

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

23 मार्च’ 24 दिन शनिवार से

24 मार्च’ 24 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

23 मार्च’ 24 दिन शनिवार से 24 मार्च’ 24 दिन रविवार तक  रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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    Chetan Prakash

    कुकुभ छंद

    पूरब हो या उत्तर दक्षिण, क्रिकेट के सब दीवाने ।
    जलते रहते अभी धूप में, आठ देश हैं परवाने ।।
    क्रिकेट भारत बड़ा खेल है, सभी जगह खेला जाता ।
    यथा काश्मीर कन्याकुमारी, सब लोगों को यह भाता ।।

    सामन्त कभी खेला करते, सम्प्रति रंक रिझाता है ।
    बच्चों से बूढ़ो तक इसमे, मजा खूब आ जाता है ।।

    काम छोड़ कर फेरी वाला, मन ..को खेल.. रमाता है ।
    चाहे हो कुछ देर सही पर, दिल तो खुश कर पाता है ।।

    मौलिक व अप्रकाशित

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      DINESH KUMAR VISHWAKARMA

      कुकुभ छंद

      खेल जगत के देख रहा हूँ, जाने कौन रचे माया ।
      दाँव लगा हो हर पल जैसे, श्रमजल से लथपथ काया ।।
      कर्म भाग्य से लड़कर कोई, गर्वित हो इतराता है ।
      लेकिन हाथ किसी का हरदम, रीता ही रह जाता है ।।

      जीवन सरिता एक सभी की, भला कहाँ हो सकती है ।
      चाह मनुज की जो भी होती, दृष्टि वही बस तकती है ।।
      खेल भाव से देखे कोई, कोई समय बिताता है ।
      व्यर्थ समय को खोने वाला, रीता ही रह जाता है ।।

      मैं इक छोटा सा व्यापारी, सर पर बोझ रखे सारा ।
      आमदनी की भाग दौड़ में, जीती बाजी भी हारा ।।
      कभी बदलते यहाँ खिलाड़ी, फिर हर खेल रिझाता है ।
      दर्शक बदले, मन मेरा बस, रीता ही रह जाता है ।।

      एक इशारा निर्णायक का, हर धड़कन पर भारी है ।
      जितनी है कंदुक की सीमा, खेल वहाँ तक जारी है ।।
      राजा हो या रंक यहाँ पर, कौन सदा रह पाता है ।
      अहंकार में जीने वाला, रीता ही रह जाता है।।

      जब तक खेल चलेगा तब तक, मेरा यहाँ ठिकाना है ।
      यहीं नए कुछ साथी बनते, बिछड़ सभी को जाना है ।।
      मेरा कद छोटा है तुमसे, मगर प्रेम का नाता है ।
      भरम बड़प्पन का जो पाले, रीता ही रह जाता है ।।

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      मौलिक व अप्रकाशित

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        pratibha pande

        कुकुभ छंद 

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        लेकर दबी कुछ लालसाएँ, खेल को वो ताकता है।

        दे पेट बैरी का हवाला,बोझ सिर का डाँटता है।।
        सामान सारा बेचना है, चल निकल क्यों तू खड़ा है।
         जिद्दी बड़ा है मन सुने क्यों, शौक पर अपने अड़ा है।।
        ____
          
        छाया हरदम इसका मौसम,है फिरंगी खेल ऐसा।
        इसके खिलाड़ी हैं सितारे, और बरसे खूब पैसा।।
        बस इसके ही चर्चे होते, दूजे बिसर गये सारे।
        हाॅकी कुश्ती खेल देश के,पीछे सिमटे बेचारे।।
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        मौलिक व अप्रकाशित 
                                     
         
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