चित्र से काव्य तक

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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 150

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ पचासवाँ आयोजन है.   

 

इस बार के आयोजन के लिए सहभागियों के अनुरोध पर अभी तक आम हो चले चलन से इतर रचना-कर्म हेतु एक विशेष छंद साझा किया जा रहा है। दूसरा छंद कुण्डलिया रहेगा ही। इसतरह कुल दो छंदों में से किसी एक के, या बन सके तो दोनों छंदों में अचना-कर्म करना है। 

अर्थात, इस बार के दो छंद हैं - घनाक्षरी छंद (मनहरण घनाक्षरी) / कुण्डलिया छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

21 अक्टूबर अगस्त’ 23 दिन शनिवार से 22 अक्टूबर’ 23 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

मनहरण घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लि...

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 21 अक्टूबर अगस्त’ 23 दिन शनिवार से 22 अक्टूबर’ 23 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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    Ashok Kumar Raktale

    मनहरण घनाक्षरी

    *

    इतना भी घूर के न, देखो ऐसे आँखे फाड़, बड़ी मुश्किलों से मैंने, शौहर ये पाया है।

    कितने  ही तप  और, किये व्रत मैंने लोगों, तब जाके छोरा मेरी, चंगुल में आया है।

    मुझको  पसन्द  है ये, इसको  पसन्द  हूँ  मैं, दोनों में न अब कोई, तनिक पराया है।

    आरती  उतारता  है, आँगन  बुहारता  है, केश  भी  सँवारता है,तभी मन भाया है।।

    *

    रहें नहीं ऐंठकर, खटिया पे बैठकर, श्वेत केश देर तक, बालों में है खोजता।

    जूएँ भी निकाले और, पिन भी जो माँगू मैं तो, घूम-घूम घर भर, आलों में है खोजता।

    और कभी कंकड़ भी, माँगू तो साजन मेरा, डिब्बा-डिब्बा खोलकर, दालों में है खोजता।

    भोला ऐसा मन का है, खोयी वस्तू अँधेरे की, दौड़-दौड़ जाकर उजालों में है खोजता।।

     

    मौलिक /अप्रकाशित.

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    pratibha pande

    कुण्डलिया छंद 

    ___________
    रानी सुन सावन घटा, लगते तेरे बाल।
    कुछ चाँदी के तार पर,विघ्न  रहे हैं डाल।।
    विघ्न रहे हैं डाल, कौंधते बिजली जैसे।
    मुझको देते फिक्र, छोड़ दूँ इनको कैसे।।
    आज निकालूँ खींच, न चलने दूँ मनमानी।
    जरा खिसक कर पास,बैठ जा मेरी रानी।।
    ___________
    पप्पू के पापा सुनो,ध्यान लगाकर बात।
    बालों में कुछ घुस गया,जब सोई थी रात।। 
    जब सोई थी रात, जरा देखो तो झट से।
    नाखूनों के बीच, दबाकर मारो पट से।।
    नींद न आई रात, खो रही हूँ मैं आपा।
    अब न करो तुम देर,सुनो पप्पू के पापा
    ______
    मौलिक व अप्रकाशित 
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    लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

    मनहरण घनाक्षरी छंद
    ****
    सजनी सेंके धूप तो साजन केश सँवारे, दूर गाँव में ही दिखें ऐसे भले नजारे।।
    नहा धोकर धूप में साजनी जब खोलती, काले धने ये केश तो लगते बड़े प्यारे।।
    लेकिन दुख की बात, दिखते जूँयें लीख हैं, जब उनमें साजन बैठ के कंघी मारे।
    डाल मेडीकर मार, दे दो कोई सीख भली, वर्ना नजर आयेंगे, उसे दिन में तारे।।
    ***
    भोला भाला खूब वह, करता सजनी सेवा, जीवन जीना चाहता, जैसे हो परछाई।
    नर सा वो तो नार को, रखता है सम्मान दे, पर कहते हैं लोग क्यों, उसे भला लुगाई।।
    वैसे तो ये नवयुग, पर क्योंकर जन को, ऐसी समतामूलक बात नहीं है भाई।।
    सुन के जन की बात, प्रश्न उठा है मन में, कैसे सहज धुलेगी, मानस में जो काई।।
    ***
    *****
    मौलिक/अप्रकाशित

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