आंचलिक साहित्य

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  • सदस्य कार्यकारिणी

    अरुण कुमार निगम

    मया चिरई : अरुण कुमार निगम
    (छत्तीसगढ़ी गीत)


    जुग-जुग के नाता पल-छिन मा
    मिट जाय कभू छुट जाय कभू
    पल-छिन के नाता जुग-जुग के
    बन जाय कभू, बँध जाय कभू |


    कभू चीन्हत-चीन्हत चीन्है नहिं
    कभू अनचीन्हे चिन्हारी लगय
    कभू अइसन चीन्हा मिल जावय
    नइ जिनगी भर मिट पाय कभू |


    कभू हाँसत-हाँसत रोवय मन
    कभू रोवत-रोवत हाँसे लगय
    चंचल मन के का बात कहवँ
    उड़ जाय कभू रम जाय कभू |


    कभू अइसन अचरिज हो जाथे
    भागे नहिं पावै कहूँ कती
    ये मया चिरई बड़ अजगुत हे
    बिन फाँदा के फँस जाय कभू ||


    (मौलिक व अप्रकाशित)


    अरुण कुमार निगम
    आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

    [शब्दार्थ -

    मया चिरई = प्रेम चिरैय्या, कभू = कभी, चिन्हारी = पहचान, अइसन = ऐसा, चिन्हा = निशानी, अजगुत = आश्चर्यजनक, कहूँ कती = किसी ओर]


  • सदस्य कार्यकारिणी

    गिरिराज भंडारी

    बने छतीसढ़ी गीत लिखे हवौ भैय्या अरुण निगम जी , आपमन ला मोर डहन ले झारा झारा बधई हवे !! हमर भांखा के मान घलो बढ़ाय हवौ , ओखरो बर बधई लेवौ !!