आंचलिक साहित्य

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  • सदस्य कार्यकारिणी

    अरुण कुमार निगम

    मोर जानत मा ये मंच मा छत्तीसगढ़ी के पहिली टिप्पणी आपमन करे हौ. मन हा परसन होगे भाई. गीत रुचिस, मोर भाग खुलगे.

  • Omprakash Kshatriya

    लघुबाता – फिकर (मालवी) “ अरे ओ किसनवा ! लठ ले के कठे जा रियो हे ? मच्छी मारवा की ईच्छा हे कई ?” “ नी रे , माधवा ! गरमी मा पाच कौस पाणी लेवा नी जानो पड़े उको बंदोबस्त करी रियो हु.” “ ई लाठी थी ?” किसनवा से मोटी व वजनी लाठी देख कर माधवा की हंसी छुट गइ . “ हंस की रियो रे माधवा . बापू की लाठी से डरी ने मूँ सकुल जानो रुक सकू तो ये नदि का नी रुक सके.” ------------------------------ लघुकथा – चिंता “ अरे किसन ! लाठी ले कर किधर जा रहा है ? मछली खाने की इच्छा है ?” “ नहीं रे माधव ! गर्मी में पांच मील पानी लेने जाना पड़ता है. उसी का इंतजाम करना चाहता हूँ.” “ इस लाठी से ?” किसन से लम्बी और भारी लाठी देख कर माधव की हंसी छुट गई . “ हंस क्यों रहा है माधव. पिताजी की लाठी से डर कर मैं स्कूल जाना छोड़ सकता हूँ तो नदी बहना क्यों नहीं छोड़ सकती है ?” ----------- मौलिक और अप्रकाशित

  • सुरेश कुमार 'कल्याण'

    दिल आपणे नै डाट भाई रै ।
    क्यूं ठारया सिर पै खाटभाई रै ।

    अस्त्र शस्त्र बतेरे देखे।
    देखी सबकी काट भाई रै ।

    भाइयां मैं तो रल कै रै ले।
    क्यूं बण रया तों लाट भाई रै ।

    बाहर कितनिए मौज मिल्ज्या।
    घर बरगे नी ठाठ भाई रै ।

    बुराई जे तनै आंदी दिखै।
    भेड़ ले आपने पाट भाई रै ।

    सब की सोच एक सी कोनी।
    बातां नै ना चाट भाई रै।

    कोई चुस्सै बलदी चिलम नै।
    कोई पाणी का माट भाई रै।

    'कल्याण' मन की गांठ खोल दे।
    हाँ भर कै ना नाट भाई रै।।

    मौलिक एवम् अप्रकाशित
    सुरेश कुमार 'कल्याण'