महद्धनं यदि ते भवेत्, दीनेभ्यस्तद्देहि।विधेहि कर्म सदा शुभं, शुभं फलं त्वं प्रेहि ॥(यदि आप बहुत धन वाले हैं तो उसे दीनों को दान करें I सदा शुभ कर्म करें I उसका फल आपके लिए भी शुभ होगा ) यह संस्कृत का 'दोहड़िका' छंद है जो पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा की सरणियों से होकर हिंदी में आकर दोहरा या…
मात्रिक छंदों में गेयता की सुनिश्चितता हेतु निम्न विन्दुओं को ध्यान से देखें. शब्दों के उच्चारण और उसकी मात्राओं के समवेत स्वरूप के अनुसार शब्दों के 'कल' बनते हैं. जैसे, शब्दों के एकल, शब्दों के द्विकल, शब्दों के त्रिकल, शब्दों के चौकल, षटकल आदि. इन्हीं के अनुसार पदों का प्रवाह निर्धारित होता है.…
हिन्दी छन्द परिचय, गण, मात्रा गणना, छन्द भेद तथा उपभेद पिछले दिनों हिन्दी काव्य भूमि के नव हस्ताक्षरों के साथ एक कार्यशाला में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसमें अधिकतर नवकवि ग़ज़ल के साथ साथ छन्द के प्रति भी अति उत्सुक थे परिस्थितिवश यह बात मुझे कार्यशाला से पहले पता चल गई तो मैंने छन्द…
\जब से हिन्दी में ‘ग़ज़ल ’ लिखना शरू हुआ तब से हिन्दी के वर्णिक गण ‘नगण’ को हिन्दी के कवियों ने भी लगभग नकार दिया है I इससे हिन्दी की छंद रचना कुछ आसान तो हुई है, पर यह छंदों की वैज्ञानिकता पर एक बड़ा संकट है I हिन्दी छंदों में तमाम संस्कृत से ग्रहीत छंद है और संस्कृत का छान्दसिक व्याकरण कितना…
मेरे अग्रज कवि मित्र श्री मृगांक श्रीवास्तव ने मेरा आलेख ‘फर्क है ग़ज़ल और छंद के मात्रिक विधान में” पढकर जिज्ञासा प्रकट की कि क्या उर्दू की ग़ज़लें हिंदी या संस्कृत के मूल छंदों पर आधारित हैं I इसका सीधा उत्तर है – नहीं I हमें समझना चाहिए कि उर्दू की ग़ज़ल फ़ारसी की बह्रों पर लिखी जाती हैं I उर्दू में…
वस्तुतः, ग़ज़ल या छान्दसिक रचनाएँ पढ़ने की चीज़ थी ही नहीं. ये श्रोताओं द्वारा सुनने के लिए लिखी अथवा कही जाती थीं. काव्यगत प्रस्तुतियों की अवधारणा ही यही थी. इन अर्थों में किसी तरह के पंक्चुएशन-चिह्नों का कोई अर्थ नहीं हुआ करता था. रचनाकार अपनी भंगिमाओं, स्वरों में उतार-चढ़ाव और पढ़ने के अंदाज़ द्वारा…
इस पाठ में हम हरिगीतिका छन्द पर चर्चा करने जा रहे हैं. यह अवश्य है कि हरिगीतिका छन्द के विधान पर पहले भी चर्चा हुई है. लेकिन प्रस्तुत आलेख का आशय विधान के मर्म को खोलना अधिक है. ताकि नव-अभ्यासकर्मी छन्द के विधान को शब्द-कल के अनुसार न केवल समझ सकें, बल्कि गुरु-लघु के प्रकरण को आत्मसात कर…
तोमर छंद(परिभाषा )तोमर छंद एक मात्रिक छन्द है जिसके प्रत्येक चरण में १२ मात्राएँ होती हैं | पहले और दुसरे चरण के अन्त में तुक होता है, और तीसरे और चौथे चरण के अन्त में भी तुक होता है | इसके अंत में एक गुरु व एक लघु अनिवार्य होता है | श्रीराम चरित मानस में तीन स्थानों पर आठ-आठ (कुल २४) तोमर…
चार पदों तथा दो-दो पदान्तता वाले शक्ति छन्द में प्रति पद कुल अट्ठारह मात्राएँ होती हैं. छन्द परम्परा के अनुसार -१. इस छन्द में पद का प्रारम्भ लघु से होना अनिवार्य है. २. प्रत्येक पद में पहली, छठी, ग्यारहवीं तथा सोलहवीं मात्राएँ अवश्य लघु होती हैं. ३. पदान्त सगण (सलगा या ।।ऽ या ११२ या लघु-लघु-गुरु)…
वीर छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है. छंद में विषम चरण का अंत गुरु (ऽ) या लघुलघु (।।) या लघु लघु गुरु (।।ऽ) या गुरु लघु लघु (ऽ ।।) से तथा सम चरण का अंत गुरु लघु (ऽ।) से होना अनिवार्य है. इसे आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहते हैं. कथ्य अकसर ओज भरे…
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