"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
विषय : हैवान / रक्तपिपासु
अवधि : 29-04-2025 से 30-04-2025
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अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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प्रकृति की गोद में एक गुट के प्रवेश के साथ ही भयावह सन्नाटा पसर गया। हिंदू और मुस्लिम पर्यटक पृथक-पृथक कर दिये गये। पुरुष एक तरफ़ और दूसरी तरफ़ महिलाएं और बच्चे। केवल एक नवविवाहित जोड़ा एक दूसरे से लिपटा हुआ खड़ा रह गया।
"कहना मान और दूर हट! वरना दोनों खोपड़ियों को उड़ा दूॅंगा।" काली पोशाक में एक युवा दाढ़ीवाला उनके नज़दीक़ आकर बोला।
"मार दो, हम दोनों को मार दो, लेकिन बाक़ियों को छोड़ दो!" उस जोड़े में से महिला स्वर गूॅ़ंजा।
आतंकी ने बंदूक की नोक से धक्का देकर युवा महिला को दूर गिरा दिया और उसके पति को धकेलते हुए दूसरी तरफ़ ले जाकर बोला, "अपना नाम बताओ और कलमा सुनाओ!"
"देशराज सिंह चौहान नाम है मेरा!" उसने सीना तान कर कहा और अपनी खनकती आवाज़ में अरबी कलमा सुना दिया, पहले संस्कृत में अनुवादित और फ़िर ॲंग्रेज़ी में।
"क़ुरआन पढ़ा है कभी या सिर्फ़ ये रट लिया?" आतंकी ने आश्चर्य मिश्रित दबंग स्वर में पूछा और बोला, "अरबी में कलमा सुना ज़ल्दी! मैं अरबी और क़ुरआन का स्कॉलर हूॅं!"
"वो तो लग रहा है! तूने केवल रटा है या समझा भी है उस अनूठे ग्रंथ के असली संदेश को!" युवक ने उसकी बंदूक की नाल सख़्ती से पकड़ते हुए तेज़ स्वर में कहा।
"बकवास करता है!" आतंकी ने उसे ज़मीन पर पटकते हुए कहा।
युवा अपनी पत्नी की ओर देखने लगा, जो रो-रोकर बेहाल थी वादियों में गोलियों की आवाज़ें सुनकर और लाशों की संख्या बढ़ती देखकर।
"तूने रहीम और कबीर दास जी के दोहे पढ़े हैं कभी!" युवा ने चिल्लाकर आतंकी से पूछा, "एक-दो सुना तो ज़रा!"
"हमारी आसमानी क़िताब और मेरा मज़हब ही अफ़ज़ल है!" आतंकी युवा की छाती पर बंदूक टिकाकर दबाते हुए बोला।
"...और तू उसकी अफ़ज़लिय्यत हम निहत्थों बेकसूरों को मार कर दिखा रहा है, क़ाफिर!" युवा अबकी बार गुर्राकर बोला, "आक थू!"
आतंकी से अब बर्दाश्त न हुआ और उसने उस युवा की खोपड़ी पर गोली चला दी। इधर गोली की आवाज़ गूॅंजी, उधर उसकी पत्नी दौड़कर आतंकी के पास आकर चीखी, मुझे भी मार दे काफ़िर!"
"देखो नानी राक्षस! बड़े-बड़े सींगो वाला, दाँतों वाला,खा जाता है!"
"ओहो! मैं तो डर गई "
"आपके पास है ऐसी स्टोरीबुक राक्षसों वाली?"
"स्टोरीबुक तो नहीं है पर सचमुच की स्टोरी है राक्षसों की" नातिन से बातें करते हुए सविता की आवाज अचानक गंभीर हो गई।
"सचमुच की! ऐसे ही सींगों वाले दाँतों वाले राक्षसों की!"नन्ही नेहा नानी के और पास खसक आई।
"उनके सींग दाँत कुछ नहीं थे बेटा। दिखने में जैसे हम हैं वैसे ही थे पर थे इन राक्षसों से भी ज़्यादा खूँखार और जालिम"
"सबको खा गये!"
"हाँ बेटा सबको खा गये, सबको...सबको" नातिन से छिपकर सविता ने आँसू पोंछे और खड़ी हो गई।
"क्या माँ! सँभालो अपने को" पीछे खड़ी बेटी ने माँ का हाथ पकड़ लिया
"सँभालो!सँभालो! इतने सालों से हम लोग और कर क्या रहे हैं! तू पाँच साल की थी और तेरा भाई पेट में था जब उन दरिंदों ने हमें हमारे ही घर से बाहर खदेड़ दिया था..और..और.." सविता अब फफक कर रो रही थी।
" माँ.,पुरानी बातों को याद करके क्या होगा!"
" तो तू बता नया क्या है? क्या बदल गया है अब कश्मीर में?" बेटी की आँखों में झाँकते हुए सविता का चेहरा दर्द और गुस्से से तन गया
“ऐसे गाँव में आकर बस गए हैं कि डाक हमारे घर पर आता ही नहीं है…!”
“तुमको यह गाँव लगता है, महानगर का विस्तार अब इधर ही होने वाला है। वैसे तुम्हें अभी डाक की याद कैसे आ गई?”
“पंजीयन का मूल प्रमाणपत्र डाक से आया था, जो इन सात वर्षों में हमें नहीं मिला। उसके नकल और उससे सम्बंधित कागजात आने वाले थे। फिर गड़बड़ा नहीं जाए मैं सचिवालय होकर आती हूँ।”
“वहाँ मध्याह्न भोजन के बाद ३-४ बजे भेंट होने के समय है और ५ बजे सचिवालय बंद हो जाता है।”
“देखिए इनका कागजात बेहद जरूरी इनको दे दीजिए। लाइए मैं हस्ताक्षर कर देता हूँ।”
“सर। कल आकर ले जाएँ. . .। कागजात तैयार करने में समय लगेगा, अनावश्यक इनको प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।”
“उसकी चिन्ता आप नहीं कीजिए। इनको अपने कमरे में ले जाइए।”
अनेक घेरे में मेज कुर्सी लगा हुआ बहुत बड़ा कमरा था, जिसमें पुरुषों से ज़्यादा महिला कर्मचारियों की भीड़ छुट्टी होने के बहुत पहले से छुट्टी के माहौल में थी। ५ बजे तो भीड़ छँटने लगी!
“सर! मेरे लोन को पास हो जाने के लिए आपके अनुमति की जरूरत है!”
“देखो! अब छुट्टी का समय हो गया। काग़ज़ लेकर घर जा रहा हूँ। तुम आज की रात मेरे घर रुक जाना!”
Sheikh Shahzad Usmani
yesterday
pratibha pande
"देखो नानी राक्षस! बड़े-बड़े सींगो वाला, दाँतों वाला,खा जाता है!"
21 hours ago
vibha rani shrivastava
"मौलिक व अप्रकाशित"
15 hours ago