"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-106 (विषय: प्रतीक्षा)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-106 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय 'प्रतीक्षा', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-106
विषय: 'प्रतीक्षा' 
अवधि : 30-01-2024 से 31-01-2024 
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अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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    Sheikh Shahzad Usmani

    भूखे (लघुकथा) :


    बड़े अस्पताल के बाह्य रोगियों की भीड़-भाड़ में बंदर भी अपनी भोज्य सामग्री की जुगाड़ में थे। तभी एक वरिष्ठ बंदरिया एक झोले की चीर-फाड़ कर बचे-खुचे भोजन के लिए प्लास्टिक के टिफिन ऐसे खोलने लगा जैसे कि प्रशिक्षित या अनुभवी हो। लोग यह दृश्य देखकर मज़े ले रहे थे। बाल-बंदर अस्पताल की बिल्डिंग के छज्जे से अपनी मां की गतिविधियों को ग़ौर से देख रहे थे।
    "मम्मी छोड़ दो वह सब। लोग हंस रहे है! तुम्हारा वीडियो बना रहे हैं!" बंदरिया का एक बच्चा बोला।
    "हंसने दो! हम उन पर हंसते हैं और हंसेंगे... इतना सारा भोजन यूं ही फैंकते हैं... बरबाद करते हैं। हम ही तो इस अन्न की क़ीमत समझते हैं!"
    "मम्मी, आ जाओ वापस... हम जूठन नहीं खायेंगे अब! देखो उन लोगों के बच्चे पैकेटों में नई -नई चीज़ें खा रहे हैं। हमें भी पैकेट ही चाहिए!" दूसरे नन्हे बंदर ने कहा।
    भूखी बंदरिया भीड़ से डरकर जूठन बच्चों तक नहीं पहुंचा सकी, तो खुद ही किसी तरह पेट पूजा करने लगी।
    दर्शकों की भीड़ में एक महिला अपने पेट पर हाथ धरे अपने साथ के भूखे मरीज़ और बच्चों को निहारते रह गई।


    (मौलिक व अप्रकाशित)

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    vibha rani shrivastava

    मानी पत्थर

    “दो-चार दिनों में अपार्टमेंट निर्माता से मिलने जाना है। वो बता देगा कि कब फ्लैट हमारे हाथों में सौंपेगा! आपलोग फ्लैट देख भी लीजिएगा और वहीं से हमलोग ननद के घर रात में रुककर, दूसरे दिन वापस आएँगे..!” देवरानी ने कहा।
    “तुमलोग चली जाना, मैं नहीं जा सकूँगी।” जेठानी ने कहा।
    “क्या आप हमारा घर देखना नहीं चाहेंगी?” देवर ने पूछा।
    “देखूँगी न! अवश्य देखूँगी जब आपलोग उस घर में व्यवस्थित हो जाएँगे। आ जाऊँगी किसी दिन आपके घर से मिलने।” भाभी ने कहा।
    “इस बार तुम्हारा चलना अलग बात होती…।” पति ने कहा।
    “तब क्या अलग बात नहीं थी जब आपने फ्लैट खरीदा था। ख़रीदने के पहले कम से कम दस फ्लैट को जाँच-परखकर, मोल-भाव हुआ होगा। नहीं-नहीं पहले तो योजना बनी होगी; उसके पहले भी रक़म जमा की गयी होगी। किसी एक पड़ाव पर मेरे कानों तक बात पहुँची होती।”
    “लगभग बीस-पच्चीस साल पुरानी बातों का क्या बदला लेना चाह रही हो?”
    “बदला! किस-किस बात का बदला लूँ और क्या बदला लिया जा सकता है? आपके संग आपसे मिले सारे रिश्तों ने मेरे सम्मुख केवल अपनी-अपनी माँग रखी। और मैं अधिकार का बिना कोंपल उगाये अपना संपूर्ण अस्तित्व कर्त्तव्यों के पीछे विलीन कर सारी उम्र ख़र्च कर गयी। आपने अपने मित्र और उनकी पत्नी के संग बड़े से फ्रेम में लगी अपनी जो तस्वीर को अलमीरा में डाल रखा है। आप दोनों मित्र एक दिन ही सेवा निवृत हुए थे। मैं अपने बुलावे का देर रात तक प्रतीक्षा करती रही…।”

    मौलिक और अप्रकाशित
    रचना काल : ३१ जनवरी २०२४
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    TEJ VEER SINGH

    राम राज्य - लघुकथा - 

    सुलोचना, सुबह पांच बजे तैयार हो जाना। गाड़ी लेने आ जायेगी। राम जी के दर्शन के लिये यही समय तय हुआ है। बाद में बहुत भीड़ हो जायेगी।

    "नहीं दीदी आप और जीजाजी चले जाना। हमारा जाना संभव नहीं होगा।

    "अरे ये क्या बात हुई? हम इतनी दूर से यहाँ तुम्हारे शहर आये हैं।और तुम खुद अपने ही शहर में राम जी के दर्शन में आनाकानी कर रही हो।

    "ऐसी बात नहीं है दीदी। हम लोग गये थे, पहले दो बार, मगर हमको प्रवेश नहीं करने दिया। दरबान ने भगा दिया।" 

    "क्या बात कर रही हो? ऐसा कैसे हो सकता है?”

    "हम लोग अछूत हैं ना इसलिये।

    "हम भी तो तुम्हारे ही जाति वाले हैं लेकिन हमारे पति को तो निमंत्रण पत्र भेजा गया था।

    "दीदी, क्या है ना कि हम लोग लोकल हैं। सब जानते पहचानते हैं। हम काम धंधा भी अभी वही कर रहे हैं। और आपके पति  तो बड़े सरकारी पद पर हैं। हो सकता है उनको बुलाने के पीछे कोई मजबूरी रही हो।

    "हम लोग इस बारे में मन्दिर में बात करेंगे और देखो कुछ ना कुछ कर लेंगे। तुम निराश मत होना।

    "नहीं दीदी, आप ऐसा कुछ मत करिये।बेकार में आप परेशानी मोल ले रहे हैं।

    "कैसी परेशानी?”

    "हो सकता है उन लोगों को आपकी जाति बिरादरी की जानकारी ही ना हो। नाहक आप अपनी बंद मुट्ठी खोल रही हैं।

    "तो क्या तुम कभी भी राम जी के दर्शन नहीं कर पाओगी।

    "दीदी, अभी तो राम जी आये हैं। देखना एक दिन राम राज्य भी आयेगा।" 

    मौलिक एवं अप्रकाशित

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