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जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में
वो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी में
दिखाई ही न दें मुफ़्लिस जहां से
न हो इतनी बुलंदी बंदगी में
दुआ करना ग़रीबों का भला हो
भलाई है तुम्हारी भी इसी में
अगर है मोक्ष ही उद्देश्य केवल
नहीं कोई बुराई ख़ुदकुशी में
यही तो इम्तिहान-ए-दोस्ती है
ख़ुशी तेरी भी हो मेरी ख़ुशी में
उतारो ये तुम्हें अंधा करेगी
रहोगे कब तलक तुम केंचुली में
जलें पर ख़ूबसूरत तितलियों के
न लाना आँच इतनी टकटकी में
सियासत, साँड, पूँजी और शुहदे
मिलें अब ये ही ग़ालिब की गली में
बहुत बीमार हैं वो लोग जिनको
फ़क़त एक जिस्म दिखता षोडशी में
अगरबत्ती हो या सिगरेट दोनों
जगा सकते हैं कैंसर आदमी में
गिरा लेती है चरणों में ख़ुदा को
बड़ी ताकत है ‘सज्जन’ जी मनी में
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
जनाब Samar kabeer साहब,, आप सही कह रहे हैं, एक शब्द या को ये कर देने से शेर की सुंदरता बढ़ रही है। सुझाव के लिए आभारी हूँ जनाब। बेबह्र मिसरे की तरफ ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया। इसे शीघ्र ही ठीक करता हूँ। मुहब्बत बनी रहे जनाब।
Jul 14, 2024
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
Jul 30, 2024
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
6 hours ago