"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।
पर मुद्दा "कृष्ण" या "प्रेम" से नहीं है। बल्कि किसी का बुरा मनाने से है। हम तो किसी को कोसते हुए भी कहते हैं कि " ओ तेरा…"
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी...
लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु वो संबंध में व्यापार भी करते रहे
दुख विरह स्वीकार करके प्रेम के सम्मान मेंअश्रु का नेपथ्य में सत्कार…"
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि रोजमर्रा की ज़िन्दगी में हम 'भगवान' को कोसते ही तो रहते थोड़ी ज्यादा बरसात हो "हे…"
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान अपने सहयात्रियों को भी इसे सुनाया था. अपरिहार्य कारणों से लेकिन टिप्पणी नहीं दे पाया था. .
इस…"
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब, मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु अलग होनी चाहिए जबकि उक्त रचना विशेष आत्मगत है !//ग़ज़ल के सभी अशआर एक ही थीम…"
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा था. तभी अप्रिहार्य कारणों से पैत्रिक गाँव जाना पड़ गया. खैर.. आपकी प्रस्तुति के कई शेरों पर…"
"आदरणीय अजय अजेय जी,
मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ। ऐसे में, तमाम कार्यों के साथ-साथ यहाँ कनेक्टिविटी की भारी समस्या है। अतः प्रतिक्रिया में विलम्ब हुआ…"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।
आपके दोहों के लिए धन्यवाद और हार्दिक बधाई।
यह अवश्य है कि विश्वासघात का विन्यास - विश्+वा+स+घा+त…"