न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून लिखते किताबों में हम।१। * हमें मौत रचने से फुरसत नहीं न शामिल हुए यूँ जनाजों में हम।२। * हमारे बिना यह सियासत कहाँ जवाबों में हम हैं…See More