दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज गौने क पाहुर बन्हल गाँठ राजा छुड़ावल ना जाला दियनवा जरा के बुझावल ना जाना बिसरबा तू केतनो कबों ना…See More
दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह, उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार ।।मौसम की मनुहार फिर, शीत हुई उद्दंड ।मिलन ज्वाल के वेग में, ठिठुरन हुई प्रचंड ।मौसम आया शीत का, मचल उठे…See More
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी न लोच सो बीते को भूल कर, सुधि आगे की सोच तब के दिन भी खूब थे, थी मन में बस प्रीत सब के प्रति समभाव…"