परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा वरिष्ठ शायर ख़ुमार बाराबंकवी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है।तरही मिसरा है:“अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम…See More
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। कुंडलियां छंद विधान अनुसार रचना पर पुनर्विचार निवेदित है। इसे यूं भी…"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार
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कहो आँधियों से न दीपक बुझाना
दबा राख भीतर का शोला चुनेंगे। इस शेर के पर पुनर्विचार निवेदित है।//
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कहो…"
"कुंडलिया
उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर
अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर
खूब मचाएं शोर, न देखें पीछा आगा
देश भी टुकुर टुकुर,देखे उनको अभागा
लोकतंत्र के खम्भे, चम्मच बन फेरें…"