"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है।
आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे कोई जला तो नहीं।।// बहुत अच्छा शेर हुआ। ऊला देख लीजिएगा यदि और स्पष्ट हो जाए तो ।
हो गयी है …"
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और समुंदर वाले शे'र पर आश्वस्त रहें... यहाँ कोई त्रुटी नहीं है ."
"इक नशा रात मुझपे तारी था
राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2
बारहा मुड़ के हमने ये देखा
कोई हमको भी देखता तो नहीं 5
शहर-ए-दिल में तलब किया जिसको
यार तेरा वो लापता तो नहीं…"