"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा पूर्ण कर दी है। इसके लिए असीम हार्दिक बधाई और आभार।
ओबीओ पर पसरे सन्नाटे को देख मन कलपता है। कई बार इस…"
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न हमसे किसी को होअपना था गाँव, गाँव की आँखों के नूर थे।।*केवल हँसी थी और वो अद्भुत था बचपना।जो…"
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद।
करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।।
रे भैया ओबीओ के बाद।
वो भी क्या दिन थे सखी, रचना कर तैयार।
आयोजन खुलना तके, हम सब बारम्बार।
सखी री हम सब बारम्बार।
वो भी क्या…"
पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी मिट्टी मेंकभी चूल्हे की आँच में, कभी पीपल की छाँव मेंऔर कभी किसी अजनबी के नमस्कार में सुनाई पड़ते थेतब हम…See More
परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा इस दौर के मशहूर शायर तहज़ीब हाफ़ी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है। तरही मिसरा है: “तुम्हें कुछ…See More