"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके को समर्पित है जो इस चित्र के माध्यम से इंगित है.
ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग …"
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय .. पड़ती गर्मी फटता बादल किया जाना उचित होगा.
शाम हुई जब सूरज…"
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती है.
प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती रचना का हार्दिक धन्यवाद.
यह अवश्य है, कि प्रस्तुत रचना के पद…"
"सरसी छन्द
ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग
बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग
फिर भी नहीं क्यूँ चुभते हमें, मखमल बिस्तर नींद
अब तो बीत गई हैं सदियाँ, छूट रही उम्मीद
मौलिक एवं अप्रकाशित "