"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत, आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर प्रकाश मान हुए हैं। ' गीत का अपना एक विशिष्ट शिल्प होता है, जिसका निर्वहन आपकी…"
"गीत
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सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में,
संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की।
रचना अनुपम,
धन्य धरा फिर,
माँ की ममता से सुरभित की।
मानव, पशु, पक्षी, जीव जगत,
जन्मा कोई या हुआ प्रकट।
सब लोकों को संदर्भ…"
"माँ पर गीत
जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं।
माँ की लोरी से अधिक मधुर कोई गीत नहीं,इस धरती पर माँ से बढ़ कर कोई मीत नहीं।
माँ की ममता अजर अमर, होती गुमनाम…"
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके अनुमोदन से इस प्रस्तुति और मेरे रचनाकर्म को समर्थन मिल रहा है, सो अलग. हार्दिक धन्यवाद,…"