दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह, उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार ।।मौसम की मनुहार फिर, शीत हुई उद्दंड ।मिलन ज्वाल के वेग में, ठिठुरन हुई प्रचंड ।मौसम आया शीत का, मचल उठे…See More
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी न लोच सो बीते को भूल कर, सुधि आगे की सोच तब के दिन भी खूब थे, थी मन में बस प्रीत सब के प्रति समभाव…"
"वो भी क्या दिन थे,
ओ यारा,
ओ भी क्या दिन थे।
ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा देता।
बाड़े की हलचल कहती कोई हमरी सुध लेता।
आहट करता एक सयाना, पूरा ही घर जागे।
मां- बाबा चाचा- चाची सब…"