आध्यात्मिक चिंतन

इस समूह मे सदस्य गण आध्यात्मिक विषयों पर चिंतन एवं स्वस्थ चर्चायें कर सकतें हैं ।

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  • indravidyavachaspatitiwari

    हमारे प्रभु का नाम हजार बार लेने से और अनेकों बार लेने से जो सुख मिलता है उसका वर्णन करना किसी के वश में नहीं है। क्योंकि उनकी दयालुता का ध्यान करने पर आपके हृदय को इतनी शांति मिलती है कि आप चाह करके भी उसकी चर्चा दूसरे से करने से अलग नहीं रह सकते। प्रभु का नाम ही सार है और जो कुछ भी वह असार है। आपको जो ज्ञान मिलेगा वह प्रभु से ही मिलेगा और आपको अपना उद्धार चाहिए ही इसलिए भगवान का नाम ही लेना उचित है। आपको यदि भगवान खोजना है तो बिनोबा जी के शब्द ों में उसे हम द रिद्र नारायण का नाम दे सकते हैं । हमें भगवान को पाना है तो दरिद्र की सेवा करनी ही पड़ेगी सेवा से ही मेवा मिलती है। सेवा करने के लिए घमण्ड का परित्याग करना होगा। आपके पास घमण्ड है तो आप सेवा नहीं कर सकते। आपको सेवा के लिए घमण्ड को छ ोड़ना पड़ेगा।

  • vijay nikore

    आदरणीया इन्द्रा जी, आपने जो कहा, सही कहा। आपके कहे को आत्मसात कर सकें, प्रभु से यह प्रार्थना है। प्रभु को याद करने के लिए नियमित समय की, नियमित स्थान की, ज़रूरत है भी, और नहीं भी ... depending on how evolved we are in our journey to God. इतना विश्वास रखें कि प्रभु पल-पल हमारा ख्याल रख रहे हैं, बिन मांगे हमें दे रहे हैं, माया में व्यस्त, हम ही उनकी करुण पुकार को नहीं सुन रहे। जिसने भी यह पुकार सुनी, वही तर गया। श्री रामकृष्ण परमहँस जी ने, स्वामी विवेकानन्द जी ने यह पुकार सुनी, और वे हम सभी को कितना कुछ दे गए। आभी २ सप्ताह हुए  Pasadena, California में हमें उस घर पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जहाँ स्वामी जी लगभग १२० साल पहले कुछ दिन ठहरे थे। उनका श्यन-कक्ष अब shrine है। वहाँ अभी भी उनकी साँसे मानो जीवित हैं, हम सभी को उन्हें जानने के लिए, उनके कदमों में चलने के लिए।

    आप यहाँ अपने विचार और भी साझे करें तो कृपा होगी।

  • DR ARUN KUMAR SHASTRI

    लेखक - डॉ अरुण कुमार शास्त्री /  अबोध बालक // अरुण अतृप्त  

    अभ्यास और शिक्षा का मूलकांक    

    किसी ने पून्छा कि  क्या समय अंतराळ से जो शिक्षा ली थी वो बिना अभ्यास के निरस्त हो जायेगी 
    मैने कहा नही ऐसा नही अतः --

    यहां अपने विचार, मत को बल देने के लिये मै पूर्व चर्चा में व्यक्त पुन्ह: कुछ भाव व्यक्त करना चाहूंगा, मनुष्य का दिमाग सृष्टि के रचनाकार ने बहुत सुगढ़ता व् दूरदृष्टि से रचा है उसमें ३ अतिविशिष्ट हिस्से निर्मित किये,  ये ठीक उसी प्रकार हैं जैसे आज का कंप्यूटर मतलब सीधा २ ये हुआ की मनुष्य ने मनुष्य के ही दिमाग से कॉपी पेस्ट कर के ये मशीन जिसका नाम कम्प्यूटर है बनाई / लेकिन इन ३ अतिविशिष्ट जो  हिस्से हैं इनका जिकर करने से पहले [ क्यू कि इनके लेखन से चर्चा का भाव दुसरे विषय में तबदील हो जायेगा ]]  मैं  इसमें एक बात और जोड़ना चाहूंगा, वो है काल्पनिक यादाश्त [ आर्टिफिशियल मेमोरी ] या artificial intelligence सही technical भाषा में , जो की इस कंप्यूटर को सही सही मनुष्य के दिमाग के अनुसार सोचने को बल देती है साथ में इसकी programing . अब आते हैं आज की चर्चा के असली विषय पर  * *क्या अभ्यास  के अभाव में शिक्षा विलुप्त हो जाती है*  सीधा स्पॉट जबाब मैं दे चुका--- नहीं  !! बिल्कुल नही 

    क्यों. ? क्यों कि ---  उसमें ३ अतिविशिष्ट हिस्से निर्मित जो  किये गए उनका काम यही है कि मनुष्य या मनुष्य द्वारा trained - पालतू जानवर भी या अन्य जानवर भी  [[[[ जैसे शरद ऋतु में आपने देखा होगा असंख्य प्रवासी पक्षी पूरे विश्व में और भारत भर में अन्य अन्य देशो से  जहां बर्फ के कारण सारा प्रिथवी भाग ढक जाता है तो अपने भोजन के लिये वे हजारो मील की यात्रा हर साल करते है लेकिन एक साल का लम्बा अंतराळ भी उनको ये सब भूलने नही देता , ]] उन सभी पूर्व शिक्षित कार्य को भूल न जाएं हां जैसे ही उन अभ्यासों की पुनरावृति होती, करते  या कराई जाती है पूर्व में सिखलाये या सीखे सभी पाठ,  क्रियाएं बापिस उसी सुर ताल अभ्यास से प्रगट हो जाते हैं |  

    यहाँ मैं मेडिकल साइंस के २ अन्य उदाहरण देता हूँ जो आप अपने सामान्य जीवन में देखते रहते हो / एक साइकिल चलाना , एक पेन से लिखना कितना भी आपका अभ्यास छूटा हो कितना भी समय का अंतराल हो जैसे ही आप पूर्व में सीखे इन कर्मों को दोहराना शुरू करते हो ये उसी प्रशिक्षण के अनुरूप आपके पास आपके अंग संग आपकी धरोहर के रूप में प्रकट होते जाते हैं 

     

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