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इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,
by PHOOL SINGH
Jan 8
प्रथम रुषाली कर्ण की पत्नी
जिसे पितृ इच्छा से पाता
दूसरी कहलाती सुप्रिया, खास भानुमती से जिसका नाता||
अंसावरी को वही बचाता
था आतंकवादियों ने जिसको घेरा
प्रेम करती उससे पहले, फिर सुतपुत्र कह धुत्कारा||
स्वयंवर जीता अंसावरी का
प्रेम था उससे करता
धुत्कार जिससे सह चुका था, अब स्वीकार न उसको करता||
दासी पद्मावती उससे प्रेम थी करती
विनती राजा से उसकी करता
अटूट रिश्ता सदा उससे रहता, सच्ची संगनी जग पद्मावती को उसकी कहता||
द्रौपदी स्वयंवर में आया कर्ण
दुर्योधन का सहायक बनता
पहली नजर में दिल हारता, जब द्रौपदी के सम्मुख पड़ता||
स्वीकार न करती अपमानित करती
वक़्त उसको फिर से छलता
अजीब स्थिति से उलझता हरदम, भावुक हृदय सूतपुत्र था||
दासियों ने ही स्वीकारा जिसको
जो महान धनुर्धर अपने वक़्त का
छलती आयी नियति हमेशा, पर वो सदा अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ता||
उसके होने न होने से फर्क न पड़ता
अजीब जीवन का किस्सा
दुर्योधन और कृष्ण समझते, मर्म उसके तड़पते मन का||
उनसे हमेशा धुत्कार है खाता
जिनसे प्रेम सच्चा करता
सूतपुत्र होने का बड़ा मोल चुकाता, खुद को फिर भी जिंदा रखता||
रुषाली-सुप्रिया बनी कई पुत्रों की माता
सुत युद्ध की बलि में चढ़ता
महाकाल का तांडव जिसमे, जिंदा वृषकेतु ही बचता||
इन्द्रप्रस्थ का राजा उसे बनाकर
युधिष्ठिर गज़ब का निर्णय सुनाता
अनूठा रिश्ता उससे निभाकर, अपने धर्म के पक्ष को रखता||
धर्म की स्थापना कर सभी ने
धर्म को जिंदा रखा
अपने-अपने कर्तव्य में निपुण रहे सब, सबका सुख-सुविधा में जीवन कटता||
स्वरचित व मौलिक रचना
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धार्मिक साहित्य
120 members
Description
इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,
कर्ण का विवाह
by PHOOL SINGH
Jan 8
प्रथम रुषाली कर्ण की पत्नी
जिसे पितृ इच्छा से पाता
दूसरी कहलाती सुप्रिया, खास भानुमती से जिसका नाता||
अंसावरी को वही बचाता
था आतंकवादियों ने जिसको घेरा
प्रेम करती उससे पहले, फिर सुतपुत्र कह धुत्कारा||
स्वयंवर जीता अंसावरी का
प्रेम था उससे करता
धुत्कार जिससे सह चुका था, अब स्वीकार न उसको करता||
दासी पद्मावती उससे प्रेम थी करती
विनती राजा से उसकी करता
अटूट रिश्ता सदा उससे रहता, सच्ची संगनी जग पद्मावती को उसकी कहता||
द्रौपदी स्वयंवर में आया कर्ण
दुर्योधन का सहायक बनता
पहली नजर में दिल हारता, जब द्रौपदी के सम्मुख पड़ता||
स्वीकार न करती अपमानित करती
वक़्त उसको फिर से छलता
अजीब स्थिति से उलझता हरदम, भावुक हृदय सूतपुत्र था||
दासियों ने ही स्वीकारा जिसको
जो महान धनुर्धर अपने वक़्त का
छलती आयी नियति हमेशा, पर वो सदा अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ता||
उसके होने न होने से फर्क न पड़ता
अजीब जीवन का किस्सा
दुर्योधन और कृष्ण समझते, मर्म उसके तड़पते मन का||
उनसे हमेशा धुत्कार है खाता
जिनसे प्रेम सच्चा करता
सूतपुत्र होने का बड़ा मोल चुकाता, खुद को फिर भी जिंदा रखता||
रुषाली-सुप्रिया बनी कई पुत्रों की माता
सुत युद्ध की बलि में चढ़ता
महाकाल का तांडव जिसमे, जिंदा वृषकेतु ही बचता||
इन्द्रप्रस्थ का राजा उसे बनाकर
युधिष्ठिर गज़ब का निर्णय सुनाता
अनूठा रिश्ता उससे निभाकर, अपने धर्म के पक्ष को रखता||
धर्म की स्थापना कर सभी ने
धर्म को जिंदा रखा
अपने-अपने कर्तव्य में निपुण रहे सब, सबका सुख-सुविधा में जीवन कटता||
स्वरचित व मौलिक रचना