२१२२/२१२२/२१२२/२१२
बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
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छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
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देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”
.
क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
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चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
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तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. मनन जी ....
हाँ ..शायद दोष है लेकिन क्या कर रहे हो? अभी काम कर रहा हूँ .... आदि इतना अधिक बोला जाने वाला जुमला है कि ये दोनों र साथ आने से भी अटकाव नहीं लगता ..
सादर
May 5, 2017
Samar kabeer
जनाब मनन भाई मक़्ते में ऐब-ए-तनाफ़ुर की तरफ़ इशारा 'कर रहे हैं' ।
May 5, 2017
Hemant kumar
बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
इस मत्ला के लिए खास तौर पर बधाई स्वीकारें !
वाह्-वाह् क्या कहने...शेर भी कमाल के हुए है।
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. समर सर..
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. हेमंत जी
May 5, 2017
Mohammed Arif
May 5, 2017
Gurpreet Singh jammu
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
आदरणीय नीलेश जी एक और शानदार ग़ज़ल केलिए आपको बहुत बहुत बधाई
May 5, 2017
Manan Kumar singh
May 5, 2017
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
आदरणीय नीलेश भाई , बेहतरीन शे र कहे हैं आपने , पूरी गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना. ---- विशेष बधाइयाँ ।
May 5, 2017
Tasdiq Ahmed Khan
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. गिरिराज जी (पता नहीं ज के बाद जी लिखने में भी ऐब न हो जाये)
सादर
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब...
डिक्शनरी देख लें मद्दाह की ...शुऊर ही सही शब्द है ,,,
सादर
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मनन जी,
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फ़ैसले कर रहे हैं अर्श-नशीं
आफ़तें आदमी पे आती हैं...
अहमद नसीम काज़मी
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हम तो आए थे अर्ज़-ए-मतलब को
और वो एहतिराम कर रहे हैं
जौन एलिया
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सुनो लोगों को ये शक हो गया है
कि हम जीने की साज़िश कर रहे हैं
फ़हमी बदायुनी
.
क्यूँ हश्र का क़ौल कर रहे हो
'मुज़्तर' को यहीं की आरज़ू है
मुज़्तर खैराबादी (जावेद अख्तर के दादा)
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जान-ए-ख़ुलूस बन कर हम ऐ 'शकेब' अब तक
ता'लीम कर रहे हैं आदाब ज़िंदगी के
शकेब जलाली
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वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं
हफ़ीज़ जालंधरी .
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एक पैकर में सिमट कर रह गईं
ख़ूबियाँ ज़ेबाइयाँ रानाइयाँ
कैफ़ भोपाली
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जहाँ इश्क़ में डूब कर रह गए हैं
वहीं फिर उभरने को जी चाहता है
शकील बदायुनी
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जो बिखर कर रह गया है इस जगह
हुस्न की इक शक्ल भी है उस तरफ़
मुनीर नियाजी
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इक आह-ए-सर्द बन कर रह गए हैं
वो बीते दिन वो याराने पुराने
हबीब जालिब
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क्या मिरी तक़दीर में मंज़िल नहीं
फ़ासला क्यूँ मुस्कुरा कर रह गया
वसीम बरेलवी
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सर पटकने को पटकता है मगर रुक रुक कर
तेरे वहशी को ख़याल-ए-दर-ओ-दीवार तो है..
रुक कर
फ़िराक गोरखपुरी ..
...
हरि अनंत हरि कथा अनंता ..
कहने का अर्थ यही है कि रुक कर या ...कर रहा सादर इतने रचे बसे जुमले हैं कि इस में ऐब नहीं है ..
सादर
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
और हाँ ,,मेरी पसंदीदा
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बढ़ा के प्यास मिरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल-लगी की तरह.... क़तील शिफ़ाई
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
और भी...
है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
हम ने दश्त-ए-इम्काँ को एक नक्श -ए-पा पाया
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मिर्ज़ा असद उल्लाह खां "ग़ालिब"
May 5, 2017
Dr Ashutosh Mishra
May 5, 2017
Manan Kumar singh
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. डॉ साहब शुक्रिया
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निलेश भाई कहेंगे तो ठीक लगेगा
May 5, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मनन जी...
महाजना: (व्यापारी) या महा... जना:( ज्ञानी)..
निर्णय आप पर छोड़ता हूँ
.
सादर
May 5, 2017
बृजेश कुमार 'ब्रज'
May 5, 2017
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
May 6, 2017
Ravi Shukla
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना हमें ये
जियादा पसंद आया । पसंद अपनी ख्याल अपना । सादर
May 6, 2017
Manan Kumar singh
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. बृजेश जी
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. अनुराग जी
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. शिज्जू भाई
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. रवि जी
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. अनुराग जी,
मैं तो मान ही नहीं रहा हूँ कि महज दो एक जैसे शब्दों के पास आने से कोई ऐब होता है ....
ऐब तब है जब ऐसा होने से रवानी बाधित हो ....अत: न मेरे मिसरे में ..न ग़ालिब में और न का कारोबार में कोई दिक्कत है मुझे ..
जिन्हें दिक्कत है ..वो सफ़ाई दें...
मस्ताने रहे मस्ती में
आग लगे बस्ती में :p
सादर
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. अनुराग जी,
बाक़ी का तो मुझे पता नहीं..लेकिन मेरे मिसरे में ये साधार रूप से बोला जाने वाला जुमला है जिसे ऑलमोस्ट हर बड़े शाइर ने जस का तस इस्तेमाल में लाया है...उदहारण भी मैंने प्रस्तुत किये हैं ...
कई लोग ये नहीं समझना चाहते कि क्रिकेट सिर्फ हाई एल्बो रख कर स्ट्रैट बैट से क्लासिक तरीक़े से बॉल रोकने का खेल नहीं है ..बल्कि रन बंनाने का खेल है...
अपर कट, दिल-स्कूप, स्विच शॉट किसी भी उस्ताद बल्लेबाज़ से अनुमोदित नहीं हैं लेकिन खेले जाते हैं और रन उगलते हैं...
संजय मांज़रेकर बनें या तेंडुळकर ये तो बल्लेबाज़ को तय करना है ...
सादर
May 6, 2017
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
आ. निलेश भाई सच कहूँ तो मैं तनाफुर को ज़्यादा तवज्जो नहीं देता यहाँ तक कि इस्लाह करनी हो तो भी ज़ेह्न में इस ऐब का खयाल नहीं आता, कई दफे मैं तक़ाबुले रदीफ को भी तवज्जो नहीं देता
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. शिज्जू भाई...
सीधा नियम है मेरा.... पढने में अटके तो अलग तरीक़े से कहिये... न अटके तो कोई दिक्कत नहीं ...जैसे किस से कहूँ.. लिखना हो तो दो स किसी भी तरक़ीब से जुदा नहीं किये जा सकते ... तकाबुले रदीफ़ में भी सिर्फ मात्रा सामान होने के कई उदाहरण उस्तादों के यहाँ मिलते हैं लेकिन identical शब्द हो तो ही मैं ऐब मानता हूँ.
सादर
May 6, 2017
Dr Ashutosh Mishra
आदरणीय नीलेश भाई मैं दुबारा इस रचना पर प्रतिक्रया पढने के लिए उपस्थित हुआ हूँ तनाफुर जैसे एव के लिए मैं भी आपके बिचारों से पूरी तरह सहमत हूँ ..ये रचना वाकई कमाल की है इस रचना पर आपको एक बार फिर से बधाई सादर
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना इस शेर को मैं पूरी तरह समझ नहीं पाया आपका मार्गदर्शन चाहिए
May 6, 2017
Samar kabeer
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मंच..
आम तौर पर मैं टिप्पणियाँ डिलीट नहीं करता लेकिन आ. मनन जी की टिप्पणी मंच की गरिमा में अनुरूप नहीं थी इसलिए मैंने यहाँ से हटा दी है ..
उम्मीद है कि वो भविष्य में कम से कम अदबी मंच की गरिमा का ख़याल रखेंगे ...
सादर
May 6, 2017
Manan Kumar singh
May 6, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मनन जी,
ग़ज़ल कहता हूँ तो इशारों में बात कहता हूँ.... इशारे समझता भी ख़ूब हूँ ....
जज की सोच पर अगर एक ऊँगली उठी है तो आरोपी पर तीन उठी हैं ..
वैसे अदब में अदालत आनी ही नहीं चाहिए लेकिन ....बहुत से मुहावरे हैं इस मौजूं पर ...
जाने दीजिये
.
सादर
May 6, 2017
Manan Kumar singh
May 6, 2017
नाथ सोनांचली
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
इस शैर के लिए अलग से अतिरिक्त बधाई।
May 6, 2017
सतविन्द्र कुमार राणा
May 7, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मनन जी,
अपने पूर्व कमेंट को पढ़िये..... जज कि बात कौन कर रहा है ..जान जाइएगा
सादर
May 7, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. सुरेन्द्रनाथ जी,
आभार
May 7, 2017
Nilesh Shevgaonkar
शुक्रिया आ. सतविन्द्र जी
May 7, 2017
Manan Kumar singh
May 7, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मनन जी,
मेरी पोस्ट पर कोई कमेंट अनुत्तरित रह जाये तो ये कमेंट करने वाले की तौहीन होगी इसलिए चाहे ये चर्चा को तूल दे...लेकिन ये करना आवश्यक है.....
मैंने आप से पहले भी निवेदन किया है कि अदब में अदालत को न लायें ...
आप ..लगातार विषयांतर कर रहे हैं.... बेहतर होगा कि आप ग़ज़ल पर ही रहें ...
रही बात ऐब की ..तो मेरे द्वारा प्रस्तुत उदाहरण पर्याप्त प्रमाण है ..
सादर
May 7, 2017
Manan Kumar singh
May 7, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मनन जी,
आप आ. समर सर की अंतिम टिप्पणी पढ़ें जिस में वो मेरे कहे से सहमत हैं.... ....
मैं भी मानता हूँ कि लय बाधित होने जैसी कुछ विशेष परिस्थियों में ऐब है....(पहले भी लिखा है मैंने) ...लेकिन मेरे मिसरे में ये ऐब इसलिए नहीं है क्यूँ कि ये आम बोलचाल का हिस्सा है ....
इस के लिये ..मैंने सभी बड़े उस्तादों के उदाहरण भी दिए हैं......
आप अपनी बात कह चुके ..... उस पर मैंने अपनी बात कह ली...... फिर आप विश्यान्त्र करते हुए ...पशु..अदालत..जज..अदावत तक आ गए ....
अत: आप से निवेदन है कि आगे का समय अपनी रचना पर दें.....
मेरी इस ग़ज़ल का जो होना था हो चुका....
मेरा मिसरा यही है..और यूँ ही रहेगा ...
आप जिसे मेरी ग़ज़ल में ऐब बताने पर आमादा हैं ..देख लें कि कहीं आप की किसी रचना ही वो न हों जो आपके लिये "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" वाली स्थिति बना दे ...
सादर
May 7, 2017
Manan Kumar singh
मे कहा-सुना याद नहीं रहता,सादर।
May 7, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मनन जी ,
खीजता वो है जिस के पास दलीलें न हों
सादर
May 7, 2017
Manan Kumar singh
May 8, 2017
Nilesh Shevgaonkar
आ. मनन जी,
दिख रहा है वो तो :))))
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सादर
May 8, 2017