ग़ज़ल नूर की -बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
.
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
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देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”  
.
क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र 
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
.
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
.
तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. मनन जी ....
    हाँ ..शायद दोष है लेकिन क्या कर रहे हो? अभी काम कर रहा हूँ .... आदि इतना अधिक बोला जाने वाला जुमला है कि ये दोनों र साथ आने से भी अटकाव नहीं लगता ..
    सादर 

  • Samar kabeer

    जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
    जनाब मनन भाई मक़्ते में ऐब-ए-तनाफ़ुर की तरफ़ इशारा 'कर रहे हैं' ।
  • Hemant kumar

    आदरणीय शेवगाँवकर सर इस उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाईंयाँ स्वीकार करें..

    बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
    बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.

    इस मत्ला के लिए खास तौर पर बधाई स्वीकारें !
    वाह्-वाह् क्या कहने...शेर भी कमाल के हुए है।
  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. समर सर..

  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. हेमंत जी 

  • Mohammed Arif

    आदरणीय नीलेश जी आदाब, लाजविब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अफनी राय दे चुके हैं ।
  • Gurpreet Singh jammu

    छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
    धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.

    तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
    “नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.

    आदरणीय नीलेश जी एक और शानदार ग़ज़ल केलिए आपको बहुत बहुत बधाई
  • Manan Kumar singh

    जैसी मर्जी,आदरणीय;जो दिखा,सो कह दिया,सादर

  • सदस्य कार्यकारिणी

    गिरिराज भंडारी

    आदरणीय नीलेश भाई , बेहतरीन शे र कहे हैं आपने , पूरी गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

    छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
    धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.    ---- विशेष बधाइयाँ ।

  • Tasdiq Ahmed Khan

    मुहतरम जनाब नीलेश साहिब,बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ---शेर4 में टाइप में शऊर का शुऊर हो गया है,"दिल आइना" कोई शब्द है क्या? देख लीजियेगा --सादर
  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. गिरिराज जी (पता नहीं ज के बाद जी लिखने में भी ऐब न हो जाये)
    सादर  

  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब... 
    डिक्शनरी देख लें मद्दाह की ...शुऊर ही सही   शब्द है ,,,
    सादर 

  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मनन जी,
    .
    फ़ैसले कर रहे हैं अर्श-नशीं
    आफ़तें आदमी पे आती हैं
    ...
    अहमद नसीम काज़मी 
    .
    हम तो आए थे अर्ज़-ए-मतलब को
    और वो एहतिराम कर रहे हैं

    जौन एलिया 
    .
    सुनो लोगों को ये शक हो गया है
    कि हम जीने की साज़िश कर रहे हैं

    फ़हमी बदायुनी 
    .
    क्यूँ हश्र का क़ौल कर रहे हो
    'मुज़्तर' को यहीं की आरज़ू है

    मुज़्तर खैराबादी (जावेद अख्तर के दादा)
    .
    जान-ए-ख़ुलूस बन कर हम ऐ 'शकेब' अब तक
    ता'लीम कर रहे हैं आदाब ज़िंदगी के

    शकेब जलाली 
    .
    वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
    मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं

    हफ़ीज़ जालंधरी .
    .
    एक पैकर में सिमट कर रह गईं
    ख़ूबियाँ ज़ेबाइयाँ रानाइयाँ

    कैफ़ भोपाली 
    .
    जहाँ इश्क़ में डूब कर रह गए हैं
    वहीं फिर उभरने को जी चाहता है

    शकील बदायुनी 
    .
    जो बिखर कर रह गया है इस जगह
    हुस्न की इक शक्ल भी है उस तरफ़

    मुनीर नियाजी 
    .
    इक आह-ए-सर्द बन कर रह गए हैं
    वो बीते दिन वो याराने पुराने

    हबीब जालिब 
    .
    क्या मिरी तक़दीर में मंज़िल नहीं
    फ़ासला क्यूँ मुस्कुरा कर रह गया

    वसीम बरेलवी 
    .
    सर पटकने को पटकता है मगर रुक रुक कर 
    तेरे वहशी को ख़याल-ए-दर-ओ-दीवार तो है
    ..
    रुक कर 
    फ़िराक गोरखपुरी ..
    ...
    हरि अनंत हरि कथा अनंता ..
    कहने का अर्थ यही है कि रुक कर या ...कर रहा सादर इतने रचे बसे जुमले हैं कि इस में ऐब नहीं है ..
    सादर 

     

  • Nilesh Shevgaonkar

  • Nilesh Shevgaonkar

    और भी...
    है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब 
    हम ने दश्त-ए-इम्काँ  को  एक नक्श -ए-पा पाया 
    .
    मिर्ज़ा असद उल्लाह खां "ग़ालिब"

  • Dr Ashutosh Mishra

    आदरणीय नूर जी आपकी यह ग़ज़ल मुझे आपकी सर्वाधिक पसंद ग़ज़लों में एक लगी पहले और दुसरे शेर के लिए बिशेष रूप से बधाई सादर
  • Manan Kumar singh

    हाहाहा,महा जना: येन गत:सा पंथा:।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. डॉ साहब शुक्रिया 
    .
    निलेश भाई कहेंगे तो ठीक लगेगा 

  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मनन जी...
    महाजना: (व्यापारी) या महा... जना:( ज्ञानी)..
    निर्णय आप पर छोड़ता हूँ 
    .
    सादर 

  • बृजेश कुमार 'ब्रज'

    बेहतरीन ग़ज़ल हुई आदरणीय..मतला और पहले शेर के लिए बिशेष बधाई स्वीकार करें सादर

  • सदस्य कार्यकारिणी

    शिज्जु "शकूर"

    आ. निलेश भाई.कमाल की बात कही है, वाह बरगद और अवतार वाले शे'र का जवाब नहीं बहुत बहुत बधाई आपको
  • Ravi Shukla

    आदरणीय नीलेश जी वाह वाह क्या कहने कमाल की ग़ज़ल कही आपने । मतले से मक्ते तक हर शेर उम्दा दिली बधाई लीजिये । और एक शेर का ज़िक्र करना हो तो
    चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
    जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना हमें ये
    जियादा पसंद आया । पसंद अपनी ख्याल अपना । सादर
  • Manan Kumar singh

    आदरणीय नीलेश जी,जैसा मैंने लिखा है उससे मतलब साफ है।फिर भी आपकी शंका,आपका समाधान समीचीन रहेगा,सादर।
  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. बृजेश जी 

  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. अनुराग जी 

  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. शिज्जू भाई 

  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. रवि जी 

  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. अनुराग जी,

    मैं तो मान ही नहीं रहा हूँ कि महज दो एक जैसे शब्दों के पास आने   से कोई ऐब होता है ....
    ऐब तब है जब ऐसा होने से रवानी बाधित  हो ....अत: न मेरे मिसरे में ..न ग़ालिब में और न का कारोबार में कोई दिक्कत है मुझे ..
    जिन्हें दिक्कत है ..वो सफ़ाई दें...
    मस्ताने रहे मस्ती में 
    आग लगे बस्ती में :p 
    सादर 

  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. अनुराग जी,
    बाक़ी का तो मुझे पता नहीं..लेकिन मेरे मिसरे में ये साधार रूप से बोला जाने वाला जुमला है जिसे ऑलमोस्ट हर बड़े शाइर ने जस का तस इस्तेमाल में लाया है...उदहारण भी मैंने प्रस्तुत  किये  हैं ...
    कई लोग ये नहीं समझना चाहते कि क्रिकेट सिर्फ हाई एल्बो रख कर स्ट्रैट बैट से क्लासिक तरीक़े से बॉल रोकने का खेल नहीं है ..बल्कि रन बंनाने का खेल है...
    अपर कट, दिल-स्कूप, स्विच शॉट किसी भी उस्ताद बल्लेबाज़ से अनुमोदित नहीं हैं लेकिन खेले जाते हैं और रन उगलते हैं...
    संजय मांज़रेकर बनें या तेंडुळकर ये तो बल्लेबाज़ को तय करना है ...
    सादर 


  • सदस्य कार्यकारिणी

    शिज्जु "शकूर"

    आ. निलेश भाई सच कहूँ तो मैं तनाफुर को ज़्यादा तवज्जो नहीं देता यहाँ तक कि इस्लाह करनी हो तो भी ज़ेह्न में इस ऐब का खयाल नहीं आता, कई दफे मैं तक़ाबुले रदीफ को भी तवज्जो नहीं देता

  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. शिज्जू भाई...
    सीधा नियम है मेरा.... पढने में अटके तो अलग तरीक़े से कहिये... न अटके तो कोई दिक्कत नहीं ...जैसे किस से कहूँ.. लिखना हो तो दो स किसी भी तरक़ीब से जुदा नहीं किये जा सकते ...    तकाबुले रदीफ़ में भी सिर्फ मात्रा सामान होने के कई उदाहरण उस्तादों के यहाँ मिलते हैं लेकिन identical शब्द हो तो ही मैं ऐब मानता हूँ.
    सादर  

  • Dr Ashutosh Mishra

    आदरणीय नीलेश भाई मैं दुबारा इस रचना पर प्रतिक्रया पढने के लिए उपस्थित हुआ हूँ तनाफुर जैसे एव के लिए मैं भी आपके बिचारों से पूरी तरह सहमत हूँ ..ये रचना वाकई कमाल की है इस रचना पर आपको एक बार फिर से बधाई सादर 

    चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   
    जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना इस शेर को मैं पूरी तरह समझ नहीं पाया आपका मार्गदर्शन चाहिए 

  • Samar kabeer

    निलेश जी आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ,लेकिन इससे इनका नहीं किया जा सकता कि ये ऐब नहीं है,क्योंकि ऐब शब्द तो तनाफ़ुर के साथ जुड़ा हुआ है'ऐब-ए-तनाफ़ुर'ये ग़लती नहीं ऐब ही रहेगा,हम इसे तस्लीम करें या न करें,आपका क्या ख़याल है ?और यही बात तक़ाबुल-ए-रदीफ़ेन के लिये भी है ।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मंच..
    आम तौर पर मैं टिप्पणियाँ डिलीट  नहीं करता लेकिन आ. मनन जी की टिप्पणी मंच   की गरिमा में अनुरूप नहीं थी इसलिए मैंने यहाँ से हटा दी है ..
    उम्मीद है कि वो भविष्य में कम  से  कम अदबी मंच की  गरिमा का ख़याल रखेंगे ...
    सादर 

  • Manan Kumar singh

    आदरणीय, भावार्थ पर जाते तो शायद शंकाकुल नहीं होते।वर्त्तमान संदर्भ की बात थी,उदहारण जुटाने से संबंधित।खैर खैरख्वाही भी कोई चीज होती हैं,सो आपने दिखा दी।जज भी बात सुन-समझकर फैसले लिये करते हैं,आदरणीय।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मनन जी,
    ग़ज़ल कहता हूँ तो इशारों में बात  कहता हूँ.... इशारे समझता भी ख़ूब हूँ ....
    जज की सोच पर अगर एक ऊँगली उठी है तो आरोपी पर  तीन उठी हैं ..
    वैसे अदब में अदालत आनी ही नहीं चाहिए लेकिन ....बहुत से मुहावरे हैं इस मौजूं पर ...
    जाने दीजिये 
    .

    सादर 

  • Manan Kumar singh

    आदरणीय,बजा फरमाया आपने।अदावत जैसी तो कोई बात ही नहीं है यहाँ।हाँ,आरोपी कौन और जज कौन यह अब तो अस्पष्ट नहीं है,सादर।
  • नाथ सोनांचली

    आदरणीय भाई नीलेश जी सादर अभिवादन, बहुत उम्दा गजल कहीं आपने, और इस गजल पर चली सार्थक चर्चा से हम जैसे नवंतुको को भी फायदा होंगा।
    चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं
    जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
    इस शैर के लिए अलग से अतिरिक्त बधाई।
  • सतविन्द्र कुमार राणा

    आदरणीय नीलेश जी,हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल और इस पर हुई चर्चा के लिए।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मनन जी,

    अपने पूर्व कमेंट को  पढ़िये..... जज कि बात कौन कर रहा है ..जान जाइएगा 
    सादर 

  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. सुरेन्द्रनाथ जी,

    आभार 

  • Nilesh Shevgaonkar

    शुक्रिया आ. सतविन्द्र जी 

  • Manan Kumar singh

    आदरणीय नीलेश जी,जानना मेरे लिए शेष नहीं रहा अब।रही बात आपकी तो वह आपकी बात है,और आप पर है।समाप्तप्राय चर्चा को तूल देना भी शायद वक्त का तकाजा नहीं है।रही बात जज कहने की,तो जज शब्द के उच्चारण भर से न कोई जज होता है ,न आरोपी।यह सब परिस्थिति और साक्ष्य तय करते हैं कि ऐब कहाँ है।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मनन जी,
    मेरी पोस्ट पर कोई कमेंट अनुत्तरित रह जाये तो ये कमेंट करने वाले की तौहीन होगी इसलिए चाहे ये चर्चा को तूल   दे...लेकिन ये करना आवश्यक है.....
    मैंने आप से पहले भी निवेदन किया है कि अदब में अदालत को न लायें ...
    आप ..लगातार विषयांतर कर रहे हैं.... बेहतर होगा कि आप ग़ज़ल पर ही रहें ...
    रही बात ऐब की ..तो  मेरे द्वारा प्रस्तुत उदाहरण पर्याप्त प्रमाण है ..
    सादर 

  • Manan Kumar singh

    आदरणीय, विषयांतर आप हो रहे हैं,मैं नहीं।उस्ताद समर साहिब ने क्या फ़रमाया था,वह भी याद रखना लाजिमी है।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मनन जी,
    आप आ. समर सर की अंतिम टिप्पणी पढ़ें जिस में   वो मेरे कहे से सहमत हैं.... ....
    मैं भी मानता हूँ कि लय बाधित होने जैसी कुछ विशेष परिस्थियों में ऐब है....(पहले भी लिखा है मैंने) ...लेकिन मेरे मिसरे में ये ऐब इसलिए नहीं है क्यूँ कि   ये आम बोलचाल का हिस्सा है .... 
    इस के लिये ..मैंने सभी बड़े उस्तादों   के उदाहरण भी    दिए हैं......
    आप अपनी बात कह चुके ..... उस पर मैंने अपनी   बात कह ली...... फिर आप विश्यान्त्र करते हुए ...पशु..अदालत..जज..अदावत तक आ गए ....
    अत: आप से निवेदन है कि आगे का समय अपनी रचना पर दें.....
    मेरी इस ग़ज़ल का जो होना था हो चुका....
    मेरा मिसरा यही है..और यूँ ही रहेगा ...
    आप जिसे मेरी ग़ज़ल में ऐब बताने पर आमादा हैं ..देख लें कि कहीं आप की किसी रचना  ही वो न हों जो आपके लिये "पर उपदेश कुशल बहुतेरे"  वाली स्थिति बना दे ...
    सादर 

  • Manan Kumar singh

    खीझ कोई हल नहीं,बचें।खीझ
    मे कहा-सुना याद नहीं रहता,सादर।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मनन जी ,
    खीजता वो है जिस के पास दलीलें न हों 
    सादर 


  • Manan Kumar singh

    बेवजह की दलीलें खीज का परिचायक हैं,सादर।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. मनन जी,
    दिख रहा है वो तो :))))
    .
    सादर