ग़ज़ल :-एक चहरे में दूसरा क्या है

बह्र :- फ़ाईलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन आईनागर ज़रा बता क्या है एक चहरे में दूसरा क्या है आग गुलज़ार कैसे बनती है देखना है तो सोचता क्या है किस लिये हम से पूछता है नदीम तू नहीं जानता,हुवा क्या है क्या छुपा कर रखा है सीने में और होटों से बोलता क्या है दिल को छू जाए तो ये जादू है वरना आवाज़ में धरा क्या है आईने की तरह चमकती है हम बताऐं तुम्हें वफ़ा क्या है दोनों बर्बाद हो गए देखो दुश्मनी के लिये बचा क्या है मैं हूँ दीवाना और तू हुश्यार मुझ से तेरा मुक़ाबला क्या है ख़ुद को "ग़ालिब" समझ रहा है "समर" "या इलाही ये माजरा क्या है" "समर कबीर" (मौलिक/अप्रकाशित)
  • Nilesh Shevgaonkar

    बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है ग़ालिब की ज़मीन पर 
    दुश्मनी के लिए बचा क्या है...वाह वा...
    .
    दूसरे, पाँचवे और छठे शेर में तकाबुले-रदीफ़ को देख लें 
    सादर 


  • सदस्य कार्यकारिणी

    गिरिराज भंडारी

    क्या छुपा कर रखा है सीने में
    और होटों से बोलता क्या है

    दिल को छू जाए तो ये जादू है
    वरना आवाज़ नें धरा क्या है   --  क्या बात है , आदरणीय समर भाई , बहुत खूब ग़ज़ल कही , हर शे र के लिये दाद हाज़िर है , कुबूल कीजिये ॥

  • Samar kabeer

    जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ|
    ग़ज़ल पोस्ट करने से पहले ही इस पर ग़ौर कर चुका हूँ,इसे तक़ाबुले रदीफ़ नहीं कहते,मेरी ग़ज़ल की पूरी रदीफ़ "क्या है ",सिर्फ़ "है" नहीं ,मिसाल के तौर पर शैर यूँ होता :-
    "आग गुलज़ार कैसे बनता है
    देखना है तो सोचता क्या है"
    तब इसे तक़ाबुले रदीफ़ का दोष कह सकते थे |
  • Samar kabeer

    जनाब गिरिराज भंडारी जी ,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ|
  • Nilesh Shevgaonkar

    जी आदरणीय समर कबीर साहब.
    कहीं इस बारे में कहीं पढ़ लिया था सो यहाँ कह दिया. किसी लेख में ये लिखा हुआ है इस विषय पर -"

    तकाबुले रदीफ़ दोष के भेद

    तकाबुले रदीफ़ दोष के दो भेद होते हैं तकाबुले रदीफ़ दोष

    भेद १ - लाज्तमा-ए-ज़ुज्ब-ए-रदीफैन = मतला के अतिरिक्त यदि रदीफ़ का तुकांत स्वर मिसरा-ए- उला के अंत आ जाये तो उसे लाज्तमा-ए-ज़ुज्ब-ए-रादीफैन कहते हैं तकाबुले रदीफ़ दोष

    भेद २ - लाज्तमा-ए-तकाबुल-ए-रदीफैन = मतला और हुस्ने मतला के अतिरिक्त किसी शेर में यदि रदीफ़ का तुकान्त पूरा एक शब्द या पूरी रदीफ़ मिसरा-ए-उला के अंत आ जाये तो उसे लाज्तमा-ए-तकाबुल-ए-रदीफैन कहते हैं शेर के दोषपूर्ण मतला होने भ्रम की स्थिति से बचने के लिए इस दोष से बचने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए|

    अरूजियों और उस्ताद शाइरों द्वारा केवल स्वर का उला के अंत में टकराना कई स्थितियों में स्वीकार्य बताया गया है यदि शेर खराब न हो रहा हो और यह ऐब दूर हो सके तो इससे अवश्य बचना चाहिए परन्तु इस दोष को दूर करने के चक्कर में शेर खराब हो जा रहा है अर्थात, अर्थ का अनर्थ हो जा रहा है, सहजता समाप्त ओ जा रही है अथवा लय भंग हो रहे है अथवा शब्द विन्यास गडबड हो रहा है तो इसे रखा जा सकता है और बड़े से बड़े शाइर के कलाम में यह दोष देखने को मिलता है"

    इसके अतिरिक्त यदि कोई मान्यता हो तो मुझे ज्ञात नहीं है.
    सादर  

  • दिनेश कुमार

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। हर शे'र के लिए मेरी तरफ से भी हार्दिक दाद व मुबारकबाद आदरणीय समर कबीर सर जी।
  • दिनेश कुमार

    व्याकरण पक्ष गुणी जनों के लिए।
  • Samar kabeer

    जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,सत्य वचन,आपने विस्तार से बताया और अपना क़ीमती समय दिया इसके लिये धन्यवाद,आपकी राय में इन अशआर को एसे ही रहने दें या तब्दील करें ? बराहे करम जवाब से नवाज़ें |
  • Samar kabeer

    जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ|
  • Nilesh Shevgaonkar

    यदि शेर का भाव बदले बिना बदलाव संभव हो तो प्रयास करें..... कुछ सुझाव हैं 
    आग गुलज़ार कैसे बनती है___ कैसे शोला बदन हुआ गुलज़ार 
    दिल को छू जाए तो ये जादू है___ दिल में उतरे तो ये लगे जादू .
    आईने की तरह चमकती है___ये चमकती है आईने की तरह.
     
     

  • Dr. Vijai Shanker

    और होटों से बोलता क्या है ॥
    दिल को छू जाए तो ये जादू है
    वरना आवाज़ में धरा क्या है ॥
    आईने की तरह चमकती है
    हम बताऐं तुम्हें वफ़ा क्या है ॥
    दोनों बर्बाद हो गए देखो
    दुश्मनी के लिये बचा क्या है ॥
    वाह ! आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार, एक एक शेर लाजवाब है , बहुत बहुत मुबारकबाद आपको. सादर।
  • Krish mishra 'jaan' gorakhpuri

    दोनों बर्बाद हो गए देखो
    दुश्मनी के लिये बचा क्या है  वाह! वाह!

    मैं हूँ दीवाना और तू हुश्यार
    मुझ से तेरा मुक़ाबला क्या है   लाजवाब शेर!

    बहुत बहुत बधाई आ० समर सरजी!

  • Samar kabeer

    जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,मैंने लिखा था कि अशआर एसे ही रहने दूँ या तब्दील करें,आपने तो मुझे मिसरे भी सुझा दिये,मेरे भाई यह काम तो मैं ख़द भी बख़ूबी कर सकता हूँ,मजबूरी यह है भाई जैसा कि आपने ख़ुद लिखा है कि ये दोष बड़े बड़े शाईरों के यहाँ पाया जाता है,इसका मतलब यह हुवा कि इस दोष को मन्यता प्राप्त है,मैंने अपने पिछले कमेंट में लिखा था कि मैंने यह ग़ज़ल ग़ौर करने के बाद पोस्ट की है,यह सच है,अगर इस ग़ज़ल को दोष मुक्त करने से इसकी रवानी में बड़ा फ़र्क़ पड़ेगा ,इसलिये मेरे भाई इस ग़ज़ल को ज्यूँ का त्यूँ ही रहने देते हैं,मेरी आप से दरख़्वास्त है कि इस ग़ज़ल को पुन: पढ़ें और इसका लुत्फ़ लें |

    "आग गुलज़ार कैसे बनती है ?
    देखना है तो सोचता क्या है"

    इस शैर में "तलमीह" है,इसे अगर दोष मुक्त कर देंगे तो तलमीह का मज़ा ही ख़त्म हो जाएगा |
  • Nilesh Shevgaonkar

    और बाक़ी दो ?...
    विद्या ददाति विनयम 

  • Samar kabeer

    आली जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत हो गई,ग़ज़ल का मान बढ़ गया,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
  • Samar kabeer

    जनाब "जान" गोरखपुरी साहिब,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हैसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
  • shree suneel

    आदरणीय समर कबीर सर, इस शानदार, भरी-पूरी ग़ज़ल के लिए दिल से दाद.
    आग गुलज़ार कैसे बनती है
    देखना है तो सोचता क्या है

    मैं हूँ दीवाना और तू हुश्यार
    मुझ से तेरा मुक़ाबला क्या है

    दिल को छू जाए तो ये जादू है
    वरना आवाज़ में धरा क्या है
    बहुत ख़ूब सर. बधाईयाँ.. बधाईयाँ
  • Samar kabeer

    जनाब श्री सुनील जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हैसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |

  • सदस्य कार्यकारिणी

    मिथिलेश वामनकर

    आदरणीय समर कबीर जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है दिल से दाद कुबूल फरमाएं।
  • जितेन्द्र पस्टारिया

    खूबसूरत गजल ,आदरणीय समर साहब. हर शेर तारीफ़ के काबिल हुआ, दिली बधाई कुबूल करें

  • धर्मेन्द्र कुमार सिंह

    बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है जनाब समर साहब।

    दोनों बर्बाद हो गए देखो
    दुश्मनी के लिये बचा क्या है

    ये शे’र बड़ा ही ख़ूबसूरत और बार बार कोट करने लायक है। बारंबार दाद कुबूल कीजिए।

  • Dr Ashutosh Mishra

    आदरणीय समर कबीर जी ..इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

  • Samar kabeer

    जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
  • Samar kabeer

    जनाब जितेन्द्र पस्टारिया जी,आदाब,ज़र्रा नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
  • Samar kabeer

    जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |