सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून लिखते किताबों में हम।१। * हमें मौत रचने से फुरसत नहीं न शामिल हुए यूँ जनाजों में हम।२। * हमारे बिना यह सियासत कहाँ जवाबों में हम हैं सवालों में हम।३। * किया कर्म जग में न ऐसा कोई गिने जायें जिससे सबाबों में हम।४। * न मंजिल न मकसद न उन्वान ही कि समझे गये हैं मिराजों में हम।५। * रहा भाग्य अपना तो सीमित यही रहे भूख में या निवालों में हम।६। * न पावन हुए जब मनों के लिए मिलेंगे कहाँ फिर शिवालों में हम।७। *** मौलिक/अप्रकाशित लक्ष्मणधामी "मुसाफिर"
न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
21 hours ago
१२२/१२२/१२२/१२
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सदा बँट के जग में जमातों में हम
रहे खून लिखते किताबों में हम।१।
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हमें मौत रचने से फुरसत नहीं
न शामिल हुए यूँ जनाजों में हम।२।
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हमारे बिना यह सियासत कहाँ
जवाबों में हम हैं सवालों में हम।३।
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किया कर्म जग में न ऐसा कोई
गिने जायें जिससे सबाबों में हम।४।
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न मंजिल न मकसद न उन्वान ही
कि समझे गये हैं मिराजों में हम।५।
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रहा भाग्य अपना तो सीमित यही
रहे भूख में या निवालों में हम।६।
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न पावन हुए जब मनों के लिए
मिलेंगे कहाँ फिर शिवालों में हम।७।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"