दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगार

बात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।
सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार ।।

मौसम की मनुहार फिर, शीत हुई उद्दंड ।
मिलन ज्वाल के वेग में, ठिठुरन हुई प्रचंड ।

मौसम  आया शीत का, मचल उठे जज्बात ।
कैसे बीती क्या कहें, मदन वेग की रात ।।

स्पर्शों की आँधियाँ, उस पर शीत अलाव ।
काबू में कैसे रहे, मौन मिलन का भाव ।।

आँखों -आँखों में हुए, मधुर मिलन संवाद ।
संवादों के फिर किए , अधरों ने अनुवाद ।।

सुशील सरना / 16-11-25

मौलिक एवं अप्रकाशित