by Sushil Sarna
on Sunday
दोहा पंचक. . . . शृंगार
बात हुई कुछ इस तरह, उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार ।।
मौसम की मनुहार फिर, शीत हुई उद्दंड ।मिलन ज्वाल के वेग में, ठिठुरन हुई प्रचंड ।
मौसम आया शीत का, मचल उठे जज्बात ।कैसे बीती क्या कहें, मदन वेग की रात ।।
स्पर्शों की आँधियाँ, उस पर शीत अलाव ।काबू में कैसे रहे, मौन मिलन का भाव ।।
आँखों -आँखों में हुए, मधुर मिलन संवाद ।संवादों के फिर किए , अधरों ने अनुवाद ।।
सुशील सरना / 16-11-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Cancel
दोहा पंचक. . . शृंगार
by Sushil Sarna
on Sunday
दोहा पंचक. . . . शृंगार
बात हुई कुछ इस तरह, उनसे मेरी यार ।
सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार ।।
मौसम की मनुहार फिर, शीत हुई उद्दंड ।
मिलन ज्वाल के वेग में, ठिठुरन हुई प्रचंड ।
मौसम आया शीत का, मचल उठे जज्बात ।
कैसे बीती क्या कहें, मदन वेग की रात ।।
स्पर्शों की आँधियाँ, उस पर शीत अलाव ।
काबू में कैसे रहे, मौन मिलन का भाव ।।
आँखों -आँखों में हुए, मधुर मिलन संवाद ।
संवादों के फिर किए , अधरों ने अनुवाद ।।
सुशील सरना / 16-11-25
मौलिक एवं अप्रकाशित