दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

जाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर ।
पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर ।।

लहरों से गीले सदा, रहते सागर तीर ।
बनकर कितने ही मिटे, यहाँ स्वप्न प्राचीर ।।

बनकर मिटते नित्य ही, कसमों भरे निशान ।
लहरों ने दम तोड़ते, देखे हैं अरमान ।।

दो दिल डूबे इस तरह , भूले हर तूफान ।
व्याप्त शोर में सिंधु के, प्रखर हुए अरमान ।।

खारे सागर में उठे, मीठी स्वप्न हिलोर ।
प्रेमी देखें साँझ में, अरमानों की भोर ।।

लहर - लहर पर प्रेम के, सपने करते रास ।
पल - पल सागर तीर पर, बढ़े मिलन की प्यास ।।

कहें कहानी प्रेम की, सागर तीर निशान ।
हर निशान में हैं छुपे, कितने ही तूफान ।।

सुशील सरना /

मौलिक एवं अप्रकाशित