by Sushil Sarna
Oct 31
दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम
जाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर ।।
लहरों से गीले सदा, रहते सागर तीर ।बनकर कितने ही मिटे, यहाँ स्वप्न प्राचीर ।।
बनकर मिटते नित्य ही, कसमों भरे निशान ।लहरों ने दम तोड़ते, देखे हैं अरमान ।।
दो दिल डूबे इस तरह , भूले हर तूफान ।व्याप्त शोर में सिंधु के, प्रखर हुए अरमान ।।
खारे सागर में उठे, मीठी स्वप्न हिलोर ।प्रेमी देखें साँझ में, अरमानों की भोर ।।
लहर - लहर पर प्रेम के, सपने करते रास ।पल - पल सागर तीर पर, बढ़े मिलन की प्यास ।।
कहें कहानी प्रेम की, सागर तीर निशान ।हर निशान में हैं छुपे, कितने ही तूफान ।।
सुशील सरना /
मौलिक एवं अप्रकाशित
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दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम
by Sushil Sarna
Oct 31
दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम
जाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर ।
पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर ।।
लहरों से गीले सदा, रहते सागर तीर ।
बनकर कितने ही मिटे, यहाँ स्वप्न प्राचीर ।।
बनकर मिटते नित्य ही, कसमों भरे निशान ।
लहरों ने दम तोड़ते, देखे हैं अरमान ।।
दो दिल डूबे इस तरह , भूले हर तूफान ।
व्याप्त शोर में सिंधु के, प्रखर हुए अरमान ।।
खारे सागर में उठे, मीठी स्वप्न हिलोर ।
प्रेमी देखें साँझ में, अरमानों की भोर ।।
लहर - लहर पर प्रेम के, सपने करते रास ।
पल - पल सागर तीर पर, बढ़े मिलन की प्यास ।।
कहें कहानी प्रेम की, सागर तीर निशान ।
हर निशान में हैं छुपे, कितने ही तूफान ।।
सुशील सरना /
मौलिक एवं अप्रकाशित