सदस्य टीम प्रबंधन

कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ

२१२२ १२१२ २२/११२

तमतमा कर बकी हुई गाली

कापुरुष है, जता रही गाली

 

भूल कर माँ-बहन व रिश्तों को
कोई देता है बेतुकी गाली

 

कुछ नहीं कर सका बुरा मेरा
खीझ उसने उछाल दी गाली 

 

ढंग-व्यवहार के बदलने से
हो गयी विष बुझी वही गाली
 
कब मुलायम लगी कठिन कब ये
सोचना कब दुलारती गाली
 
कौन कहिए यहाँ जमाने में
अदबदा कर न दी कभी गाली
 
नाज से तुम सहेज कर रखना
संस्कारों पली-बढ़ी गाली
***
मौलिक व अप्रकाशित

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  • सदस्य कार्यकारिणी

    गिरिराज भंडारी

    आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले तारीफ़ है , सभी  शेर  सामयिक और सार्थक लगे , ख़ास कर ये दो शेर , 

    कुछ नहीं कर सका बुरा मेरा
    खीझ उसने उछाल दी गाली  

    कब मुलायम लगी कठिन कब ये
    सोचना कब दुलारती गाली

    ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाईयाँ 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. 

  • धर्मेन्द्र कुमार सिंह

    बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें

    सब की माँ को जो मैंने माँ समझा

    भूल से भी न दी कभी गाली