by सुरेश कुमार 'कल्याण'
on Tuesday
लूटकर लोथड़े माँस के
पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त
डकारकर कतरा - कतरा मज्जा
जब जानवर मना रहे होंगे उत्सव
अपने आएंगे अपनेपन का जामा पहन
मगरमच्छ के आँसू बहाते हुए
नहीं बची होगी कोई बूॅंद तब तक
निचोड़ने को अपने - पराए की
बचा होगा केवल सूखे ठूॅंठ सा
निर्जिव अस्थिपिंजर ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
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अस्थिपिंजर (लघुकविता)
by सुरेश कुमार 'कल्याण'
on Tuesday
लूटकर लोथड़े माँस के
पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त
डकारकर कतरा - कतरा मज्जा
जब जानवर मना रहे होंगे उत्सव
अपने आएंगे अपनेपन का जामा पहन
मगरमच्छ के आँसू बहाते हुए
नहीं बची होगी कोई बूॅंद तब तक
निचोड़ने को अपने - पराए की
बचा होगा केवल सूखे ठूॅंठ सा
निर्जिव अस्थिपिंजर ।
मौलिक एवं अप्रकाशित