पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।

जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।

जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।

सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात।

मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।

परिवर्तन संदेश दे , चमकें तारे सात।

हूक हृदय में ऊठती, ज्यों चकवे की प्यास।

छत पर छिटकी चाँदनी, बेकाबू जज़्बात।

बिजना था हर हाथ में, सभी सुखी थे

झोल।

गलियों में ही खाट पर, सोता था देहात।

दिनभर धधके मेदिनी, ज्यों धवनी की आग।

शिकवा करके चाँद से, पाती शुभ सौगात।

नहा रहे ज्यों दूध से, फैल रही हो फैन।

शबनम बरसे रौप्य सी, तर हों तन तृण पात।

नयन नक्स पर नाज कर, मन में भर अभिमान।

चाँद देखती कामिनी, भूली निज औकात।

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात ।

जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।

मौलिक एवं अप्रकाशित