वहाँ मैं भी पहुंचा मगर धीरे धीरे
१२२ १२२ १२२ १२२
बढी भी तो थी ये उमर धीरे धीरे
तो फिर क्यूँ न आये हुनर धीरे धीरे
चमत्कार पर तुम भरोसा करो मत
बदलती है दुनिया मगर धीरे धीरे
हक़ीक़त पचाना न था इतना आसां
हुआ सब पे सच का असर धीरे धीरे
ज़बाँ की लड़ाई अना का है क़िस्सा
ये समझोगे तुम भी मगर धीरे धीरे
ग़मे ज़िंदगी ने यूँ ग़फ़लत में डाला
हुये इल्मो फन बे असर धीरे धीरे
जिधर रोशनी की झलक मिल रही है
चलो ना, चलें हम उधर धीरे धीरे
मुहब्बत इनायत शिकायत या नफरत
करेंगे ये सारे असर धीरे धीरे
अँधेरा किसी दिन उजाला बनेगा
उफ़क पर दिखेगा सहर धीरे धीरे
दुकाने बजारें थियेटर खुले जब
हुआ गाँव मेरा नगर धीरे धीरे
सभी हड़बड़ी में गये गिरते पड़ते
वहाँ मैं भी पहुंचा मगर धीरे धीरे
वो अब तेज़ रौ के अलम ना उठायें
जो चलते रहे उम्र भर धीरे धीरे
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मौलिक एवं अप्रकाशित
सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh
सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं
बहुत सुंदर ग़ज़ल
19 hours ago