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ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )

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गुफ़्तगू चुप्पी इशारा सब ग़लत

बारहा तुमको पुकारा सब ग़लत

 

ये समंदर ठीक है, खारा सही

ताल नदिया वो बहारा सब ग़लत

 

रोज़ डूबे, रोज़ लाया खींच कर

एक दिन क़िस्मत से हारा, सब ग़लत

 

एक क्यारी को लबालब भर दिये

भोगता जो बाग़ सारा, सब ग़लत

 

मान  जायेंगे  ग़लत वो  हैं, अगर

आप जो कह दें दुबारा, सब ग़लत

 

तुम रहे कुछ ठीक, कुछ मैं भी रहा

जो बचा  बाक़ी  हमारा, सब ग़लत

 

एक वो ही ठीक, जो  दिखता नहीं

वो कहे  कर के इशारा, सब ग़लत

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मौलिक एवं अप्रकाशित