ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा

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गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
नशा उतार ख़ुदाया नशा उतार मेरा.
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बना हुआ हूँ मैं जैसा मैं वैसा हूँ ही नहीं   
मुझे मुझी सा बना दे गुरूर मार मेरा.
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ये हिचकियाँ जो मुझे बार बार लगती हैं
पुकारता है कोई नाम बार बार मेरा.  
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मेरी हयात का रस्ता कटा है उजलत में
मुझे भरम था फ़लक को है इंतज़ार मेरा.
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पड़े जो बेंत मुझे उस की, दौड़ पड़ता हूँ
मैं जैसे हूँ कोई घोड़ा ये मन सवार मेरा.
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मैं उस से बच नहीं पाता हूँ गो ख़बर है मुझे   
करे है मेरी अना रात दिन शिकार मेरा.
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हर एक साँस बदलती है ज़र को पीतल में
न जाने हश्र में क्या दाम दे सुनार मेरा.
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किसी नज़र से उतरते ही मर गया था मैं
जिसे समझते हो तुम जिस्म है मज़ार मेरा.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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  • Nilesh Shevgaonkar

    धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय नीलेश जी, हार्दिक बधाई. 

    प्रस्तुत अश’आर के लिए तहेदिल से बधाई. 

    मैं उस से बच नहीं पाता हूँ गो ख़बर है मुझे   
    करे है मेरी अना रात दिन शिकार मेरा. 


    और,
    हर एक साँस बदलती है ज़र को पीतल में
    न जाने हश्र में क्या दाम दे सुनार मेरा.

    जय-जय 

  • अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी

    आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।