रिश्तों का विशाल रूप, पूर्ण चन्द्र का स्वरूप,
छाँव धूप नूर-ज़ार, प्यार होतीं बेटियाँ।
वंश के विराट वृक्ष के तने पे डाल और,
पात संग फूल सा शृंगार होतीं बेटियाँ।
बाँधती दिलों की डोर, देखती न ओर छोर,
रेशमी हिसार ताबदार होतीं बेटियाँ।
दो घरों के बीच एक सेतु सी कमानदार,
राह फूल-दार साज़गार होतीं बेटियाँ।।
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अशोक रक्ताले ‘फणीन्द्र’
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख पाता हूँ। शायद यही वज्ह थी कि मैं पढ़ते समय अटक रहा था।
2 hours ago
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला है
फेलुन फेलुन फाइलुन, फेलुन फेलुन फाअ
:-))
2 hours ago
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।
1 hour ago