नहीं दरिन्दे जानते , क्या होता सिन्दूर ।
जिसे मिटाया था किसी , आँखों का वह नूर ।।
पहलगाम से आ गई, पुलवामा की याद ।
जख्मों से फिर दर्द का, रिसने लगा मवाद ।।
कितना खूनी हो गया, आतंकी उन्माद ।
हर दिल में अब गूँजता,बदले का संवाद ।।
जीवन भर का दे गए, आतंकी वो घाव ।
अंतस में प्रतिशोध के, बुझते नहीं अलाव ।।
भारत ने सीखी नहीं, डर के आगे हार ।
दे डाली आतंक को ,खुलेआम ललकार ।।
कर देंगे आतंक के, मंसूबे सब ढेर ।
गीदड़ बन कर भागते , देखे ऐसे शेर ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Sushil Sarna
परम आदरणीय सौरभ जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी
14 hours ago
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.
10 hours ago
Sushil Sarna
ओह! सहमत एवं संशोधित सर हार्दिक आभार
2 hours ago