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जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में
वो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी में
दिखाई ही न दें मुफ़्लिस जहां से
न हो इतनी बुलंदी बंदगी में
दुआ करना ग़रीबों का भला हो
भलाई है तुम्हारी भी इसी में
अगर है मोक्ष ही उद्देश्य केवल
नहीं कोई बुराई ख़ुदकुशी में
यही तो इम्तिहान-ए-दोस्ती है
ख़ुशी तेरी भी हो मेरी ख़ुशी में
उतारो ये तुम्हें अंधा करेगी
रहोगे कब तलक तुम केंचुली में
जलें पर ख़ूबसूरत तितलियों के
न लाना आँच इतनी टकटकी में
सियासत, साँड, पूँजी और शुहदे
मिलें अब ये ही ग़ालिब की गली में
बहुत बीमार हैं वो लोग जिनको
फ़क़त एक जिस्म दिखता षोडशी में
अगरबत्ती हो या सिगरेट दोनों
जगा सकते हैं कैंसर आदमी में
गिरा लेती है चरणों में ख़ुदा को
बड़ी ताकत है ‘सज्जन’ जी मनी में
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, क्या ही खूब ग़ज़ल कही हैं। एक से बढ़कर एक अशआर हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर
Jul 3, 2024
Samar kabeer
जनाब धर्मेन्द्र कुमार जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'उतारो या तुम्हें अंधा करेगी'
इस मिसरे में 'या' की जगह "ये" करना उचित होगा ।
'महज एक जिस्म दिखता षोडशी में'
ये मिसरा बह्र में नहीं है, और सहीह शब्द है "मह्ज़" और इसका वज़्न 21 होता है, देखें ।
Jul 13, 2024
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
Jul 14, 2024