दोहा पंचक . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये )टूटे प्यालों में नहीं, रुकती कभी शराब ।कब जुड़ते है भोर में, पलक सलोने ख्वाब ।।मयखाने सा नूर है, बदन अब्र की बर्क ।दो जिस्मों…See More
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी हुई। आपके मार्गदर्शन अनुसार गीत में और प्रयास करता हूं। इस प्रस्तुति को मान देने के लिए आपका हार्दिक…"