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ऐसा हो तो फिर क्या होगा ....डॉ प्राची सिंह

मेरे मन की शांत नदी में अविरल बहती भाव लहर हो

मेरे गीतों से निस्सृत अक्षर-अक्षर का गुंजित स्वर हो

मैं तुलसी तुम मेरा आँगन, मैं श्वासों का अर्पित वंदन,

साथी-सखा-स्वप्न सब तुम ही, सच कह दूँ- मेरे ईश्वर हो !

 

आतुर आँखें आस लगाए राह निहारें लेकिन प्रियतम

साँझ ढले और तुम ना आओ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

धुआँ-धुआँ बन कर खो जाओ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

 

आँखों ही आँखों में दर्पण चीख़ उठेगा तुमको खोकर

एक हरारत होगी दिल में संग चलेगी जो जीवन भर

हँस देंगी, रो देंगी यादें , सिसक-सिसक कर बात करेंगी

सूनेपन का पार न होगा, हो भीतर या फिर हो बाहर

 

जम जाएँगे शब्द सभी और आँसूँ बनकर अर्थ बहेंगे

पर सिसकन तुम सुन न पाओ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

साँझ ढले...

 

मुझको तुमसे जुदा करें जो, उन रीतों पर चल न सकूँगी

जिन रंगों को तुम लाए हो, उन रंगों को छल न सकूँगी

आँसूँ से गीली कर मेहंदी नाम तुम्हारा हाथों में लिख-

अक्षर-अक्षर चूमूँगी तुमको, तुमसे हरपल महकूँगी

 

 देह रहे ज़िंदा मेरी पर रूह साथ तुम ले जाओ और-

यादें बन मुझमे घुल जाओ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

साँझ ढले...

 

सुधियाँ तेरी हाथ थाम कर हरदम मेरे संग बहेंगीं

कहाँ? करूँ क्या? कैसे? सब कुछ कानों में गुपचुप कह देंगी

अन्धेरी राहों में मेरी बिखरे होंगे जब भी काँटे-

अक्षरशः तेरी बातों की ध्वनियाँ तब मुझमें गूँजेंगी

 

इक अदृश्य सा साया बनकर हरदम मेरे साथ चलो पर-

कभी न तुम आवाज़ लगाओ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

साँझ ढले...

 

साँसों का तन में बहना ही अर्थहीन सा हो जाएगा

जीने का हर एक बहाना बस इक पल में खो जाएगा

इंतज़ार में ठहरी पलकें आँसू पीकर पथराएंगी-

हर सपना तेरी चौखट की नींव ओढ़ कर सो जाएगा

 

बिलख-बिलख कर रोएगा हर रोम तुम्हारे बिन हमराही

मत पूछो, मत यूँ तड़पाओ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

साँझ ढले...

 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 30, 2019 at 12:34pm

वाह बहुत खूब, प्राची जी बधाई

Comment by Samar kabeer on July 24, 2019 at 12:13pm

मुहतरमा डॉ. प्राची सिंह जी आदाब,अच्छा गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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