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मृगनयनी नवयौवना

लावण्य क्या कहना !

संकोच व लज्जा

बनी सुसज्जा.

सप्त-अंगुल भर

कटी प्रदेश कमाल.

ओ गजगामिनी

तेरी मदमस्त चाल.

अर्ध- पारदर्शी वस्त्र में कैद

अंग -प्रत्यंग में

लाती भूचाल,

तिर्यक दृष्टीपात

करती हृदय अघात

नारी सौंदर्य .

निहारते चक्षु.

अट्टालिकाओं से

चतुष्पथ पर...

 

 

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा ( सौंदर्य रस पूर्ण  बिम्ब )

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Comment

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Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 16, 2012 at 3:45pm

 श्री संदीप दिवेदी जी व श्री अश्वनी जी का सादर आभार व नमन ..आपकी साहित्यिक कृपा से मैं कृतार्थ हूँ .

Comment by अश्विनी कुमार on March 15, 2012 at 9:49pm

अति सुंदर एवम संग्रहणीय कृति ........

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 15, 2012 at 6:48pm

अति सुन्दर कृति डॉ. साहब| बहुत ही बढ़िया| सादर,

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 15, 2012 at 4:58pm

सादर आभार ..श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी ..नमन .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 4:04pm

bahut sunda tarike se sundar chitran, badhai mahodaya ji. 

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 15, 2012 at 3:26pm

आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी ..आप का आंकलन मेरे लिये अमूल्य निधि है .आभार स्वीकार करें .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2012 at 12:47pm

अंतर्दृष्टि को विवेचित क्या किया चित्त में संग्रहीत उछाह भाव उद्गार हो गये !! ..  वाह !

कृपया ध्यान दे...

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