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दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक 

नाम बदलने से कहाँ , खुलें भाग्य के द्वार ।
बिना  कर्म  संसार  में, कब  होता  उद्धार ।
जब तक चलती जिन्दगी, चले जीव संग्राम -
जीवन के हर मोड़ का, हार  जीत  शृंगार ।
                         ***
काहे  अपने  रूप  पर, करता  जीव गुमान ।
कहते   हैं   रहती  नहीं, उम्र  ढले  पहचान ।
बुझ कर भी बुझती नहीं, अरमानों की आँच -
मुट्ठी   भर    की   जिंदगी, तेरी  है   इंसान ।

सुशील सरना /

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on April 7, 2023 at 12:12pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2023 at 7:46pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर दोहा मुक्तक हुए हैं। हार्दिक बधाई।

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