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शिज्जु "शकूर"'s Blog (133)

ग़ज़ल: आईना सामने रखा

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आइना सामने रखा तुमने कमाल कर दिया

हो गए ला-जवाब वो ऐसा सवाल कर दिया

उनको गुरूर था बहुत जीत पे अपनी कल तलक

ख़ौफ़-ए-शिकस्त ने उन्हें आज निढाल कर दिया

तेज़ हवा ने यक-ब-यक जिस्म से खींच ली कबा

खुल गए ज़ख्म दुनिया को वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया

ज़ोर चला है वक़्त पर कब किसी का बताइए

शम्स को भी तो वक्त ने पल में हिलाल कर दिया

जड़ दिए एक एक कर मेरे हुरूफ़ में गुहर 

सागर-ए-इश्क़ ने मुझे…

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Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2023 at 9:21am — 4 Comments

ज़िन्दगी गर मुझको तेरी आरज़ू होती नहीं(ग़ज़ल)

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ज़िन्दगी गर मुझको तेरी आरज़ू होती नहीं

अपनी सांसों से मेरी फिर गुफ़्तगू होती नहीं

गर तड़प होती न मेरे दिल में तुझको पाने की

मेरी आँखों में, मेरे ख्वाबों में तू होती नहीं

उम्र गुज़री है यहाँ तक के सफ़र में, दोस्तो!

पर ये वो मंज़िल है, जिसकी जुस्तजू होती नहीं

ये जहाँ गिनता है बस कुर्बानियों की दास्ताँ

जाँ लुटाये बिन मुहब्बत सुर्ख-रू होती नहीं

दोस्तों के दिल मुनव्वर जो नहीं होते 'शकूर'

रौशनी भी…

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Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2020 at 1:09pm — 9 Comments

एक ग़ज़ल - शिज्जु शकूर

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बे-ख़्वाब आँखों में दबे लम्हात से अलग
गुज़री है ज़िन्दगानी अलामात से अलग

दस्तार रह गई है रवाजों के दरमियाँ
पर इश्क़ खो गया है रिवायात से अलग

जीने की चाह में हुआ बंजारा आदमी
बस घूमता दिखे है मक़ामात से अलग

किस रिश्ते की दुहाई दूँ अहल ए जहाँ को मैं
है क्या यहाँ पे कहिये फ़सादात से अलग

वो वक़्त और ही था कि मौसम बदलते थे
मौसम रहा न अब कोई बरसात से अलग

-मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2018 at 1:26pm — 13 Comments

जितना बड़ा जो झूठा है वो, उतना ही अधिक चिल्लाता है - शिज्जु शकूर

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जितना बड़ा जो झूठा है वो, उतना ही अधिक चिल्लाता है

आवाज़ के पीछे चुपके से, रस्ते से यूँ भी भटकाता है

 

तुम बाँच रहे हो जो इतना, अज्दाद के किस्से मंचों से

उन किस्सों को सुनने वाला अब, पत्थर पे जबीं टकराता है

 

इंसान फ़कत है इक ज़र्रा, मिट जाएगा खुद इक झटके में

आकाश को छूती मीनारें, बेकार ही तू बनवाता है

 

है रंग बदलने में माहिर, हर शख़्स सियासत के अंदर

कुछ भी कहे वो लेकिन मतलब, कुछ और…

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Added by शिज्जु "शकूर" on March 25, 2018 at 8:13am — 19 Comments

इसी दुनिया में अपनी मुख़्तसर दुनिया बनाता हूँ

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ज़मीन-ओ-आसमाँ के दरमियाँ रस्ता बनाता हूँ

इसी दुनिया में अपनी मुख़्तसर दुनिया बनाता हूँ



चढ़ाकर चाक पर मिट्टी कहा कुम्हार ने मुझसे

जहाँ जैसी ज़रूरत है इसे वैसा बनाता हूँ



बना लेता है अपने आप ही ये मुख़्तलिफ़ शक्लें

मेरा फ़न सिर्फ़ इतना है कि आईना बनाता हूँ



गुज़श्ता ज़िंदगी के तज़्रबों से वाकिए चुनकर

अकेला होता हूँ जब भी, कोई किस्सा…

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Added by शिज्जु "शकूर" on February 22, 2018 at 11:24am — 5 Comments

ख़्वाब तूने कोई बुना होगा

2122 1212 22/112

ख़्वाब तूने कोई बुना होगा

तब तेरा रतजगा हुआ होगा

 

सर यक़ीनन मेरा झुकेगा जनाब

आपसे जब भी सामना होगा

 

मुद्दतों बाद मेरी याद आई

मुश्किलों से कहीं घिरा होगा

 

मुझको मेहनत लगी थी लिखने में

उसको एहसास इसका क्या होगा

 

शहर में होना आरज़ी है मगर

तज़्किरा मेरा बारहा होगा

 

आरज़ी – थोड़े समय के लिए, तज़्किरा – जिक्र

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2017 at 11:24am — 6 Comments

सच का चोगा पहना दो - शिज्जु शकूर

सच का चोगा पहना दो
झूठ का परचम लहरा दो

इसमें है साख तुम्हारी
कि सियारों को रँगवा दो

सच न ज़मीं तक आ जाए
सबको बाहम उलझा दो

लिखा हुआ है काग़ज़ पर
सच में भी वो दिखला दो

पहले जैसा था मेरा
घर वैसा अब लौटा दो

सबकुछ अच्छा-अच्छा है
अख़बारों में छपवा दो

ये भी आज चलन में है
सारे अहसान भुला दो

-मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on May 28, 2017 at 4:46pm — 7 Comments

दिल ए नाकाम पर हँसी आई

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दिल ए नाकाम पर हँसी आई

तेरे इलज़ाम पर हँसी आई



जिस मुहब्बत की आरज़ू थी बहुत

उसकेे अंजाम पर हँसी आई



दास्ताँ अपनी लिखने बैठा था

अपने इस काम पर हँसी आई



जिसमें तुमने कभी रखा था मुझे

आज उस दाम पर हँसी आई



मेरे क़ातिल का तज़किरा जो हुआ

तो हर इक नाम पर हँसी आई।



दफ्अतन मेरी जाँ से लिपटे हुए

सभी आलाम पर हँसी आई



सारे असरार जब खुले मुझपर

अपने औहाम पर हँसी… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2017 at 5:26pm — 22 Comments

कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले

2122 1122 1122 22/112

कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले

वो मेरे दोस्त मुझे रस्ता दिखाने वाले



वक्त ने, काश! उन्हें रुकने दिया होता ज़रा

साथ ही छोड़ गए साथ निभाने वाले



मुफ़लिसी मक्र की छाई है सियाही अब भी

पर बताओ हैं कहाँ शम्अ जलाने वाले



अपने क़ातिल से शिकायत नहीं कोई मुझको

कर गए ग़र्क मेरी कश्ती, बचाने वाले



खूब तासीर नज़र आई मुहब्बत की यूँ

रो पड़े जाँ को मेरी फ़ैज़ उठाने वाले



एकता टूटने पाए न कभी, मसनद पर

आके बैठे…

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Added by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 11:30am — 19 Comments

दुआओं की पहुँच तो आसमाँ तक है

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दुआओं की पहुँच तो आसमाँ तक है
मगर तू बोल तेरी हद कहाँ तक है

तेरी ख़ामोशी तेरा घर जला देगी
अभी शोला पड़ोसी के मकाँ तक है

ज़माना चाँद को छू आया है लेकिन
तू अब भी जुगनुओं की दास्ताँ तक है

परस्तिश देखिए गौ माँ के भक्तों की
अक़ीदत सिर्फ़ उन सबकी ज़बाँ तक है

वहाँ से देखता हूँ दुनिया को ऐ जाँ
रसाई तेरी नज़रों की जहाँ तक है

Meaning:
परस्तिश - पूजा, अक़ीदत - श्रद्धा
रसाई - पहुँच
-मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on April 12, 2017 at 7:44pm — 8 Comments

लफ़्जों से दर्द की दवा करके

2122 1212 22/112



लफ़्जों से दर्द की दवा करके

देखा है यूँ भी तज़्रबा करके



तुम पे दहशत कोई मुसल्लत थी

करना क्या था तुम आए क्या करके



खींचता हूँ हयात को मैं फ़क़त

कट रही है खुदा खुदा करके



अपने माज़ी से है सवाल मेरा

क्या मिला उनसे राबिता करके



होश आ जाए नामुरादों को

देखिए मुहतरम दुआ करके



खिड़कियाँ खोल दी शबिस्ताँ की

दिल से सपनो को अब जुदा करके



दस्तबरदार तुमसे हो जाऊँ

सोचा था मैंने हौसला… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on March 30, 2017 at 1:30pm — 13 Comments

पत्ता था, सब्ज़, टूटके खिड़की में आ गया

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पत्ता था, सब्ज़, टूटके खिड़की में आ गया

हस्ती शजर की बाकी है मुझको बता गया

 

माना हवाएँ तेज़ हैं मेरे खिलाफ़ भी

लेकिन जुनून लड़ने का इस दिल पे छा गया

 

खोने को पास कुछ भी नहीं था हयात में

किसकी तलाफ़ी हो अभी तक मेरा क्या गया

 

शायद ये दुनिया मेरे लिए थी नहीं कभी

फिर शिकवा क्यों करुँ कि खुदा फ़ैज़ उठा गया

 

ख़्वाबों को ज़िन्दा करके भी क्या होता, दोस्तो!

मेरा जो वक्त था…

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Added by शिज्जु "शकूर" on March 17, 2017 at 2:30pm — 9 Comments

जो अपने ख्वाब के लिए जाँ से गुज़र गए

221 2121 1221 212

.

जो अपने ख्वाब के लिए जाँ से गुज़र गए

खुद ख़्वाब बनके सबके दिलों में उतर गए

 

थोड़ा असर था वक्त का थोड़ी मेरी शिकस्त

जो ज़ीस्त से जु़ड़े थे वो अहसास मर गए

 

रिश्तों पे चढ़ गया है मुलम्मा फ़रेब का

अब जाने रंग कुदरती सारे किधर गए

 

ये सोच ही रहा था कि मैं क्या नया लिखूँ

फिर से वही चराग़ वरक़ पर उभर गए

 

बिखरे हुए थे दर्द तुम्हारी किताब में

दिल से गुज़र के वो मेरी आँखों…

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Added by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2017 at 10:30am — 8 Comments

इस तरह हमने दिन गुज़ारा है- ग़ज़ल

2122 1212 22/112



इस तरह हमने दिन गुज़ारा है

बारहा खुद को ही पुकारा है



संग से क्या डरेगा वो जिसने

कू ए क़ातिल में दिन ग़ुज़ारा है



ज़र्द पत्ता हूँ मैं खिजाँ ने मुझे

पेड़ की शाख से उतारा है



कम है सोचो तो काइनात भी और

जीना हो तो जहान सारा है



जज़्ब कर दर्द मुस्कुराहट में

हमने चेहरा बहुत सँवारा है



हमपे कुछ इख़्तियार तो रखते

जो हमारा है वो तुम्हारा है



बाँट सकते हो तुम भी अपने ग़म

“जो… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2017 at 9:11pm — 12 Comments

वक्त मेरे हाथों से, यूँ फिसल गया चुपचाप

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वक्त मेरे हाथों से, यूँ फिसल गया चुपचाप

मेरी हर तमन्ना को, वो कुचल गया चुपचाप

 

चाक दिल, शिकस्ता पा, बेचराग़ गलियों से

भूल अपने ख्वाबों को, मैं निकल गया चुपचाप

 

एक आइना था…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 19, 2017 at 6:16pm — 7 Comments

सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं

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सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं

हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं

 

अह्ल ए अदब जो चमके है औरों के ताब से

खुद को मगर वो लाल ए बदख़्शाँ समझते हैं

 

आमाल में हमारे ही कमियाँ न हों जनाब

शैतान को भी लोग मुसलमाँ समझते हैं

 

बातों से जब न बात बनी, सर झुका लिया

धोखे में हैं जो उसको पशेमाँ समझते हैं

 

फिरती है वो हलक में लिए जान, और आप

कुत्तों के बीच जीने को आसाँ समझते…

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Added by शिज्जु "शकूर" on January 11, 2017 at 11:40am — 12 Comments

रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा - ग़ज़ल

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रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा

बेखुदी में तूने मेरे दोस्त ये क्या-क्या लिखा

 

वो तो सीधे रास्ते पर था मगर यह देखिये

नासमझ लोगो ने उसका हर क़दम उल्टा लिखा

 

एक मुद्दत से अदब में है सियासत का चलन

मैं अलग था नाम के आगे मेरे झूठा लिखा

 

जब तेरे दिल में कभी उभरा जो मंज़र शाम का

तूने काग़ज़ पर महज मय सागर-ओ-मीना लिखा

 

अब मुहब्बत पर अक़ीदत ही नहीं है लोगों को

इसलिए पाक़ीज़गी को ही…

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Added by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:30pm — 20 Comments

किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले

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किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले

फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले

 

दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं

हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले

 

नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का…

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Added by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2016 at 11:00am — 17 Comments

मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है- शिज्जु शकूर

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मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है

वो लड़कपन खूब था अब ये  जवानी और है

 

आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया

तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है

 

मैं छुपाता हूँ जहाँ से दर्द-ए-दिल ये बोलकर

हिज़्र की तासीर कुछ मेरी कहानी और है

 

वस्ल की बातें वो लमहे भूल भी जाऊँ मगर

मेरे दिल में इक मुहब्बत की निशानी और है

 

आबले हाथों के मुझसे कह रहे हैं फूटकर

कामयाबी और शय है जाँफ़िशानी…

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Added by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2016 at 5:54pm — 16 Comments

एक तरही ग़ज़ल

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शाम के मद्धम उजालो में वो डर का जागना

मेरी किस्मत में लिखा है उम्र भर का जागना



खामुशी से जुल्म का कब हो सका है एहतजाज

देखना बाकी है अब सोए नगर का जागना



जब भी वापस लौटता हूँ देखता हूँ मैं फ़क़त

एक तनहा शाम के साए में घर का जागना



काश देखा होता तुमने मेरे चेहरे पर कभी

राह तकती दूर तक बेबस नज़र का जागना



याद है? वो सर्दियों की नर्म रातें,और फिर

चाय की वो चुस्कियाँ लेकर सहर का जागना



एहतिजाज-… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on September 11, 2016 at 12:30pm — 4 Comments

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