फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
दर्द अपना यूँ सर-ए-बाज़ार कर के
क्या मिलेगा वक़्त से तक़रार कर के
कुछ नहीं हासिल,समझते क्यों नहीं हो
गम उठाना आह भरना प्यार कर के
सामने उस मोड़ पर कुछ अनमना सा
शख़्स इक बैठा है सब न्योछार कर के
बन्दगी उल्फत है मैं था इस गुमां में
वो नहीं आया अना को पार कर के
दिल जला के रौशनी होती नहीं है
ये भी 'ब्रज' ने देखा है सौ बार कर के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 25, 2018 at 6:00pm — 23 Comments
मोबाइल पर मेल का नोटिफिकेशन देख मोहन की आँखें चमक उठीं।शायद पायल का मेल हो।जल्दी से मेल खोला..हाँ ,ठीक 17 दिन बाद पायल का मेल था।अक्सर मेल नोटिफिकेशन देख खिल जाता है मोहन लेकिन अक्सर मायूसी ही हाथ लगती।खैर देखूं तो सही क्या लिखा है...अपने चश्मे को ठीक करता हुआ मोहन मेल पढ़ने लगा।"56 को हो गईं हूँ मैं और आप भी 60-65 तो होंगे ही,अब तो बता दो क्या मायने रखती हूँ मैं?और क्यों?" पिछले 40 सालों से ये सवाल कई बार पूछा था पायल ने लेकिन "कुछ सवालों को लाजबाब रहने दो" कह कर हर बार टाल गया मोहन।पर…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 22, 2018 at 5:30pm — 20 Comments
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
हूँ बहुत हैरान पिछले कुछ दिनों से
ज़ीस्त है हलकान पिछले कुछ दिनों से
चाँद भी है आजकल कुछ खोया खोया
रातें हैं वीरान पिछले कुछ दिनों से
आदमी हूँ आदमी के काम आऊँ
है यही अरमान पिछले कुछ दिनों से
कौड़ियों के भाव बिकती हैं अनाएं
मर गया ईमान पिछले कुछ दिनों से
जोश में है भीड़ 'ब्रज' आक्रोश भी है
बस नहीं है जान पिछले कुछ दिनों से
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2018 at 5:00pm — 13 Comments
धीरे धीरे आओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
होंठों पर मुस्कान सजाये
सोया है मृग छौना
आहट से तेरी टूटेगा
उसका ख्वाब सलोना
बात समझ भी जाओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
तुम चलते हो पीछे पीछे
चलते हैं सब तारे
और तुम्हारी सुंदरता पर
इठलाते हैं सारे
तुम तो मत इतराओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
ऐसे भी कुछ घर आँगन हैं
बसते जहाँ अँधेरे
भूख वहाँ करताल बजाये
संध्या और सबेरे
उस दर भी मुस्काओ चन्दा
धीरे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 8, 2018 at 6:30pm — 18 Comments
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