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जिस दौर से हम तुम गुजरे हैं

जिस दौर से हम-तुम गुजरे है,

वो दौर ज़माना क्या जाने?

हम दोनों हीं बस किरदार यहाँ के,

कोई अपना अफसाना क्या जाने 

 

रंगमंच के पर्दे के पीछे

चरित्र सभी गढ़े जाते है 

जो कहते है जो करते है

वो बोल सभी लिखे जाते है

 

हम दोनों अपने किरदार में थे

अपनी बेचैनी कोई क्या जाने? 

जिस दौर से हम तुम गुजरे है,

वो दौर जमाना क्या जाने? 

 

है एक लम्हे का साथ सही,

पर साथ पुराना लगता है 

तुम कंधे…

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Added by AMAN SINHA on March 23, 2023 at 10:03am — No Comments

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास :इस्लाह के लिए

1222×4

एक ताज़ा ग़ज़ल प्रस्तुत है मित्रों इसमें यह सुझाव देने की कृपा करें कि यदि तक की जगह भी कर दिया जाए तो कैसा रहेगा

वफ़ा के रास्ते पे कोई रहबर तक नहीं आता

किसी का ज़िक्र क्या वो अपना होकर तक नहीं आता

मैं अपनी जिंदगी उस रास्ते पर छोड़ आया था

जहाँ से अब कोई रास्ता मेरे घर तक नहीं आता

तुम्हारा दुख वहीं चौखट पे लग के रोता रहता है

सौ जमघट देख कर वो दिल के भीतर तक नहीं…

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Added by मनोज अहसास on March 22, 2023 at 11:00pm — No Comments

केवल तुमको प्यार लिखूँ(गीत-२२) - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

नित्य  तुम्हारे  चन्द्र  रूप  को,  मन  चाहा  शृंगार  लिखूँ ।

मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।

छुईमुई  हो   पीर  सयानी,

सुख की नूतन रहे कहानी।।

अँखियों में चंचलता खेले,

सिर पर ओढ़े चूनर धानी।।

मुस्कानों  की  हर  गठरी  पर, यौवन  का  उपहार  लिखूँ।

मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।

*

छमछम  पायल  ओट बजाना

फिर साँसों की सुधि भरमाना।।

भौंरों जैसी अठखेली पर,

छुईमुई सा झट शरमाना।।

बालापन  सी …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2023 at 9:05am — No Comments

ग़ज़ल (गर आपकी ज़ुबान हो तलवार की तरह)

माना  नज़र  है  तेरी  ख़रीदार  की तरह

लेकिन न लूट तू  मुझे  बाज़ार  की तरह

रिश्ते  बिगड़ते  देर  तनिक भी नहीं लगे

गर आपकी ज़ुबान हो तलवार की तरह

वो तो चुनाव  जीत के  परधान  बन  गया

जो  घूमता  था  गाँव  में  बेकार  की तरह

वादा तो कीजिये नहीं और कर दिए अगर

वादा  खिलाफी हो  नहीं सरकार की तरह

देते  हैं  भाव  नेता  चुनावों  के  वक़्त  पर

और  फेंक  देते  बाद में अख़बार की तरह

शाइर …

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Added by नाथ सोनांचली on March 21, 2023 at 7:49pm — 1 Comment

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

1222×4

ज़रा सा और मैं दुनिया के ग़म में चूर हो जाता

हमारे बीच का ये फासला भरपूर हो जाता

मैं जैसे रोज जलता हूँ तेरी यादों की बारिश में

किसी दिन तू भी मुझसे मिलने को मजबूर हो जाता

मैं अपने आप से लड़कर भी अक्सर हार जाता हूँ

ज़माने से अगर लड़ता तो चकनाचूर हो जाता

इसी डर ने मुझे तुझ तक पहुँचने से सदा रोका

मेरे साये से तेरा नाम ही बेनूर हो जाता

तेरी बातें बहुत दिन बाद इक हमदर्द से की तो

मुझे…

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Added by मनोज अहसास on March 17, 2023 at 11:16pm — 4 Comments

तुम ना आया करो ख्वाब मे

तुम ना आया करो ख्वाब में हमें रुलाने के लिए

टूट चुके उन नातों को फिर से तोड़ जाने के लिए

तुम जा चुके हो मान लो, इस सत्य को तुम जान लो

उस जहां से ना आया करो हमें सताने के लिए



तुम्हें गए हुए अब दो वर्ष बीत चुके है

बिन तुम्हारे जीना अब हम सीख चुके है

तुम लौटा ना करो सपनों में हमें जगाने के लिए

रात भर जाग कर बस तुम्हें भुलाने ले लिए



मुझे मालूम हैं के हम अंतिम क्षण मिल ना पाए थे

मैं खड़ा था वहीं पर मैंने कदम नहीं बढ़ाए थे

अब आगे बढ़कर तुम… Continue

Added by AMAN SINHA on March 14, 2023 at 10:12am — No Comments

पतझड़ से मत घबराना मन (गीत- २१)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

हर पीड़ा जब पतझड़ ढोता, तब हँसता सन्सार वसंती।

पतझड़ से मत घबराना मन, हर पतझड़ आधार वसन्ती।।

*

सुमन नहीं इसके हिस्से में,

केवल पत्ते, वही बिछाता।

एक यही तो ऋतुराज की,

करने को अगवानी आता।



है इसका हर त्याग अबोला, खिलता जिससे प्यार वसन्ती।

पतझड़ से मत घबराना मन, हर पतझड़ आधार वसन्ती।।

*

मत कोसो इसको नीरस कह,

इस ने हर नीरसता लूटी।

झाड़े इसने तन से कणकण,

तब जाकर नव कोंपल फूटी।।



चलो सराहो इसकी कोशिश, जिस ने जोड़ा तार…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2023 at 8:11pm — 2 Comments

गज़ल ः

1222 1222 122

कहूँ सच आपका कोई नहीं है

जहाँ में आश्ना कोई नहीं है

सबूतों बात ये कह दी अभी से

वो दुनिया में मिरा कोई नहीं है

ये सब माया उसी की जो छुपा है

सिवा उसके ख़ुदा कोई नहीं है

अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है

अभागा अन्यथा कोई नहीं हैं

किया जो ज़ुर्म उसने वो भरेगा

वो मेरा मुँहलगा कोई नहीं है

मुखौटा कब कोई पहना है मैंने

बहस ये मुद्दआ कोई नहीं है

जो है इनसान का…

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Added by Chetan Prakash on March 12, 2023 at 7:44pm — 1 Comment

कविता: "एक वज़ह"

 शिकवों के दौर थे काफी,

 साथ ना तेरे आने को,

 पर एक वज़ह जिंदा थी बाकी,

 तेरा साथ निभाने को।

 

 अल्फाज़ों का शोर बहुत था,

 तुझे दगा बताने को।…

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Added by Dr. Geeta Chaudhary on March 11, 2023 at 10:28pm — 2 Comments

आलेख - माँ की देखभाल औलाद की नैतिक जिम्मेदारी

माँ की देखभाल औलाद की नैतिक जिम्मेदारी

गाज़ियाबाद। इंदिरा चौधरी ने 85 साल की उम्र में जिस इकलौते बेटे की पैरवी करके जमानत कराई, उसे उन्होंने अकेले पाँच वर्ष की उम्र से पाला था। वह जब जेल से बाहर आया तो मां को साथ रखने के बजाय वृद्धाश्रम में छोड़ गया। वह बताती हैं कि वह वाराणसी में बेटे-बहू के साथ ही रह रही थीं। एक दिन अचानक बेटा बहू और पोते को लेकर लापता हो गया। पता चला कि वह जिस कंपनी में काम करता था, वहीं गबन कर गया। कंपनी के केस दर्ज कराने के बाद पुलिस ने उसे तिहाड़ जेल में…

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Added by Rachna Bhatia on March 9, 2023 at 10:17am — 4 Comments

ग़ज़ल - मेरे घर आज आ रहा है कोई

2122 1212 22

1

सोये जज़्बे जगा रहा है कोई 

दिल प हौले से छा रहा है कोई 

2

नज़रों से मय पिला रहा है कोई

मुझको मुझसे चुरा रहा है कोई

3

चाँद तारो न उम्र भर जाना

मेरे घर आज आ रहा है कोई

4

चन्दा कुछ देर ओढ़ ले बदरी

छत प मुझको बुला रहा है कोई

5

मुस्कुराहट सजा के होटों पर

इश्क करना सिखा रहा है कोई 

6

लौटना अपना मुस्तरद*करके

मेरा ओहदा बढ़ा रहा है…

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Added by Rachna Bhatia on March 8, 2023 at 8:17pm — 2 Comments

बरसों बाद मनायें होली(गीत-२०)-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

लुकछिप आना झील किनारे, लेकर गोरी रंग।

बरसों बाद मनायें होली, फिर से हम तुम संग।।

*

सुनते सब  से  गाँव तुम्हारे, यौवन  भरी बहार।

फागुन में लचकी है चहुँदिश, फूलों वाली डार।।

फूल पलासी भरना थोड़े, आँचल अबकी बार।

हम  सूखे  पतझड़  के  वासी, मानेंगे उपकार।।

**

पा लेगा  उन फूलों  से ही, जीवन  नयी उमंग।

बरसों बाद मनायें होली, फिर से हम तुम संग।।

**

प्यासी  बंजर  धरती  जैसे, हैं  मन  के  हालात।

रूठ गयी है हर एक बदली, हवा न करती बात।।

कर  बैठा …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2023 at 7:13am — 7 Comments

ग़ज़ल नूर की- नहीं जो था होना वो सब हो रहा है

नहीं जो था होना वो सब हो रहा है

निज़ाम-ए-ख़ुदा में ग़ज़ब हो रहा है.

.

इबादत में कैसा शग़ब हो रहा है                  शग़ब- कोलाहल 

धड़क-कर ये दिल बे-अदब हो रहा है.

.

ज़रूरी नहीं कोई मक़सद हो अपना…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 2, 2023 at 5:44pm — 3 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : पीठ का दाग (गणेश बाग़ी)

रवाजे को खटकाते हुए पड़ोसन ने आवाज़ लगायी..

"गुड़िया की मम्मी, गुड़िया की मम्मी....."

"आओ आओ, शीला बहन, कैसी हो ?" दरवाजा खोलते हुए गुड़िया की मम्मी ने औपचारिकता निभायी ।

"सब ठीक है बहन, तनिक चीनी चाहिए था"

"अरे क्यों नही, अभी देती हूँ, बैठो तो"

"तुमको पता है शीला ! 605 वाली विमला की छोटी बेटी का चक्कर किसी से चल रहा है, कल उसको एक लड़के से बतियाते देखी थी"

"छोड़ो न बहन, उसके साथ पढ़ने वाला कॉलेज-वालेज का कोई लड़का रहा होगा"

"अरे ना…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2023 at 5:32pm — 13 Comments

ममता ......(लघुकथा )

ममता ....

"सुनिए,  मैं ये कह रही थी कि 5 दिन के बाद अपनी पोती नीलू का जन्म दिन है । नीलू पूरे चार साल की हो जाएगी" पार्वती ने लेटे-लेटे अपने  पति राघव से कहा।

"हाँ वो तो है ।" राघव ने जम्हाई लेते हुए कहा ।

"मैं ये सोच रही थी क्यों न हम  इस मौके पर हम  अपनी तरफ से ग्यारह हजार रुपये का चेक अपने आशीर्वाद के रूप में भेज दें क्योंकि शारीरिक व्याधियों की हम दिल्ली तो जा नहीं सकते ।" पार्वती ने कहा ।

"तेरा विचार सही है । मैं कल ही  बैंक में चेक डाल दूँगा ।…

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Added by Sushil Sarna on February 28, 2023 at 9:46pm — 4 Comments

मैं रोना चाहता हूँ

मैं रोना चाहता हूँ

बस एक बार रोना चाहता हूँ

अपने आँखों को आँसुओं से

खूब भींगोना चाहता हूँ

बस एक बार रोना चाहता हूँ



पता नहीं कब क्यूँ और कैसे

आँसू मेरे सुख गए

दर्द मिला है इतना के अब

दर्द के नाले सुख गए

बस रोकर उनको फिर से मैं

गीला करना चाहता हूँ

बस एक बार रोना चाहता हूँ



याद पड़ा जब छोटा था

बात-बात पर रोता था

थक जाता जब रो-रो कर

माँ के गोद में सोता था

फिर एक बार मैं

उस गोद में सोना चाहता हूँ

बस… Continue

Added by AMAN SINHA on February 27, 2023 at 12:52pm — 4 Comments

तुम मुझसे पहले जैसा प्यार नहीं करते

तुम मुझसे पहले जैसा प्यार नहीं करते

करते भी हो तो इजहार नहीं करते

कहो, क्यों पहले जैसा प्यार नहीं करते?

और करते हो तो क्यों इजहार नहीं करते?



क्यूँ जुबा पर बातें तेरी आते-आते रुक जाती है?

पहले जैसी लबों से तेरी क्यूँ फिसल ना जाती है?

पहले जैसी क्यूँ अब तेरी साँसे तेज़ नहीं चलती?

मेरी जैसी तेरी आहें अब क्यों बात नहीं करती?



क्यूँ अब तुम पहले जैसा कोई शिकवा नहीं करते?

क्यूँ छोटी-छोटी बातों पर तुम मेरे साथ नहीं लड़ते?

क्यूँ अब तेरा हँसना… Continue

Added by AMAN SINHA on February 25, 2023 at 12:31pm — No Comments

गीत(१९)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव

भरी दुपहरी मिल जाती है, जहाँ पेड़ की छाँव।।

*

नगर हमेशा दुख देकर  ही, माने  अपनी जीत

आँगन चाहे एक नहीं पर, खड़ी बहुत हैं भीत

अपनों की तो बात अलग है, रही गाँव की रीत



किसी पराये का भी दुख में, सहला देता पाँव

अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव।।

*

सकी माँगें नहीं असीमित, रोटी कपड़ा गेह

जिसे नगर सा नहीं ठाठ से, होता पलभर नेह

मन में सेवाभाव…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2023 at 6:17pm — 2 Comments

हम तुम तो ऐसे ना थे

वही दिन है वही रातें जैसे वर्षों पहले थे

पर अब जैसे तुम मिले हो पहले तो ऐसे ना थे

अब भी पुरानी तसवीरों में ऐसी है मुस्कान तेरी

जैसे कोई बांध के रख दे नज़रों से जुबान मेरी 

सन्दुक में रखे कपड़े तेरे नए आज भी लगते हैं

तेरी यादों की खुशबू से महके-महके से रहते हैं

हंसी पुरानी गयी कहाँ अब तेरे कपड़े तो ऐसे ना थे

पर अब जैसे तुम मिले…

Continue

Added by AMAN SINHA on February 22, 2023 at 10:00am — No Comments

सब खैरियत

कहाँ रहते वो कैसे रहते

उनसे न होती अपनी बात

वैर भाव की बात नही ये, अब उनसे न कोई दुआ-सलाम।।

 

खैरियत भी वो नहीं पूछते

क्या प्रेमभाव की करूँ मैं बात

अच्छे-खासे रिश्ते उनसे, न जानें क्यूँ वो रहते नाराज।।

 

हसी-मजाक, टिटौली चलती

हमारी कौन सी लगी उन्हें बुरी बात

कल तक थे जो अपनों से बढ़कर, है आज उसने दूरी खास।।

 

आना-जाना लगा रहता था

मिलजुल कर पहले रहते…

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Added by PHOOL SINGH on February 21, 2023 at 9:38am — 4 Comments

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