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आ जाती हैं तितलियाँ, होते ही नित भोर
सब को इनकी सादगी, खींचे अपनी ओर।१।
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मधुवन में जब तितलियाँ, बहुत मचाती धूम
पीछे - पीछे भागता, हर्षित बचपन झूम।२।
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फूलों से अठखेलियाँ, कलियों से कर बात
तन–मन में जादू जगा, तितली सोये रात।३।
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मधुबन में जब बैठते, बच्चे , वृद्ध, जवान
सबकी देखो तितलियाँ, हरती लुभा थकान।४।
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छोटे -छोटे पंख से, रचकर मृदु संगीत
कलियों से तितली कहे, फूल बने हैं मीत।५।
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नापे नभ को तितलियाँ,…
Posted on March 31, 2023 at 10:02pm
१२२/१२२/१२२/१२२
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अँधेरों से जब जब डरी रोशनी है
बड़ी मुश्किलों में पड़ी जिन्दगी है।१।
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कहीं आदमी खुद लगे देवता सा
कहीं देवता भी हुआ आदमी है।२।
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सहेजी न हम से गयी यार पुरवा
कहो मत कि अब हर हवा पश्चिमी है।३।
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हमें यूँ न रंगीन सपने दिखाओ
हमारे हृदय में बसी सादगी है।४।
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समझ कौन पाया रही एक औषध
कहन आपकी जो लगी नीम सी है।५।
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वही लोक में नित हुए देवता हैं
जिन्हें नार केवल रही उर्वसी है।६।
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मौलिक /…
Posted on March 30, 2023 at 4:57am
नित्य तुम्हारे चन्द्र रूप को, मन चाहा शृंगार लिखूँ ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।
छुईमुई हो पीर सयानी,
सुख की नूतन रहे कहानी।।
अँखियों में चंचलता खेले,
सिर पर ओढ़े चूनर धानी।।
मुस्कानों की हर गठरी पर, यौवन का उपहार लिखूँ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।
*
छमछम पायल ओट बजाना
फिर साँसों की सुधि भरमाना।।
भौंरों जैसी अठखेली पर,
छुईमुई सा झट शरमाना।।
बालापन सी …
Posted on March 22, 2023 at 9:05am
हर पीड़ा जब पतझड़ ढोता, तब हँसता सन्सार वसंती।
पतझड़ से मत घबराना मन, हर पतझड़ आधार वसन्ती।।
*
सुमन नहीं इसके हिस्से में,
केवल पत्ते, वही बिछाता।
एक यही तो ऋतुराज की,
करने को अगवानी आता।
है इसका हर त्याग अबोला, खिलता जिससे प्यार वसन्ती।
पतझड़ से मत घबराना मन, हर पतझड़ आधार वसन्ती।।
*
मत कोसो इसको नीरस कह,
इस ने हर नीरसता लूटी।
झाड़े इसने तन से कणकण,
तब जाकर नव कोंपल फूटी।।
चलो सराहो इसकी कोशिश, जिस ने जोड़ा तार…
Posted on March 13, 2023 at 8:11pm — 3 Comments
सादर आभार आदरणीय
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
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