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नफ़रतों की आग भड़की भाईचारा जल उठा
ख़ौफ़ इतना है कि दरिया का किनारा जल उठा
Posted on April 22, 2022 at 8:24pm — 2 Comments
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किसी की बेरुख़ी है या सनम हालात का दुख
परेशां हूँ हुआ है अब तुझे किस बात का दुख
तुम्हें तो पड़ गई हैं आदतें सी रतजगों की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुख
जमाती सर्दियाँ, फुटपाथ का घर, पेट ख़ाली
उन्हें सोने नहीं देता कई हालात का दुख
भिंगोते रात का आँचल बशर अपने ग़मों से…
Posted on December 30, 2021 at 11:00am — 5 Comments
2122 1212 22
बस यही इक फ़रेब खा बैठा
मैं उसे ज़िन्दगी बना बैठा
एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी
उसी पत्थर से दिल लगा बैठा
धूप अपने शबाब पर आई
और साया भी दूर जा बैठा
ख़त्म कैसे भला अँधेरा हो
एक दीपक था जो बुझा बैठा
फिर ग़ज़ल रो पड़ी सरे महफ़िल
गीत फिर ग़म भरा सुना बैठा
'ब्रज' लिए है उदासियाँ अपनी
सामने चाँद अनमना बैठा
(मैलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Posted on December 18, 2021 at 12:30pm — 10 Comments
1222 1222 1222 1222
जरा सा मसअला है ये नहीं तकरार के क़ाबिल
किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल
न ये संसार है मेरे किसी भी काम का हमदम
नहीं हूँ मैं किसी भी तौर से संसार के क़ाबिल
न मेरी पीर है ऐसी जिसे दिल में रखे कोई
न मेरी भावनायें हैं किसी आभार के क़ाबिल
ये मुमकिन है ज़माने में हंसी तुझसे ज़ियादा हों
सिवा तेरे नहीं कोई मेरे अश'आर के क़ाबिल
मेरे आँसू तुम्हारी आँखों से बहते तो अच्छा…
ContinuePosted on November 25, 2021 at 12:00pm — 14 Comments
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आपका अभिनन्दन है.
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