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१. सौरभ पाण्डेय जीपाँच दोहे ====== देख शहर की रौनकें भौंचक हुआ किसान भूखी बस्ती रो रही कहाँ गया सब धानअबकी फिर माँ के लिए ’फले पूत’ वरदान बिटिया बैठी ताड़ती बिन जनमे का मानबादल आये झूम कर लेकिन…Continue
Started this discussion. Last reply by pratibha pande Oct 21, 2015.
1.आ० राजेश कुमारी जीग़ज़लवक़्त बड़ा बलवान सुना है भैया जीछूट गया जो साथ डुबोता नैया जी कर लो पूरे काम न छोड़ो कल पर तुमकरवायेगा वरना ताता थैया जी मँहगाई में सौ-सौ नखरेबाज हुआकितना हाय कमीना आज रुपैया…Continue
Started this discussion. Last reply by Dr.Prachi Singh Oct 8, 2015.
आदरणीय सुधीजनो, दिनांक -8 अगस्त’ 2015 को सम्पन्न हुए “ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-58” की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “फंदा”…Continue
Started this discussion. Last reply by Janki wahie Aug 30, 2015.
आदरणीय सुधीजनो, दिनांक -14जून’ 2015 को सम्पन्न हुए “ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56” की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “गर्मी की…Continue
Started this discussion. Last reply by मिथिलेश वामनकर Jun 24, 2015.
रात दिन तुमको पुकारा,
किन्तु तुम अब तक न आए !
चित्र मेरी कल्पना के,
मूर्तियों में ढल न पाए !
चिर प्रतीक्षित आस के संग, प्यार अपना बाँट लूँगी ।
उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी…
ContinuePosted on July 8, 2020 at 4:30pm — 6 Comments
प्रश्न मैं तुझ पर उठाऊँ, हूँ नहीं इतना पतित भी,
किन्तु जो प्रत्यक्ष है उस पर अचंभित हूँ, अकिंचन!
पूछ बैठा हूँ स्वयं के, बोध की अल्पज्ञता में,
बोल दे हे नाथ मेरे, क्या यही तेरा सृजन था?
जब दिखी मुस्कान तब-तब, आँसुओं…
ContinuePosted on November 27, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
मैंने केसर-केसर मन से रची रंगोली,
मैंने रेशम-रेशम बंधनवार सजाए,
कुछ महके कुछ मीठे से पकवान बना लूँ-
तुम आओ तो उत्सव जैसा तुम्हे मना लूँ...
कंगूरों तक रुकी धूप से कर…
ContinuePosted on October 5, 2019 at 1:10am — 5 Comments
मेरे मन की शांत नदी में अविरल बहती भाव लहर हो
मेरे गीतों से निस्सृत अक्षर-अक्षर का गुंजित स्वर हो
मैं तुलसी तुम मेरा आँगन, मैं श्वासों का अर्पित वंदन,
साथी-सखा-स्वप्न सब तुम ही, सच कह दूँ- मेरे ईश्वर हो !
आतुर…
ContinuePosted on July 21, 2019 at 6:56pm — 3 Comments
पूछ रहा हूँ मैं उन सच्ची ध्वनियों से जो मौन ओढ़ कर
मुझमें गूँजा करतीं हैं जो संदल-संदल अर्थ छोड़ कर...
...साँझ ढले और मैं ना आऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?
...धुँआ-धुँआ बन कर खो जाऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा…
ContinuePosted on July 6, 2019 at 2:26am — 5 Comments
Posted on May 2, 2019 at 10:00am — 6 Comments
गुनगुनी सी आहटों पर
खोल कर मन के झरोखे
रेशमी कुछ सिलवटों पर सो चुके सपने जगाऊँ..
इक सुबह ऐसी खिले जब जश्न सा तुझको मनाऊँ..
साँझ की दीवानगी से कुछ महकते…
ContinuePosted on December 25, 2018 at 11:12pm — 7 Comments
आदरणीया प्राची जी नमस्कार
करवा चौथ का आपका गीत पढ़ कर कुछ मार्ग दर्शन की आकांक्षा है क्योंकि अपने पुराने लिखे गीतो पर फिर से काम कर रहे है ।
आपने अपने इस गीत में वर्ण को आधार बनाया है या मात्रा को
मात्रा के अनुसार है तो क्या गीतो में मात्रा गिरा कर पढ़ा जा सकता है जैसे उर्दू बह्र में छूट है
मात्रा गणना में कितनी छूट स्वीकार्य है
मैं पिया के हृदय में सदा ही रहूँ
2 1 2 2 1 11 2 1 1 2 1 2 ( 21 2 की चार आवृत्ति ) 20 मात्रा
वो ही सागर मेरे, मैं नदी सी बहूँ
2 2 2 1 1 2 2 2 1 2 2 1 2 ( मात्रा गिरा के पढ़ने से लय बन रही है ) 22 मात्रा
आशा है हम अपनी बात रख पाये है
आपका गीत बहुत ही सुन्दर है और प्रासंगिक होने से और भी अच्छा लगा है बधाई
यदि गीतो के बारे में कुछ जानकारी मंच में हो तो उसे बताये पढ़ने के बाद फिर संपर्क करेंगे छंद विधान मे छंद की जानकारी उपलब्ध है किन्तु उससे हमारी शंका का समाधान नहीं हो पा रहा ।
आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामना .... प्रभु आपके जीवन के हर पल को खुशियों से भरपूर करे।
आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...
आदरणीया डा.प्राची जी, आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
सादर!
आदरणीया डॉ. प्राची जी,
'साथ जीने की सज़ा' पर आप की टिप्पणी से जिज्ञासा-वश मैं आप के ब्लॉग पर आया | अधिक तो न पढ़ सका, किन्तु 'सत्य पिरो लूँ' नवगीत के कथ्य तथा शिल्प दोनों के अनूठेपन में मन ऊभ-चूभ हो उठा | संवेदनाओं की वीणा-सी झंकृत इस सूक्ष्म भावों की हृदयस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
मेरी ओर से होली के पावन पर्व पर सपरिवार आप को होली की शुभकामनाएं। उस परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि वो सदा आपके आँगन में खुशियों के रंग बिखेरता रहे।
सुशील सरना
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