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Dayaram Methani
  • Male
  • Bhilwara - rajsthan
  • India
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  • Samar kabeer
 

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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय रचना भाटिया जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमित जी, मेरा कहने का अर्थ केवल ये था कि जो आदत है वही लिखने में अच्छा लगता है। महब्बत को लिखने में मुझे कोई विशेष परिश्रम नहीं करना पड़ेगा केवल कुछ समय तक ध्यान रखना पड़ेगा। यदि आपका आग्रह है कि महब्बत ही लिखा जाए तो भविष्य में महब्बत लिखने…"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमित जी, एक निवेदन करना मैं भूल गया कि मुहब्बत और महब्बत की तक्तीय में कोई अंतर नहीं होता। दोनो की मात्रा गणना समान है अर्थात 122 मुहब्बत तो महब्बत भी 122 ही है। सादर।"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमित जी, मुहब्बत को कई वर्षों से हम लिख रहे है पढ़ रहे है। अनकों शायरों की ग़ज़ल में भी मुहब्बत हमने पढ़ा है। उच्चारण में भी मुहब्बत ही कहा जाता है। महब्बत कहते हुए हमने किसी को नहीं सुना। एक फिल्म अनारकली का गाना भी सुना है उसमें…"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय वीनस केसरी जी, विस्तृत जानकारी के लिए हार्दिक आभार।"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय, समर कबीर जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय, लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय, रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय, अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमित जी, पोस्ट पर टिप्पणी एवं सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद। एक शंका है कि ... इजहार—ए—मुहब्बत करने से मात्रा बढ़ जायेगी या ए का असर नहीं होगा। इस बाबत बतायेंगे तो मेरी शंका का समाधान हो जायेगा। सादर।"
Aug 29
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय रचना भाटिया जी, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय ज़ैफ़ जी, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है। बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय दिनेश कुमार जी, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल हुई। मेरी ओर से इस प्रयास हेतु बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय सालिक गणवीर जी, तरही मिसरे पर ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय रिचा यादव जी, तरही मिसरे पर ग़ज़ल के सुंदर प्रयास हेतु बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28

Profile Information

Gender
Male
City State
BHILWARA
Native Place
BHILWARA
Profession
journlist and writer
About me
I like to read and write kavita, gazal, short stories and artical.

Dayaram Methani's Blog

गज़ल

गज़ल

2122 2122 2122 212

आजकल हर बात पर लड़ने लगा है आदमी,

क्रोध के साये तले पलने लगा है आदमी।

चाह झूठी शान की अब बढ़ गई है बहुत ही,

इस लिये बेचैन सा रहने लगा है आदमी।

आग हिंसा की बहुत झुलसा रही है देश को,

खूब धोखा दल बदल करने लगा है आदमी।

धन कमाया पर बचाया कुछ नहीं अपने लिये,

अब बुढ़ापे में छटपटाने लगा है आदमी।

जिन्दगी भर झगड़ने से क्या मिला इंसान को,

देख ’’मेठानी‘‘ बहुत रोने लगा है आदमी।

मौलिक…

Continue

Posted on January 30, 2022 at 12:16pm — 2 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 2



ज़िन्दगी में हर कदम तेरा सहारा हूँ

नाव हो मझधार तो तेरा किनारा हूँ

तुम भटक जाओ अगर अनजान राहों में

पथ दिखाने को तुम्हें रौशन सितारा हूँ

ज़िन्दगी का खेल खेलो तुम निडरता से

हर सफलता के लिए मैं ही इशारा हूँ

राह जीने की सही तुमको दिखाऊंगा

ज़िन्दगी के सब अनुभवों का पिटारा हूँ

साथ क्यों दूं मैं तुम्हारा सोच मत ऐसा

अंश तुम मेरे पिता मैं ही तुम्हारा हूँ

- दयाराम मेठानी…

Continue

Posted on November 6, 2021 at 10:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल

 2122 2122 2122 212

नाव है मझधार में नाविक नशे में चूर है

सांझ है होने लगी मंजिल नज़र से दूर है

संकटों से आदमी क्या देव भी बचते नहीं

वक्त के आगे सभी होते यहां मजबूर है

जिन्दगी की कशमकश में जीना’ जिसको आ गया

यों समझ लो हौसलों से वो बहुत भरपूर है

दोष है अपना समय के साथ चल पाये नहीं

बंद मुट्ठी से फिसलना वक्त का दस्तूर है

हाल ‘‘मेठानी’’ बतायंे क्या किसी को अब यहां

आदमी सुनता नहीं अब हो गया मगरूर…

Continue

Posted on August 27, 2019 at 10:00pm — 2 Comments

गज़ल सीख लो

2122 2122 212

दर्द को दिल में दबाना सीख लो

ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो

आंख से आंसू बहाना छोड़िये

हर मुसीबत को भगाना सीख लो

ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से

खेल में खुद को जिताना सीख लो

फूल को दुनिया मसल कर फैंकती

खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो

छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी

कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो

थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी

दिन पुराने अब भुलाना सीख लो

कौन…

Continue

Posted on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments

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