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Chetan Prakash
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Chetan Prakash's blog post कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाः
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Friday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"सार्थक दोहे हुए, भाई मुसाफिर साहब ! हाँ, चौथे दोहे तीसरे चरण में, संशोधन अपेक्षित है, 'उसके चंगुल जो हुए', करने से दोहा बेहतर हो जाएगा, बंधु !"
Thursday
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कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाः

दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है !दोहा ..सोरठा ..सवैया तज, कवि मुक्त काव्य लिखता है । सिद्ध छंद छोड़ काव्य वह अब, भार गिरा कर पढ़ता है ।। ग़ज़ल उसे बहुत भाती रही, याद ,.,कविता.. दिलानी है । कविता का ..मर्म नहीं.. जाने , घुट्टी ..उन्हें ...पिलानी है ।।पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !माँ शारदे .. सुन, वरदान दे, दास काव्य का..बन जाऊँ । कि नित नये छंद रचूँ माँ मैं, जनगण का बन मन छाऊँ।। भाव भरी हो.. कविता ..मेरी, जन…See More
Thursday
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है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं

1212 1122 1212 22है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैंमुनाफ़िकों की है बस्ती कि वो टहलते हैंके चार सू यहाँ मरते हैं लोग तनहाई बुझे- बुझे से हैं बूढ़े कहीं निकलते हैंकि ख़ौफनाक है मंज़र ये नफ़रतों दुनिया ये ज़ालिमों की है बस्ती खला बहलते हैंवो शर्म मर गयी आँखों की ग़मज़दा हम हैं करें भी क्या अदब वाले यहाँ से चलते हैंगुलाम देते सलामी वो शाह भी खुश हैं कि मार डाले हैं दुश्मन जहाँ जो खलते हैंन आने देंगे बहारें यहाँ वो जब तक हैं वो आजमाते हैं चेतन निहाल पलते हैंमौलिक व अप्रकाशितप्रोफ. चेतन प्रकाश…See More
May 30
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है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं

1212 1122 1212 22है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैंमुनाफ़िकों की है बस्ती कि वो टहलते हैंके चार सू यहाँ मरते हैं लोग तनहाई बुझे- बुझे से हैं बूढ़े कहीं निकलते हैंकि ख़ौफनाक है मंज़र ये नफ़रतों दुनिया ये ज़ालिमों की है बस्ती खला बहलते हैंवो शर्म मर गयी आँखों की ग़मज़दा हम हैं करें भी क्या अदब वाले यहाँ से चलते हैंगुलाम देते सलामी वो शाह भी खुश हैं कि मार डाले हैं दुश्मन जहाँ जो खलते हैंन आने देंगे बहारें यहाँ वो जब तक हैं वो आजमाते हैं चेतन निहाल पलते हैंमौलिक व अप्रकाशितप्रोफ. चेतन प्रकाश…See More
May 29
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"2122 1212 22 (112) गिरते - गिरते कई सँभलते हैं ख़ार पाँवों से जब निकलते हैं तुम भी जानो हम उनसे जलते हैं दिन निकलते जो आँखे मलते हैं तीरगी की मिसाल बन गये हैं लोग आँखों में अब वो खलते हैं अच्छे लोगों जहाँ बसर न हुई राक्षसों में हम अब टहलते…"
May 26
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव’ अंक 145 in the group चित्र से काव्य तक
"कुकुभ छंदः रेगिस्तान बसर बहुत कठिन, सैलानी डग भरता है । खाली.. खाली ही दिखता है, पेट न भूखा भरता है ।। व्यर्थता जीवन की रुपायित, हड़बोंग निरर्थक सारा । मानो मानव.. की गरदन पर, क्रूरता चला है आरा ।। आकर्षण बस.. मृगमरीचिका, वह भी थोखा.. पानी का ।…"
May 20
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154
"221     2121     1221     212 अलमस्त बतकही का मज़ा हमसे पूछिए  जाबाँज जिन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए  शायर अकेला ही तो ज़माने से लड़ रहा आदम की गुमशुदी का मज़ा हमसे पूछिए  हालात  याँ…"
Apr 27
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव’ अंक 144 in the group चित्र से काव्य तक
"कुकुभ छंद ः टूट ..रहीं ..हैं ..जंजीरे ...या, शुरु ..हो ..गई.. है ...गुलामी । है विषय संधान का यह अब, कि पृष्ठभूमि है मियामी।। नारी मुक्ति का सिलसिला भी, आ पहुँचा गली हमारी । सर की मालिश करता भैया, भौजी ..बैठी ..पैर ..पसारी ।। नौकर चाकर छुप- छुप…"
Apr 22
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-150
"बरसे इन्द्र-देव वृथा, नई फसल बर्बाद । पकता दाना झड़ गया, ईश लगे नाशाद ।। ईश-कृपा फिर चाहिये, तब फलता श्रमदान। अटूट ....श्रद्धा ....देवता, धरती ही भगवान ।। सौ किसान के शत्रु है, कभी घात खरपात । राम- राम जपता रात्रि, कड़ी धूप बरसात ।। , नई फसल भी पक…"
Apr 16
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Chetan Prakash's blog post गज़ल ः
"आदरणीय चेतन जी अच्छा प्रयास है...आदरणीय धामी जी से सहमत हूँ..."
Mar 31
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"2122 1122 1122 22 फ़ासलों से कभी मिलना नहीं आसाँ होगा अजनबी महफिलों को दिल न परेशाँ होगा ( 1 ) होंसलों से ही ज़माने को किया पस्त हमने और थोड़ा चलें पूरा ये भी अरमाँ होगा  ( 2 ) जज़्बा लड़ने का न क़मज़ोर वो होने देना साथ चलते रहेंगे हम मिशन…"
Mar 24
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Chetan Prakash's blog post गज़ल ः
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।  सबूतों बात ये कह दी अभी से"" इस पंक्ति का भाव कुछ स्पष्ट नहीं हो सका है।  अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है//इसे ऐसा करने से कुछ प्रभाव बढ़ेगा- अकेलापन सजा सबसे बड़ी है ।…"
Mar 22
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अजय जी, कुकुभ छंद में आपकी प्रस्तुति मुझे अच्छी लगी  ! लेकिन चौथे छंद की तीसरी और  चौथी पक्ति के पदान्त मुझे नियमानुसार नहीं लगे  ! दोनों ही पंक्तियाँ  के पदान्त  निष्ठा और " प्रतिष्ठा दो- दो गुरु नहीं है…"
Mar 18
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अजय जी, आपकी  टिप्पणी के आलोक मे  मैंने संशोधित प्रस्तुति दी है, कृपया पुन: अवलोकन करें !"
Mar 18
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"संशोधित प्रस्तुति कुकुभ छंद ः यह शालिग्राम शिला नहीं जो, शिव का आह्वान करेगी । बचा लेंगे शिव तुझे आपदा, शिव- शक्ति जान बख्शेगी ।। तूफानी.. लगता .. मौसम ..भी, बादल बरसेंगे भारी । मानव की औक़ात नहीं है, जान बचा कृष्ण मुरारी।। गज को ग्रहण कब लग सका…"
Mar 18

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Gender
Male
City State
Baraut
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Hapur
Profession
Teaching
About me
I'm a poet rather born than made or trained since my childhood

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कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाः

दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है

पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है !

दोहा ..सोरठा ..सवैया तज, कवि मुक्त काव्य लिखता है ।

सिद्ध छंद छोड़ काव्य वह अब, भार गिरा कर पढ़ता है ।।

ग़ज़ल उसे बहुत भाती रही, याद ,.,कविता.. दिलानी है ।

कविता का ..मर्म नहीं.. जाने , घुट्टी ..उन्हें ...पिलानी है ।।

पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !

माँ शारदे .. सुन, वरदान दे, दास काव्य का..बन…

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Posted on June 1, 2023 at 7:35am — 1 Comment

है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं

1212 1122 1212 22

है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं

मुनाफ़िकों की है बस्ती कि वो टहलते हैं

के चार सू यहाँ मरते हैं लोग तनहाई

बुझे- बुझे से हैं बूढ़े कहीं निकलते हैं

कि ख़ौफनाक है मंज़र ये नफ़रतों दुनिया

ये ज़ालिमों की है बस्ती खला बहलते हैं

वो शर्म मर गयी आँखों की ग़मज़दा हम हैं

करें भी क्या अदब वाले यहाँ से चलते हैं

गुलाम देते सलामी वो शाह भी खुश हैं

कि मार डाले हैं दुश्मन जहाँ जो…

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Posted on May 29, 2023 at 7:30am

गज़ल ः

1222 1222 122

कहूँ सच आपका कोई नहीं है

जहाँ में आश्ना कोई नहीं है

सबूतों बात ये कह दी अभी से

वो दुनिया में मिरा कोई नहीं है

ये सब माया उसी की जो छुपा है

सिवा उसके ख़ुदा कोई नहीं है

अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है

अभागा अन्यथा कोई नहीं हैं

किया जो ज़ुर्म उसने वो भरेगा

वो मेरा मुँहलगा कोई नहीं है

मुखौटा कब कोई पहना है मैंने

बहस ये मुद्दआ कोई नहीं है

जो है इनसान का…

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Posted on March 12, 2023 at 7:44pm — 2 Comments

गज़ल

2122  1212   22 / 112

कारवाँ प्यार का रुका क्यूँ है

हादसा आज ये हुआ क्यूँ है

गुलदस्ता वो नहीं कोई फूल नहीं

दीवाना दोस्त गुमशुदा क्यूँ है

चलनी है रहगुज़र मुझे और भी

बदगुमाँ फिर वो दिलरुबा क्यूँ है

वो जुनूँ प्यार का हवा हो गया

होंसला बारहा हुआ क्यूँ है

कौन जाने वो मसअला क्या है

राय़गाँ हुस्न अब हुआ क्यूँ है

कोई रिश्ता ठहरता ही नहीं याँ

राबतों को ये बद्दुआ क्यूँ…

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Posted on February 17, 2023 at 7:43am — 1 Comment

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At 6:35am on July 22, 2021, रणवीर सिंह 'अनुपम' said…
आदरणीय, चेतन जी, "दोहे : कैसे- कैसे  लोग" शीर्षक के तहत लिखे गए दोहे बहुत सुंदर हैं और बहुत अच्छे लगे।

निम्न चरण विधान में न होने से इनमें लय भंग है। जिसे दूर करने की जरूरत है।

जन्म-भूमि स्वर्ग सम हो
(कारण-नवीं मात्रा पर शब्द पूरा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए)

कृतघ्न पक्के लोग
(कारण-आरंभ में जगण "कृतघ्न"आ रहा है, जो नहीं होना चाहिए)

कर रहे बस भोग
(कारण-एक मात्राभार कम है, साथ ही पाँचवीं मात्रा पर शब्द पूरा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए)

न हों कभी बदनाम
(कारण-पहली मात्रा पर शब्द पूरा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए)

विद्या  हमें  सिखाती है,
(कारण-13 मात्राओं की जगह 14 मात्राएँ हैं, जो नहीं होनी चाहिए)

कर अन्याय प्रतिकार
(कारण-11 की जगह 12 मात्राएँ हैं जो नहीं होनी चाहिए)
At 11:46pm on November 22, 2020, DR ARUN KUMAR SHASTRI said…

भाई चेतन जी
नमन -
इस्लाह का
सलीका आ जायेगा
मैंने आज तलक
मुकम्मल तो कोई देखा नहीं
गलतियां निकालोगे-
तो सीखूंगा ही ।।
मैं तो अधूरा था
अधूरा रहा
और हूँ अब तलक
आज आया हूँ आपकी बज्म में
कुछ सिखा दोगे -
तो सीखूंगा भी ।।

At 11:59am on June 27, 2020, Samar kabeer said…

जनाब चेतन प्रकाश जी,ये टिप्पणी आप मुशाइर: में दें,तो मुझे जवाब देने में आसानी होगी ।

 
 
 

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