2122-1212-22/112अब तो इंसाफ भी करें साहिबहक़ मिरा मुझको दे भी दें साहिब (1)
ऊँचे पेड़ों ने फिर से की साजिशलोग सब धूप में रहें साहिब (2)
आप सब क्यों उड़े हवाओं मेंहम ज़मीं पर ही क्यों चलें साहिब (3)
काग़ज़ों पर लिखा तो पढ़ते हैंपीठ पर भी कभी लिखें साहिब (4)
न ज़मीं है न आसमाँ अपनाये बता दो कहाँ रहें साहिब (5)
इतना अफ़सोस है अगर फिर तोशर्म से डूब कर मरें साहिब (6)
आप सुनते नहीं किसी की तबआपसे हम भी क्…