24 अगस्त 2019,भाद्रपद अष्टमी दिन शनिवार,बहुत से लोगों ने इस दिन कृष्ण जन्मोत्सव मनाया और उसी औत्स्विक माहौल में सायं 3 बजे ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या का साज 37, रोहतास एन्क्लेव, फैजाबाद रोड (डॉ. शरदिंदु जी के आवास) पर आदरणीया कुंती मुकर्जी के सौजन्य से नई ‘धज’ के साथ सजा I कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध नव-गीतकर्त्री सुश्री सीमा अग्रवाल ने किया और संचालन मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ द्वारा संपन्न हुआ I
कार्यक्रम के प्रथम चरण में लोकप्रिय कवयित्री संध्या सिंह की दो कविताओं पर चर्चा हुई पहली कविता थी ‘उड़ान’ जिसमे स्वतंत्रता चाहती नारी की छटपटाहट का सुन्दर चित्रण हुआ है I ‘उड़ान’ कविता की पंक्तियों में उत्तरदायित्वों की खदान में नारी के उतरने के समानांतर उसके घर के किलेनुमे कारागार की सलाखों में कैद होने की बात पर परिचर्चा में कुछ मतभेद रहा I उत्तरदायित्व का बोझ तो समान रूप से पुरुष पर भी रहता है I पर इस उड़ान में मन की स्वच्छन्दता उभरती है I इसमें पुरुष की प्रधानता का वैसा मुखर विरोध नहीं है, जैसा आज की उभरती पीढ़ी की कवयित्रियों में दिखता है I सुश्री सीमा अग्रवाल ने ठीक ही कहा कि यह आवाज उनकी पीढ़ी की है I आने वाली पीढ़ी के स्वर अधिक विद्रोही होंगे I
दूसरी कविता ‘भरी दुपहरी बंजर बंजर’ में जन्म और जन्मांतर तक की दुर्गम जीवन यात्रा का वर्णन हुआ है, जिसमे यायावरी है, कष्ट है, निराशा है, मंजिल कहीं दूर क्षितिज पर है, साथ ही कुछ आशा भी है, कुछ बयार भी है और कुछ सृजन के उपादान भी हैं I परिचर्चा में कुछ लोगों को इस कविता में निराशावाद दिखा तो किसी को यह बहुत ही अर्थपूर्ण कविता लगी I पर इस बात में कोई दो राय नहीं थी कि संध्या जी की कविता भाव और शिल्प के स्तर पर अद्भुत है और वे अपनी शैली की बेजोड़ कवयित्री हैं I
कार्यक्रम के दूसरे चरण में संचालक मनोज शुक्ल‘मनुज’की ‘सरस्वती वंदना’ से काव्यपाठ का समारंभ हुआ I डॉ. सुषमा‘सौम्य’ने अपने संगीतमय स्वर एवं ‘ओ गोविदा ओ गोपाला‘ के गायन से रस-सृष्टि कर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पुनीत पर्व पर अपनी गीतांजलि भेट की I कविता के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
कुंजवन हरि हरित कर दो I शुद्ध पर्यावरण कर दो I
रहे ब्रज की भू सुगंधा I न हो जमुना नीर गंदा I
ओ गोपाला ओ गोविंदा I
पुकारे मन का परिंदा II
कवि मृगांक श्रीवास्तव ने अपनी हास्य रचनाओं से सबको लोट-पोट कर दिया I उनकी कविता की बानगी इस प्रकार है –
पहले बता दिया था मोदी बादशाह ने अपना मंसूबा
मुक्त किया धारा तीन सौ सत्तर से कश्मीरी सूबा
ज्यादा खुश न हों धारा केवल कश्मीर से हटी है
आपके अपने घर में तो है वही महबूबा II
कवयित्री कुंती मुकर्जी ने छोटी-छोटी एकाधिक रचनाये सुनाईं I अपनी एक कविता में वे कहती हैं -
मेरे विकल प्राणों में बसी है एक खुशबू
जो मेरे मन में जन्मों से बसी है II
डॉ. अंजना मुखोपाध्याय ने बारिश को आलंबन मानकर अपनी एक सारगर्भित कविता पढ़ी, जिसकी बानगी निम्नवत है –
एक बारिश धुली शाम आयी है I
सुकून के पल लेके
पैगाम लाई है II
डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने दो कवितायें सुनाईं I पहली कविता का शीर्षक था ‘ जाने क्यों ‘
इस कविता का सारा मर्म निम्नांकित पक्तियों में छिपा है –
मगर फिर भी
अक्सर,
वह सर्वशक्तिमान शिशु
हार मान ही जाता है,
और तुम
रात के अंधेरे से निकलकर
दिन के उजाले पर
नक़ाब बनकर
इठलाते रहते हो....जाने क्यों!!!!
डॉ . शरदिंदु की दूसरी कविता ‘सन्नाटे से बाते करता हूँ में विसंगतियों की चर्चा है और साथ ही उम्मीद की किरणें भी हैं , कुछ इस प्रकार -
इतना अंधेरा है फिर भी
एक रोज़ सुबह तो होनी है
एक रोज़ सुबह कीचड़ में फिर
कोई कमलिनी खिलनी है
ख़ुद अपने उर में जल जल कर भी
मैं आशा का दीप जलाता हूँ
स्तब्ध तभी मैं होता
जब सन्नाटे से बातें करता हूँ.
कवि विप्लव अपने प्रतिबिम्बों के प्रश्न पर निरुत्तर दिखे उनकी जुबांदानी का मुजाहरा इस प्रकार है-
अपने प्रतिबिम्बों के प्रश्न पर निरुत्तर
क्यों लाये सपनों को कंधों पर ढोकर
अपनी परछाईं से लग जाती ठोकर I
कवयित्री नमिता-सुन्दर हमारे देश की नदियों की दुर्दशा से क्षुब्ध दिखती हैं I उन्हें लगता है की नदिया अपना स्वर भूल गयी हैं और धीरे-धीरे वे खामोश हो गयी हैं, मगर –
बहुत खतरनाक होता है
यूँ नदियों का खमोश हो जाना
धाराओं के नीले से लाल हो जाने का
काल आ गया लगता है I
डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने अपने एक पुराने गीत ‘ प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ‘ का पाठ किया I इस गीत की बानगी इस प्रकार है -
दृगों ने काव्य करुणा के रचे हैं
कौन से पाठ्यक्रम इससे बचे हैं I
किसी कवि ने इन्हें जब गुनगुनाया
लाज ने तोड़ डाले सींकचे हैं II
गीत संसार को ऐसे न भाते तरह जैसे की मैं सरसा गया हूँ I
अगम है प्रेम परवार फिर भी प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ II
संचालक ‘मनुज’ ने ओज की कविता पढ़ी I वे आज के मठाधीशों को ललकारते हुए कहते है –
है तुम्हें लगता अगर होकर नियन्ता I
कर रहे हम पर बड़ा अहसान हो तुम II
डॉ. अशोक शर्मा कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर अपनी कविता के द्वारा राधा- कृष्ण का स्मरण कर वातावरण को परिवर्तित कर एने में सफल रहे I उनकी भक्ति व्यंजना इस प्रकार थी -
भक्ति है प्रेम है राधा का स्मरण
शक्ति है ज्ञान है कृष्ण का स्मरण
कर्म है ,लक्ष्य है , योग है ,मोक्ष है
राधा का स्मरण कृष्ण का स्मरण
गजलकार भूपेन्द्र सिंह ‘शून्य’ ने अपनी अज्म (संकल्प / निश्चय ) का मुजाहरा कुछ इस तरह से किया -
महदूद ख्वाहिशों से गुजारी है जिन्दगी
हम अपनी अज्म से हैं कभी डोलते नहीं
हम तोड़-फोड़ के कभी हामी नहीं रहे
हम दिल को जोड़ते है कभी तोड़ते नहीं
कवयित्री संध्या सिंह ने एकाधिक कविताओं से मुतासिर किया पर उनका जोर दोहे पर अधिक था I एक दोहा पेशेनजर है -
वो मेरा हमनाम है , मगर अलग तासीर I
मैं नदिया का तीर हूँ वह तरकश का तीर II
अध्यक्ष सुश्री सीमा अग्रवाल ने ‘ जारी बदरी , जारी बहना’ गीत सुनाकर सबको रोमांचित कर दिया I उनकी एक और कविता की बानगी इस प्रकार है –
कच्ची ईंटों में बीना है पक्का सा इक घर
चमकीली पन्नी में सोने चांदी के जेवर
लंगड़े गुड्डे में तगड़ा इक राजा बीना है
झूठ मूठ का एक असल दरवाजा बीना है
जाने क्या क्या बीन रही है
कमला की मुनिया
आ० कुंती जी का आतिथ्य स्नेह और स्वाद के संगम जैसा था I लोगों ने उस आतिथ्य तीर्थ में खूब गोते लगाये I सीमा जी का सानिध्य एक संदेश दे गया-
कूड़े में
क्या ढूँढ़ते हैं बच्चे ?
अपना भविष्य
या अपना भाग्य ?
विधाता भी शायद
बंद कर लेता है
उन्हें देख
अपनी आँखें
और हम ----
हम तो
पामर
मनुष्य हैं ही (सद्म रचित )
(मौलिक/ अप्रकाशित)
Tags:
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |