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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 60 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम स्नेही स्वजन

६० वें मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| मिसरों में दो रंग भरे गए हैं लाल अर्थात बे बहर मिसरे और नीले अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|

ASHFAQ ALI


तेग ओ तलवार के खंजर नहीं देखे जाते
खून आलूद ये मंज़र नहीं देखे जाते

हाकिमे वक़्त का फरमान हुआ है जब से
अब किसी हाँथ मैं पत्थर नहीं देखे जाते

प्यार अंधा है मगर ये भी हकीकत जानो
'इश्क़ में रहजनों रहबर नहीं देखे जाते'

एक ही साख पे उगते है मगर ये सच है
फूल और खार बराबर नहीं देखे जाते

अब तो एक फोन पे हो जाती है मेहबूब से बात
अब किसी घर मैं कबूतर नहीं देखे जाते

जब से देखा है क़यामत का वो मंज़र तब से
खूबसूरत कोई मंज़र नहीं देखे जाते

हम तो मज़दूर हैं फूटपाथ पे सो जाते हैं
नींद के सामने बिस्तर नहीं देखे जाते

जब से पाबंद उसूलों के हुए हैं 'गुलशन'
हुस्नो अख़लाक़ के पैकर नहीं देखे जाते

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दिनेश कुमार

रश्क में, अपने से बेहतर नहीं देखे जाते
बादशाहों से कलन्दर नहीं देखे जाते

मेरी ये तिश्नगी-ए-इश्क़ बुझा दे साक़ी
अब तेरे होंठों के सागर नहीं देखे जाते

चाह जीने की नहीं, ख़्वाब हैं रेज़ा रेज़ा
मौसम-ए-हिज्र के मन्ज़र नहीं देखे जाते

खुद के वादे को बताते हैं चुनावी जुमला

हुक़्मरानों के ये तेवर नहीं देखे जाते

अपने दु:ख दर्द सभी मेरे हवाले कर दोस्त
तेरी आँखों के समन्दर नहीं देखे जाते

तज्रिबा उम्र गुजरने पे हुआ यह उनको
रहनुमा रोज़ बदलकर नहीं देखे जाते

सिर्फ़ मंज़िल पे पहुँचने का जुनूँ होता है
" इश्क़ में रहज़न-ओ-रहबर नहीं देखे जाते "

बज़्म को अपने तग़ज़्ज़ुल से जो रंगीन करें
अब 'दिनेश' ऐसे सुखनवर नहीं देखे जाते

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shree suneel


आबोगिल राह के पत्थर नहीं देखे जाते
राहे मंजिल में नौ मंजर नहीं देखे जाते.

शौके शुह्रत है तेरे दिल में तो इसमें जानो
पुरसुकूं नींद ये बिस्तर नहीं देखे जाते.

सांस लेतीं हैं ये दीवारें अभी तोड़ो मत
टूटते पुरखों के ये घर नहीं देखे जाते.

ऊब के आ हीं गया हद पे जहाँ की, देखो!
मुझसे दुनिया के ये तेवर नहीं देखे जाते.

ग़म ये उल्फ़त का है, मेरा है, मैं हीं देखूंगा
पूछूँ क्यों उनसे ये क्योंकर नहीं देखे जाते.

देखना हो तो फ़क़त़ हौसले देखो ख़ुद में
इश्क़ में रहजन ओ रहबर नहीं देखे जाते.

नक्हते मय से हीं मैं मस्त हुआ, मुझसे अब
कुछ भी मयखाने में दीगर नहीं देखे जाते.

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krishna mishra 'jaan'gorakhpuri

तिश्नलब हो के समंदर नही देखे जाते
फ़ासले पास में रहकर नहीं देखे जाते

सामना मौत से पल-पल हो अगरचे मंजूर
गैर की बांह में दिलबर नहीं देखे जाते

इश्क मुझको हो न जाये,न उठा यूँ पर्दा
ख़्वाब आँखों में उतरकर नहीं देखे जाते

जबसे हमने है किया उनसे सवालाते वस्ल
खिड़कियाँ बंद हैं पैकर नहीं देखे जाते

ये मुहब्बत की डगर सबको है चलनी तन्हा
"इश्क़ में रहज़न-ओ-रहबर नहीं देखे जाते"

बेवफा लाख ही ठहरा वो प अबभी मुझसे
उसकी राहों के ये पत्थर नहीं देखे जाते

हर कदम जिसके लिए हमने दुआए माँगी
उसके हाथों में ही खंजर नही देखे जाते

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गिरिराज भंडारी

माहो ख़ुर्शीद ज़मी पर नहीं देखे जाते
हक़ ज़मीनी कभी उड़ कर नहीं देखे जाते

रंग आकाश में फैले जो, धनक के ही हैं
भर लो आँखों मे ये छू कर नहीं देखे जाते

फ़िक्रे फर्दा न करें , याद भी रक्खें यारों
मंज़रे माजी पलटकर नहीं देखे जाते

इसलिये इश्क़ के मारों को कहें दीवाना
इश्क में रहजन -ओ- रहबर नहीं देखे जाते

अहदे नौ ठीक है, अच्छा भी है कुछ मानी में
बस , कभी ज़ुर्म के तेवर नहीं देखे जाते

वे जो तक़रीर में कुछ ज़ोर से चिल्लाते हैं
वक़्त पड़ने पे ये अक्सर नहीं देखे जाते

ज़िस्म जलते हुये तू देख, मगर याद रहे
आँखे नम हों, कि ये हँसकर नहीं देखे जाते

है अगर अज़्में सफर रास्तों को देखो तुम
छूटते घर कभी मुड़ कर नहीं देखे जाते

जो कभी शान से चलते थे कमर सीधी रख
रोज अगर वे चलें झुक कर , नहीं देखे जाते

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Samar kabeer

सच कहें,हम से ये तेवर नहीं देखे जाते
ज़ख़्म-ए-दिल आप से पल भर नहीं देखे जाते

भीड़ रहती है सदा क़ाफ़िया पैमाओं की
तेरी महफ़िल में सुख़नवर नहीं देखे जाते

इस लिये शर्म से आँखों को झुका लेते हैं
बेटियों के ये खुले सर नहीं देखे जाते

क़त्ल-ओ-ग़ारत का तमाशा तो यहाँ आम है अब
क्या कहा तुमने ,ये मंज़र नहीं देखे जाते

वक़्त रहते ही अगर इन को संभाला होता
ये तबाही की हदों पर नहीं देखे जाते

जुस्तुजू मंज़िल-ए-मक़सूद की पुख़्ता हो तो,फिर
राह के दश्त-ओ-समंदर नहीं देखे जाते

सैकड़ों मील का तय करते थे पैदल जो सफ़र
आज वो इल्म के ख़ूगर नहीं देखे जाते

हुस्न को क्या है संवरने की ज़रूरत,बोलो
चाँद के माथे पे ज़ेवर नहीं देखे जाते

हँसते हँसते जो लगा देते थे बाज़ी जाँ की
अब वो सच्चाई के पैकर नहीं देखे जाते

रहनुमाई की ज़रुरत नहीं इसमें,यानी
"इश्क़ में रहज़न-ओ-रहबर नहीं देखे जाते

तोड़ लेते हो "समर" हाथ बढ़ाकर फ़ौरन
तुमसे शाख़ों पे गुल-ए-तर नहीं देखे जाते

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rajesh kumari


फासले प्यार में अक्सर नहीं देखे जाते
राह में जीत की पत्थर नहीं देखे जाते

डूबना है जिन्हें वो डूब ही जाते अक्सर
प्यास में प्याले या सागर नहीं देखे जाते

काम गर करते हैं तो काम की मिलती कीमत
नौकरी में कभी तेवर नहीं देखे जाते

पाक़ खुशबू हुई चन्दन के शज़र से गायब
आज लिपटे हुए अजगर नहीं देखे जाते

रोज चौपाल पे इक साथ वो पीना हुक्का
गाँव में आज वो मंजर नहीं देखे जाते

आज दुनिया में बराबर नहीं बेटा बेटी
घोंसलों में कभी अंतर नहीं देखे जाते

तब घरों में तो चहकते थे हजारो पंछी
अब मकानों में कबूतर नहीं देखे जाते

नींद या ख़्वाब न पलकें ही झपकती उनकी
सरहदों पर कभी बिस्तर नहीं देखे जाते

लोग तो कहते मुहब्बत में दीवाने होकर
इश्क़ में रहजन-ओ-रहबर नहीं देखे जाते

________________________________________________________________________________

Nilesh Shevgaonkar

झूठ उन के यूँ सरासर नहीं देखे जाते
जैसे अंदर हैं वो बाहर नहीं देखे जाते.
.
वस्ल की ऋत में कैलंडर नहीं देखे जाते
जनवरी और दिसंबर नहीं देखे जाते.
.
राह-ए-उल्फ़त में सितमगर नहीं देखे जाते.
"इश्क़ में रहज़न-ओ-रहबर नहीं देखे जाते"
.
उन के लहजे पे यकीं था तो परखते क्यूँ कर
मलमली कपड़ों के अस्तर नहीं देखे जाते.
.
तुम सफ़र में तो चले आए हो इतना सुन लो
राह में मील के पत्थर नहीं देखे जाते.
.
हाथ आया था कोई हाथ मगर छूट गया
ख्व़ाब भी हम से बराबर नहीं देखे जाते.
.
हम ने तौला है फ़क़त दिल के तराज़ू में उन्हें
हम से यारों के ज़र-ओ-घर नहीं देखे जाते.
.
फिर उनींदे से हुए सुन के कज़ा की लोरी
नींद तारी हो तो बिस्तर नहीं देखे जाते.
.
ऐ ख़ुदा अपनी ही दुनिया में तू वापस आ जा
अब तेरे नाम से पत्थर नहीं देखे जाते.
.
‘नूर’ दीवाना है तू उस की हथैली को न पढ़
यूँ मलंगों के मुकद्दर नहीं देखे जाते.

__________________________________________________________________________________

Manoj kumar Ahsaas 


तेरी आँखों के समन्दर नहीं देखे जाते
बेबसी के घने मंज़र नहीं देखे जाते

मुझको कब गम है मेरे ज़ख्मो का रुस्वाई का
बस तेरे हाथ में पत्थर नहीं देखे जाते

हमको ले जाये कहीं ये तेरी आँखों की अदा
इश्क़ में रहजनों रहबर नहीं देखे जाते

देख लेते है ज़रा जब तेरी रुस्वाई को
तेरे दरशन के मालो ज़र नहीं देखे जाते

ओ खुदा वाले तेरे शहर में कितना देखा
भूख से जलते हुए घर नहीं देखे जाते

दिल में दरिया भी है सहरा भी है गुलिस्ता भी
इसके अहसास यूँ बेघर नहीं देखे जाते

___________________________________________________________________________________

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

तिलमिलाते सभी नश्वर नहीं देखे जाते
अब तबाही तेरे मंजर नहीं देखे जाते II

हैं निभाईं किसी ने प्यार की रस्में सारी
उसके बदरंग हुए चादर नहीं देखे जाते II

प्यार भी यार तो उसने है बनाया ऐसा
इसमें मालिक या कि नौकर नहीं देखे जाते II

है मुहब्बत मेरी पूजा मेरा दीवाना पन
खेल तो है कभी माहिर नहीं देखे जाते II

लिख चुकी लेख सभी का कोई स्याही काली
ऐ विधाता ! तेरे आखर नहीं देखे जाते II

क्या पता कौन किसे लगने लगे कब अच्छा
इश्क़ में रहज़न-ओ-रहबर नहीं देखे जाते II

गोमती आज नहीं है मेरी पहले जैसी
लखनऊ दिन तेरे बदतर नहीं देखे जाते II

_________________________________________________________________________________

dilbag virk


दिल मुहब्बत में हों पत्थर, नहीं देखे जाते
दोस्तों के पास खंजर, नहीं देखे जाते ।

हम जिसे चाहें उसी को ख़ुदा मानें अपना
इश्क़ में रहजन ओ रहबर नहीं देखे जाते ।

आदमी गिर गया इतना कि बना है वहशी
इस पतन के यार मंज़र नहीं देखे जाते ।

तुम सियासत करो हर बात को लेकर, हमसे
हाय ये उजड़े हुए घर नहीं देखे जाते ।

लोग दहशत में घिरे जी रहे सहमे-सहमे
थरथराते दिलों के डर नहीं देखे जाते ।

छोड़ दो तुम ' विर्क ' लड़ना इबादत को लेकर
दिल झुके जब, चर्च - मन्दिर नहीं देखे जाते ।

_______________________________________________________________________________

Sachin Dev

दोस्त के हाथ में खंजर नही देखे जाते
अब निगाहों से ये मंज़र नही देखे जाते

मेघ पानी बरसायें तो सुकूं आ जाये
सूखे-तपते खेत बंजर नही देखे जाते

पार होगी कि नही नाव ये मांझी जाने
बैठ साहिल पर भंवर नही देखे जाते

चल दिया राहे मुहब्बत पे तो डरना कैसा
इश्क में रहजन-ओ-रहबर नही देखे जाते

जबसे बसने लगा फितरत में जहर इंसा की
लुप्त होने लगे विषधर नही देखे जाते

_______________________________________________________________________________

Mohd Nayab


मेरे महबूब ये मंज़र नहीँ देखे जाते
तेरी आंखोँ के समंदर नहीँ देखे जाते

अब चमन में वो सितमगर नहीं देखे जाते
अब किसी हाथ मेँ खंजर नहीं देखे जाते

भूखे प्यासों को जो दो वक्त की रोटी देते
अब किसी शहर मेँ लंगर नहीँ देखे जाते

जब से रमज़ान का वो चाँद नज़र आया है
अब किसी हाथ में साग़र नहीँ देखे जाते

इश्क़ की राह पे चल कर कभी देखो तुम भी
"इश्क़ में रह जन ओ रहबर नहीं देखे जाते"

हर तरफ झूठ के बाज़ार मिलेंगे तुमको
अब तो सच्चाई के पैकर नहीँ देखे जाते

दूर हर राह मेँ देते थे जो मंज़िल का पता
अब कहीँ मील के पत्थर नहीँ देखे जाते

जब से तक़दीर के बल माथे पे देखे 'नायाब'
अब तेरे पाँव के चक्कर नहीँ देखे जाते

________________________________________________________________________________

भुवन निस्तेज


अब तो तिनके भी बराबर नहीं देखे जाते ।
इस हवा से क्यों कोई घर नहीं देखे जाते ।

जिनको पत्थर में भी दिलबर नहीं देखे जाते,
आशिकों में वो ही अक्सर नहीं देखे जाते ।

गर हवाओं में ये खंज़र नहीं देखे जाते,
ख्वाब हमसे भी ज़मीं पर नहीं देखे जाते ।

बोझ पैमानों के ढोते रहे हैं वो जिनको,
तेरी आँखों के ये सागर नहीं देखे जाते ।

खूब इतराते हैं बौने भी ये अपने कद पर,
अब ‘लिलीपुट’ में ‘गुलीवर’ नहीं देखे जाते ।

यूँ तो तहज़ीब ही इस शह्र की आज़ादी थी,
लोग क्यों कैद से बाहर नहीं देखे जाते ।

मोम के पंख लगाकर भी इकारस उड़ता,
जब हो परवाज़ तो फिर पर नहीं देखे जाते ।

आँसुओं खाली करो अब तो मेरी आँखों को,
मुझसे रह रह के ये मंज़र नहीं देखे जाते ।

जब भी परवान वफ़ा चढ़ती है ये होता है,
भीड़ के हाथों के पत्थर नहीं देखे जाते ।

इश्क वालों से जो पूछा तो जवाब आया है,
‘इश्क में रहजनो रहबर नहीं देखे जाते ।’

______________________________________________________________________________

मिथिलेश वामनकर


लाल फीते में ये दफ्तर नहीं देखे जाते
उसपे मजलूम के चक्कर नहीं देखे जाते

देखने वालों को दिल्ली से कहाँ फुर्सत हैं
दूर फैले हुए बस्तर नहीं देखे जाते

अब सिसकते है अकेले में ही विष के प्यालें
आजकल तो कहीं शंकर नहीं देखे जाते

प्रश्न हर बार उठे यार, मगर संसद है,
लौट कर फिर कभी उत्तर नहीं देखे जाते

अब तो आवाज़ में आवाज़ मिलाओ यारों
जंगे-हक़ में कभी अवसर नहीं देखे जाते

आज तन्हाई में सिमटी है गली गोकुल की
मेरे नटवर मेरे नागर नहीं देखे जाते

उनकी आँखों में रही है कहाँ वैसी सीरत
कोई जंतर कोई मंतर नहीं देखे जाते

कागज़ी नाव है, पतवार नहीं है, लेकिन
हौसले हों तो समंदर नहीं देखे जाते

राह कैसी है, हमें हश्र पता है, लेकिन
‘इश्क में रहजन-ओ-रहबर नहीं देखे जाते ।’

______________________________________________________________________________

वीनस केसरी

शाइरों में भी सुखनवर नहीं देखे जाते
अब तो आदाबे मुक़र्रर नहीं देखे जाते

इसमें अहसास की शिद्दत को जिया जाता है
इश्क़ में, फ़िल्म के ट्रेलर नहीं देखे जाते

हू-ब-हू उनको दिखाते हैं, पसे-मंज़र हम
पत्थरों में यूं ही तो, डर नहीं देखे जाते

हम भी तहज़ीब के मारे हैं, यही कहते हैं
‘इश्क में रहजनो-रहबर नहीं देखे जाते’

इस दफ़ा, ‘शामे-ग़ज़ल’ सुन के, चले आए हम
जबकि इस ओर, बराबर नहीं देखे जाते

हम पे खुल जाती है, सब उनकी हकीकत ‘वीनस’
इसलिए उनके ये तेवर, नहीं देखे जाते

__________________________________________________________________________________

मोहन बेगोवाल

खून से ये भरे मंजर नहीं देखे जाते
कत्ल जो कर गए खंजर नहीं देखे जाते १

जो थी आँखों में उमीदें वो न हो जब पूरी
तब ये फैले खुशी, मंजर नहीं देखे जाते २

सारी दुनिया चलो हो जाए हमारी अपनी
इश्क में रह जन ओ रहबर नहीं देखे जाते ३

हो अगर साथ उमीदों का खुले दर तब ही
ख्याब आँखों में यूँ अक्सर नहीं देखे जाते ४

अब नई हो कोई सुरत तेरी दुनिया मोहन
कल दिखाये वही तेवर नहीं देखे जाते ५

___________________________________________________________________________________

Arvind Kumar


हाय ये खुश्क से मंज़र नहीं देखे जाते,
सुर्ख चेहरे पे ये तेवर नहीं देखे जाते।

और रोको कि इन आँखों में नज़र ना आएँ,
अश्क़ के छलके समंदर नहीं देखे जाते।

जब कि मालूम हो, मंज़िल है अभी दूर बहुत,
राह में मील के पत्थर नहीं देखे जाते।

वो ही कहते हैं, रकीबों की हर इक बात गलत,
जिनसे दुश्मन कभी बेहतर नहीं देखे जाते।

आशिकी रखती कहाँ सूद-ओ-जियां से मतलब,
इश्क़ में रहजन-ओ-रहबर नहीं देखे जाते।

______________________________________________________________________________

Yamit Punetha 'Zaif'


शीशे सा दिल है कि पत्थर नहीं देखे जाते
आज कल आप के तेवर नहीं देखे जाते

'मेहनत' नाम की भी चीज़ तो होती होगी?
ऊँचे सपने कभी सोकर नहीं देखे जाते

शायरी मिटने न दो, वरना कहोगे कल को-
'आज के दौर में शायर नहीं देखे जाते'

एक सीरत ही बहुत, हुस्न के चमकाने को,
लड़की अच्छी हो तो ज़ेवर नहीं देखे जाते

कोई अबला लुटे तो सर फिरा लेते हैं सब,
अब ज़माने में दिलावर नहीं देखे जाते

रोक दो जंग, लहू बह चुका है यां बेहद,
अब अज़ीज़ों के कटे सर नहीं देखे जाते

ख़ुद ही तय कर लो सफ़र इश्क़ में घबराना क्या?
इश्क़ में रहज़नो-रहबर नहीं देखे जाते

'ज़ैफ़' जो लोग लिए फिरते हैं हाथों में जाँ,
उनकी आँखों में कभी डर नहीं देखे जाते

______________________________________________________________________________

Hitesh Sharma "Pathik"


शौक तहज़ीब के बाहर नहीं देखे जाते
काँच दानिश्ता गिराकर नहीं देखे जाते

देखने गर हैं तो हमराह निगाहें देखो
इश्क़ में रहज़न ओ रहबर नहीं देखे जाते

जिसकी आँखों से समंदर भी जला करते हों
उसकी आँखों में समंदर नहीं देखे जाते

ज़ुल्म में जिसके पिन्हा राज-ए-शिफ़ा होता है
वैसे ज़र्राह के नश्तर नहीं देखे जाते

आईने अक्स दिखा कर न यूँ इतरा खुद पर
तुझसे दिल में छिपे खंज़र नहीं देखे जाते

आज आये हो तो गुलशन में बहार आयी है
हैं खिले गुल जो ये अक्सर नहीं देखे जाते

जिनके वादों में पथिक वज़्न नहीं होता है
ऐसे मिट्टी के सिकंदर नहीं देखे जाते

_____________________________________________________________________________

charanjit chandwal `chandan'

आँख में रक्खे जो नश्तर नहीं देखे जाते
आज भी यार के तेवर नहीं देखे जाते

रूह में और उतर और उतर साहिल से
कितने गहरे हैं समंदर नहीं देखे जाते

जाने क्यों लोग मुहब्बत से जला करते हैं
इनसे जुड़ते हुए दो सर नहीं देखे जाते

आँख देती है पता दर्द छुपे हैं कितने
ज़ख्म दिल के कभी छूकर नहीं देखे जाते

देखना हो तो मुहब्बत से भरा दिल देखो
आशिकों के कभी भी घर नहीं देखे जाते

सोचना क्या है अगर लुटना मुकद्दर ठहरा
इश्क में रहजनो रहबर नहीं देखे जाते

________________________________________________________________________________

किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो निशानदेही ज़रूर करें|

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Replies to This Discussion

संकलन के लिये आप बधाई के पात्र हैं आ. राणा प्रताप सर जी।
मेरी ग़ज़ल के नीले मिसरे को कुछ यूँ कर दीजिए सर -- खुद के वादे को बताते हैं चुनावी जुमला

आदरणीय दिन्रेश जी वांछित संशोधन कर दिया है|

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय राणा प्रताप सर जी।

आदरणीय राणा सर ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 60 के आयोजन की सफलता के लिए हार्दिक बधाई. संकलन के लिए हार्दिक आभार 

कुछ व्यस्तताओं के चलते इस बार आयोजन में ग़ज़ल बहुत विलम्ब से प्रस्तुत कर सका.

आदरणीय मिथिलेश जी आयोजन की सफलता के लिए आपको भी हार्दिक बधाइयां| मैं स्वयं व्यस्तताओं के कारण कम समय दे पा रहा हूँ , अब प्रयास करता हूँ कि कुछ सक्रियता बढ़ा सकूं|

इस आयोजन के वक्त फोन ने बडी़ ही उठा पटक मचा रखी थी । सारे गजल पढी दिल ही दिल में शायरों के शायराना अंदाज़ देख कर झूम रही थी कि हठात् देर से ही सही फोन ठीक हुआ और कुछ मैने देर से ही सही उपस्थिति दर्ज हो पाई ।
अब संकलन देख कर मायूसी होती है कि इस शेर पर ... कुछ गजल पर मेरा दाद देना छूट गया । अगली बार फिर से मुशायरे का बडी़ बेसब्री से इंतज़ार रहेगा । इस बार अगर नेटवर्क या फोन ने गडबडी जो की ... तो ...या मै रहूँगी या ये नेटवर्क रहेगा .... !!!!!
बधाई सभी को आयोजन के सफलता के लिए

आदरणीय राणा सर ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 60 के आयोजन की सफलता के लिए हार्दिक बधाई! संकलन के लिए हार्दिक आभार!

आ० मेरी गजल के तीसरे और चौथे शेर को निम्न से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें--

इश्क मुझको  हो न जाये,न उठा यूँ पर्दा

ख़्वाब आँखों में उतरकर नहीं देखे जाते

 

जबसे हमने है किया उनसे सवालाते वस्ल

खिड़कियाँ बंद हैं पैकर नहीं देखे जाते      

सादर!

भाई जान गोरखपुरी जी वांछित संशोधन कर दिया है|

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