दिनांक17.05.2020, रविवार को ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्यिक परिचर्चा माह मई 2020 का ऑन लाइन आयोजन हुआ I इसके प्रथम चरण में हास्य और व्यंग्य के कवि श्री मृगांक श्रीवास्तव के निम्नांकित प्रस्तुतियों पर परिचर्चा हुयी I
1-एक दिन आर्य भट्ट ने बैठे-बैठे, रिश्तेदारों की गिनती की I
अलग-अलग मुसीबतों के लिए, रिश्तेदारों की पहचान की I
जो वक्त पर काम आयें , उनकी भी लिस्टिंग की ।
महान चिंतन के बाद उन्होंने ‘जीरो’ की खोज की II
2-स्नेहवश एक दिन, पत्नी का पति से ये कहना।
मैं चाहती हूं , तुम्हारे दिल में रहना।
सहमति जताते हुए, पति ने विनती किया।
पर तुम वहां अन्य औरतों से, झगड़ा नहीं करना।
3-पहले ही बता दिया था , मोदी और शाह ने अपना मंसूबा ।
मुक्त किया धारा तीन सौ सत्तर से , कश्मीरी सूबा ।
ज्यादा खुश न हों , धारा केवल कश्मीर से हटी है ।
आपके अपने घर में , तो हैं वही महबूबा I
6-जो रहती थीं कभी , दिल में चाँद सरीखी ।
उनसे शादी न हुई तो, हुआ था बहुत दुखी ।
उम्र भर उनकी चाँदनी , दिल में बसाये रहा ।
वो कल अचानक ह्जरतगंज में ,
अपने तीन उपग्रहों के साथ घूमतीं दिखीं।
5-वन्य विभाग कहता है, देश में टाइगर बचाओ ।
आनेवाली पीढ़ी को, टाइगर दिखा पाओ।
हमारे पुरखों ने क्या , डाइनासोर बचाया।
हमने तो जुरासिक पार्क से , काम चलाया।
टाइगर से अच्छा है, 'सेव गर्ल्स' लड़कियां जाये बचाया ।
देश में लड़कियों की संख्या, लड़कों से कम है।
सभी लड़कों की शादी, न हो पाने का गम है।
जरा सोचो बाइक पर पीछे, क्या टाइगर बिठाएंगे।
ध्यान दें, बाइक पर पीछे बैठी पत्नी, क्या किसी टाइगर से कम है।
कवयित्री आभा खरे ने परिचर्चा का आगाज करते हुए कहा कि मृगांक जी की रचनाओं में यदि हास्य-व्यंग्य की मौलिकता पर बात करें तो सबसे पहले ये कहना चाहूँगी कि हमारे आसपास, हमारी जीवन शैली, समाज मे व्याप्त विडंबनाओं, विद्रूपताओं या जो कुछ चहुँ ओर घटित हो रहा है, ...व्यंग्य भी वहीं से निकलकर आता है । ये तो व्यंग्यकार की काबिलियत है कि वह इन सबमे हास्य-व्यंग्य खोजकर हमारे सामने प्रस्तुत करता है और हम इस एंगल से भी चिंतन मनन के लिये बाध्य हो जाते हैं I मृगांक जी भी अपने लेखन कौशल से बहुत साधारण सी बात में व्यंग्य का पुट निकाल एक बेहतरीन व्यंग्य क्षणिका के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं I
गजलकार आलोक रावत ‘आहत लखनवी’ के अनुसार मृगांक जी की सभी रचनाएं श्रेष्ठ और सहज हास्य उत्पन्न करने वाली हैं । उनकी अच्छी मारक क्षमता है I कविताओं के अंत में श्रोताओं और पाठकों दोनों को समान रूप से आनन्द प्राप्त होता है।
डॉ अंजना मुखोपाध्याय का कहना था कि साहित्य में रुचि रखनेवालों के लिए हास्य व्यंग्य विधा तनाव मुक्ति का पथ प्रशस्त करती है । साहित्य की गरिमा बनाए रखते हुए मौलिक व्यंग जब भावों के माध्यम से गुदगुदाती है तो मस्तिष्क के बोझिल तमस से छुटकारा मिल जाता है । कभी यह तंज, कभी भाषा के पलटवार और कभी अक्षर को हाशिये पर लेकर शब्दावली का नवीन प्रयोग हमें उन्मुक्त उछाल देती है । फिर वह चांद के साथ तीन उपग्रह की बात हो या महबूबा के दो दृष्टिकोण( हों मुफ्ती या प्रियतमा I
डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने कहा कि मृगांक श्रीवास्तव जी की हास्य व्यंग्य परक रचनाओं की मौलिकता पर चर्चा करने से पहले इस बात पर चर्चा आवश्यक जान पडती है कि मौलिकता क्या होती है ? दरअसल स्वयं अपनी उदभावना से कुछ कहने या लिखने की कला को मौलिकता कहते है I मौलिकता न किसी से प्रभावित होती है और न किसी की नकल होती है I यह स्वतः प्रसूत कल्पना से जन्म लेती है I इस दृष्टि से मृगांक जी की हास्य-व्यंग्यपरक रचनायें मौलिकता की कसौटी पर खरी उतरती हैं I हम सब जानते हैं कि आर्य- भट्ट ने जीरो की खोज की पर इस सत्य में भी हास्य की उद्भावना हो सकती है, यह मृगांक जी की मौलिकता है I कुछ माह पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर को चाँद पर उतरने की असफल कोशिश की I यह घटना मृगांक जी की मौलिक सूझ से हास्य का आलंबन बनती है I ‘महबूबा’ के श्लेष (एक अलंकार) से हास्य का सृजन उनकी मौलिक क्षमता का एक और प्रमाण है I उपग्रह वह आकाशीय पिंड है जो ग्रहों की परिक्रमा करते हैं I इस वैज्ञानिक सच्चाई में भी मृगांक जी की मेधा अपना मौलिक पक्ष ढूँढ लेती है I घिसा-पिटा हास्य अब न हंसा पाता है और न वैसा व्यंग्य हमे चुभता है I पर संप्रेषण के लिए जब कोई रचनाकार नये प्रयोगों के साथ दरपेश होता है तो उसका हास्य हंसाता है और उसका व्यंग्य रुलाता भी है I मृगांक जी की हास्य मौलिकता उनके व्यक्तित्व की विशेषता है I साथ ही यह भी कहना चाहूंगा कि मृगांक जी अपनी प्रस्तुति से यह सिद्ध कर देते है कि हास्य के लिए शिल्प की उतनी अपेक्षा नहीं है जितनी उसमें पञ्च और मारक क्षमता की I
डॉ शरदिंदु मुकर्जी के मत से मृगांक जी की रचनाओं में अद्भुत सहजता के साथ व्यंग्य का चुभन है । वे सीधे नाम लेकर भी अपने शब्दों के शिकार पर वाण चलाते हैं और इंगित के गूगली से भी सुनने वालों को बोल्ड आउट करते हैं ।
गज़लकार नवीन मणि त्रिपाठी के अनुसार मृगांक जी की अप्रतिम व्यंग्यात्मक शैली है । देश में संबंधों के गिरते स्तर को उजागर करती हुई पहली रचना महत्वपूर्ण संदेश देती है । यह संदेश गीता सार की को याद दिलाने में पूर्ण सक्षम है । गीता को समाहित करने से रचना संग्रहणीय हो गयी । दूसरी कविता में सामान्य मानव प्रवृत्ति पर बहुत सुंदर स्पष्टीकरण है । आसक्ति पर व्यंग्य के माध्यम से करारा प्रहार है । तीसरी कविता में भी बहुत अच्छा प्रयास हुआ है और यह रचना लक्ष्य
चौथी कविता में युवाओं के लिए बहुत सुंदर संदेश है । प्रेम अंधा होता है । समय की दृष्टि व्यक्ति को एक दिन वास्तविकता से अवगत करा देती है । जीवन साथी के चयन में चिंतन प्रेम के अलावा अन्य बिंदु पर भी होना अपेक्षित है । रचना की दिशा सार्थक चिंतन के लिए विवश करती है । मृगांक जी की रचनाएं स्वस्थ हास्य के साथ व्यंग्य के नुकीले वाणों से युक्त होती हैं । ये रचनाएँ भी वैसी ही हैं । मृगांक जी बहुत आसानी से कहीं से भी किसी भी घटना से नुकीले व्यंग्य ग्रहण कर उसे रचना में परिवर्तित करने की सामर्थ्य रखते हैं ।
मनोज जी के अनुसार मृगांक जी के हास्य में पुरूष नारी के बिगड़ते अनुपात पर अच्छा व्यंगात्मक प्रहार है । आज देश को ऐसी रचनाओं की जरूरत है । ऐसी रचनाएँ जन सामान्य के दिल मे घर करने में पूर्ण सक्षम होती हैं । सामाजिक चेतना के लिए यह प्रयास उत्तम है ।
कवयित्री संध्या सिंह के अनुसार मृगांक जी के व्यंग्य अधिकतर पैने और चुटीले होते हैं सच कहूँ तो उनकी उपस्थिति ही बौद्धिक बोझिलता को कम करती है और एक सहज वातावरण स्थापित करती है
उनकी इन रचनाओं में "जीरो " एक क्रूर व्यंग्य है रिश्तों पर छद्म संबंधों की एक कडुवी सच्चाई है l टाइगर ने भी एक सार्थक संदेश दिया I उपग्रह भी बेहद पैने अंदाज़ में एक यथार्थ को उजागर करती है l ये रचनाएँ समाज की विद्रूपता को एक हल्के-फुल्के अंदाज़ में सामने रखने में सफल रही हैं I
कवयित्री कौशाम्बरी जी के अनुसार मृगांक जी ने आर्यभट्ट के जीरो के साथ रिश्तेदारों की उपयोगिता के समीकरण को हास्य में बहत ही अच्छे ढंग से भिगोया है I ‘टाइगर बचाओ’ अभियान को ‘कन्या बचाओ’ के साथ जोड़कर हास्य के चिंतन के साथ सलीके से प्रस्तुत किया है I
डॉ अशोक शर्मा के अनुसार मृगांक जी बहुत सफल व्यंग्यकार हैं और बहुत चुटीले अंदाज में अपने भाव रखते हैं I
गज़लकार भूपेन्द्र जी ने कहा कि पहली कविता में आज के वातावरण में संबंधों के अस्तित्व पर इतना सूक्ष्म, संयमित तथा बौद्धिक कटाक्ष !!! अद्भुत !!! व्यंग्य अपने चरम पर I इससे बेहतर अभिव्यक्ति हो ही नहीं सकती I दूसरी कविता में हलके फुल्के हास्य -विनोद का जीवंत उदाहरण है I संभवतः आज की वास्तविकता भी यही है I तीसरी कविता में राजनीति तथा देश-स्थिति पर टिप्पणी है .. अपनी स्थिति से जोड़ते हुए I चौथी कविता हमारे सामाजिक परिवेश में अक्सर घटने तथा महसूस करने वाली स्थिति का सहज तथा मन को गुदगुदाने वाला चित्रण है I मृगांक जी की रचनाओं का भाव-पक्ष उत्कृष्ट रहता है. उनकी अभिव्यक्ति अपने उद्देश्य को सरलता तथा सहजता से प्राप्त कर लेती है I पर उन्हें अपने शिल्प-पक्ष पर भी तनिक ध्यान देने की जरूरत है I
मृगांक जी ने अपना लेखकीय वक्तव्य देते हुए कहा कि हास्य-व्यंग्य की यात्रा मैंने 'अनन्त अनुनाद' नामक साहित्यिक संस्था से शुरू की और उसके बाद 'सुन्दरम्' संस्था के आदरणीय भूषण जी से विशेष ऊर्जा मिलती रही । ओबीओ लखनऊ चैप्टर में आकर मुझे हास्य-व्यंग्य के लिए खूब स्नेह मिला i मुझे पता है कि मेरे पास शिल्प नहीं है पर मैं अनगढ़ शब्दों में उसे एक SUBJECTIV रूप देने का प्रयास करता हूँ I लोग जब हँस देते है तो लगता है मेरी कोशिश सही है I लोगो की इसी स्नेह से मैं ओबीओ लखनऊ चैप्टर की सभी गोष्ठियों/ कार्यक्रमों में भरसक भाग लेता हूं ।
अंत में अध्यक्षीय भाषण देते हुए वरिष्ठ कवयित्री नमिता सुन्दर ने कहा कि कितनी दुश्वार हो गयी है हंसी और कितने कीमती हो गये हैं ठहाके I आज के परिवेश में इसीलिये बेशकीमती है मृगांक जी के मुक्तक I वैसे भी हास्य का सृजन कोई हंसी खेल नहीं है, वह भी चार लाइनों में i अद्भुत है सच I पहली लाइन शुरू होती है और हम चौथी लाइन में होने वाले खुलासे की कल्पना कर मुस्कराने लगते हैं और वह प्रत्येक बार होता है I कल्पनातीत I प्रथम मुक्तक में संबंधो का खोखलापन कितनी सहजता से जाहिर कर गये मृगांक जी ‘शून्य‘ की खोज के माध्यम से I एक गंभीर पीडादायी यथार्थ संप्रेषित भी हो गया और मन भारी भी न हुआ बल्कि मुस्कराहट ही आयी I कडवी गोली शहद के संग खाई जाने वाली अनुभूति I यही बात पांचवी रचना में भी है I ‘भ्रूण ह्त्या जैसा हृदय विदारक विषय और ‘टाइगर बचाओ’ आन्दोलन से उसका जोड़ा जाना I कितने कम शब्दों में कह दिया कि एक समाज के रूप में हमारी प्राथमिकताएं कितनी असंतुलित हैं I ‘जुरासिक पार्क’ से काम चला लिया I ‘बाइक की सीट पर टाइगर बिठाएंगे क्या ?’ ये सभी प्रसंग हास्य की अद्भुत क्षमता के द्योतक हैं I उपग्रह के साथ प्रेमिका और मन में बाकियों के साथ झगड़ा न करने का भोला अनुरोध I मन वस्तुतः निर्मल हास्य में डूब गया I
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
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