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ईसा का जन्मदिन है जहां भर को मुबारक
मग़रिब के बिरादर ये बड़ा दिन हो मुबारक

क्रिसमस के है जश्नों में बहुत शाद ज़माना
सड़कें हैं ढकी बर्फ़ से और गर्म मकां हैं
इशरत का है आराम का सामान मुहइया
चीजों से लबालब लदे बाज़ार-ओ-दुकां हैं

हासिद तो नहीं हैं तेरी ख़ुश-क़ीस्मती से हम
सोचा है कभी दौलतें आईं ये कहाँ से
तुम लूट के जो ले गए सोने की थी चिड़िया
तहज़ीब-ओ-अदब तुमने मिटा डाले जहाँ से

क़ाबिज़ थे हुक़ूमत थी जहाँ पर भी तुम्हारी
चांदी थी तो सोना था कहीं माल-ए-ग़नीमत
ताक़त में ज़हानत में न था तोड़ तुम्हारा
लुटते ही गए लोग छिनी उनकी विरासत

ये साईंस का जो इल्म दिया उसका शुक्रिया
खोई हुई तहज़ीब तो लौटा दो हमारी
रेलों की पटड़ियों का तो एहसान बहुत है
खुद्दारी-ओ-अज़मत भी तो लौटा दो हमारी

बांटा जो हमें दीन की मज़हब की बिना पर
खोया है अमन चैन हिक़ारत भी बड़ी है
दीवार ये नफ़रत की हुक़ूमत के वास्ते
की थी जो खड़ी अब भी वो वैसे ही खड़ी है

ईसा का तो पैग़ाम था शफ़क़त-ओ-मुआफ़ी
तुम दूर बहुत दूर निकल आए हो उस से
कुदरत के ज़खीरों को लुटाते हो कि जैसे
कुर्रा-ए-अर्ज़ माँग कई लाए हो उससे

बंदूकों बमों की है तिजारत में मुनाफ़ा
दहशत जो मगर इनसे बरसती है क़हर है
गो आपका इक़दाम-ए-मईशत है इन्हीं से
औरों पे जो दिन रात गुज़रती है हशर है


औरों को ग़रीबी में डुबो कर जो मिला है
बरकत वो ज़र-ओ-सीम कभी दे न सकेगा
ऐसी ख़ुशी जो दिल को सुकूं चैन दिला दे
लूटा हुआ सामां वो ख़ुशी दे न सकेगा

शहरों में उजालों की फ़िज़ा तुम को मुबारक
इशरत हो मुबारक ये तरक़्क़ी हो मुबारक
जंगल ये नदी कोह समर तुम को मुबारक
छीनी हुई ज़रख़ेज़ ज़मीं तुम को मुबारक
मग़रिब के बिरादर ये बड़ा दिन हो मुबारक
ईसा का जन्मदिन है जहां भर को मुबारक

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on August 15, 2020 at 4:48pm

आदरणीया Rachna Bhatia साहिबा, नज़्म में आपकी शिरकत और सुख़न-नवाज़ी के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ।

Comment by Rachna Bhatia on August 15, 2020 at 3:15pm
आदरणीय रवि भसीन'शाहिद' जी बेहतरीन नज़्म लिखी।
बधाई स्वीकार करें।
Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 10, 2020 at 10:48am

आदरणीय मुसाफ़िर भाई, आपकी हौसला-अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 10, 2020 at 10:47am

आदरणीय समर कबीर साहिब, आपकी बधाई का बहुत शुक्रिया। अगली रचनाओं में मैं आपकी बात का ध्यान रखूँगा। इस नज़्म के लिए जो बहर इस्तेमाल की थी यहाँ लिख रहा हूँ:

2 2 1 / 1 2 2 1 / 1 2 2 1 / 1 2 2

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2020 at 6:31am

आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर नज्म़ हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by Samar kabeer on January 3, 2020 at 3:43pm

जनाब रवि भसीन "शाहिद" जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें,इससे सीखने वालों को कुछ कहने में आसानी होती है ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 1, 2020 at 11:55pm

आदरणीय सुरेंद्र नाथ साहब, आदाब। आपकी ज़र्रा-नवाज़ी का बहुत शुक्रिया।

Comment by नाथ सोनांचली on January 1, 2020 at 9:14pm

आद0 रवि भसीन शाहिद जी सादर अभिवादन। बेहतरीन रचना पर बधाई निवेदित है। सादर

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 1, 2020 at 6:41pm

आदरणीय डॉ छोटेलाल जी, नज़्म पढ़ने के लिए और हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत शुक्रिया।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on January 1, 2020 at 1:16pm

आदरणीय शाहिद जी बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

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