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बड़े दिल का तो वो कद में बड़ा होने से पहले था
जमीं से राब्ता उसका ख़ुदा होने से पहले था

करें मत फ़िक्र अब मेरी सभी एहबाब घर जाएँ
मुझे एहसास-ए-तन्हाई नशा होने से पहले था

हुनर आया तपिश सहकर हजारों चोट खाकर ही
फ़कत माटी का लोंदा वो घड़ा होने से पहले था

बुरी सुहबत ने ही उसको मियाँ ऎसा बनाया है़
वगरना नेक बच्चा वो बुरा होने से पहले था

मुखौटे में निहाँ कितना घिनौना रूप था उसका
मसीहा वेश में ढोंगी सज़ा होने से पहले था

शिकस्ता हो गई कश्ती कहीं भी डूब जाएगी
मुझे इतना तो अंदेशा जुदा होने से पहले था

हुनर जब सामने आया तभी रुतबा हुआ क़ायम
फ़क़त इक नीम का पत्ता दवा होने से पहले था

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by vijay nikore on October 8, 2019 at 1:42pm

खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, मित्र राजेश कुमारी जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 6, 2019 at 12:02am

वाह शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीया

Comment by TEJ VEER SINGH on October 5, 2019 at 1:57pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी। बेहतरीन गज़ल।

मुखौटे में निहाँ कितना घिनौना रूप था उसका
मसीहा वेश में ढोंगी सज़ा होने से पहले था

Comment by Samar kabeer on October 4, 2019 at 11:32am

बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ओबीओ के तरही मिसरे पर बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

इस बार के तरही मुशायरे में आपकी कमी बहुत शिद्दत से महसूस की गई ।

Comment by Asif zaidi on October 2, 2019 at 11:00pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत उम्दा ग़ज़ल बधाई स्वीकार करें सादर ।
Comment by Asif zaidi on October 2, 2019 at 11:00pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत उम्दा ग़ज़ल बधाई स्वीकार करें सादर ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 2, 2019 at 4:30pm

आ. राजेश दी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

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