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लंगडा मज़े में है (हास्य व्यंग ग़ज़ल 'राज')

राजा ये सोचता है कि प्यादा मज़े में है 
प्यादा ये सोचता है कि राजा मज़े में है

लंगड़ा ये सोचता है कि अंधा मज़े  में है 
अंधा ये सोचता है कि लंगड़ा मज़े में है

हर नाज़ नखरे दिल के उठाता है  ज़िस्म ये 
पर दिल ये सोचता है कि गुर्दा मज़े में है 

गुल के बिना वुजूद तो इसका भी कुछ नहीं 
पर सोचता गुलाब कि काँटा मज़े में है 

उस वक्त  चढ़ गई थी  हवाओं की त्योरियां 
जलता हुआ चिराग़ जो देखा मज़े में है 

वो उड़ गया कफ़स की सभी  तोड़ तीलियां 
सैयाद सोचता रहा तोता मज़े में है 

गुज़रा है कितने दर्द  से पैकर ये तब मिला 
पत्थर मगर ये सोचता हीरा मज़े में है 

क्या हाल कब्र का है ये मुर्दा ही जानता 
जिंदा मगर ये सोचता मुर्दा मज़े में है 

हर ज़ुल्म ठोकरों  का वो चुपचाप सह गया 
लेकिन ये आबला कहे  जूता मज़े में है

आये थे ख़ैरियत को मेरी पूछने मगर 
पल भर रुके चले गये सोचा मज़े में है
मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on January 22, 2019 at 11:43am

आद० फूल सिंह जी हार्दिक आभार बहुत बहुत शुक्रिया 


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Comment by rajesh kumari on January 22, 2019 at 11:42am

आद० नरेन्द्र सिंह जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 2:19pm

वक्त को उजागर करती सूंदर रचना

Comment by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 2:18pm

बहुत सूंदर बधाई 

Comment by narendrasinh chauhan on December 10, 2018 at 12:16pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी।खूब सुन्दर रचना ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 10, 2018 at 11:36am

आद० डॉ. आशुतोष जी प्रणाम .आपको ये मजाहिया गज़ल पसंद आई दिल से बेहद शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 10, 2018 at 11:35am

आद० तेजवीर सिंह जी ,आपको ये मजाहिया गज़ल पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 9, 2018 at 4:56pm

आदरणीया राजेश जी आज बहुत दिनों बाद मंच पर आना हुआ और आते ही आपकी इस शानदार मजेदार ग़ज़ल को पढने का सुअवसर मिला इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2018 at 6:55pm

आ. राजेश दी, सादर अभिवादन, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on December 5, 2018 at 2:11pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी।बेहतरीन गज़ल।

गुल के बिना वुजूद तो इसका भी कुछ नहीं 
पर सोचता गुलाब कि काँटा मज़े में है 

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